Utpreksha Alankar उत्प्रेक्षा अलंकार : अलंकार का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषण’ व ‘गहना’ होता है। यह दो शब्दों से मिलकर बनता है- अलम + कार। जिस प्रकार श्रृंगार हेतु आभूषणों का प्रयोग किया जाता है। उसी प्रकार किसी वाक्यांश या पंक्ति के शब्दों और भावों की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता हैं। उपमा अलंकार अर्थालंकार का प्रमुख अंग या भाग है ।
आज हम कोई भी प्रतियोगी परीक्षा देने जाएं तो हमे एक से दो अंको के प्रश्न अलंकार से पूछें जाते है, आज के लेख में हम आपके लिये उत्प्रेक्षा अलंकार का अर्थ, उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा (Utpreksha Alankar ki Paribhasha) उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण (Utpreksha Alankar ke udaharan) और उत्प्रेक्षा अलंकार ले भेद इन सभी बिंदुओं पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे।
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उत्प्रेक्षा अलंकार का अर्थ
जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस अलंकार में- मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि शब्द आते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो जहाँ उपमेय में उपमान होने की संभावना या कल्पना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा | Utpreksha Alankar ki Paribhasha
“उत्प्रेक्षा’ का अर्थ है- किसी वस्तु के सम्भावित रूप की उपेक्षा करना। उपमेय अर्थात् प्रस्तुत में उपमान अर्थात् अप्रस्तुत की सम्भावना को ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ कहते हैं। ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ में मानो, जानो, जनु, मनु, ज्यों इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।
उदाहरण “सोहत ओई पीतपट, श्याम सलोने गात। मनहुँ नीलमणि सैल पर आतपु परयी प्रभात।”
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उक्त काव्यांश में श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर नीलमणि पर्वत की तथा पीत पट पर प्रातः कालीन धूप की सम्भावना व्यक्त की गई है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण वहीं शुभ सरिता के तट पर कुटिया का कंकाल खड़ा है।मानो बाँसों में घुन बनकर शत शत हाहाकार खड़ा है।
इन पंक्तियों में प्रस्तुत में, अप्रस्तुत हाहाकार की सम्भावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है। साथ ही वाचक शब्द 'मानो' भी है। जिसके कारण भी उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते है जो निम्नलिखित है।
(i) वस्तुत्प्रेक्षा
इसमें एक वस्तु की दूसरी वस्तु के रूप में सम्भावना की जाती है ।
उदाहरण वहीं शुभ्र सरिता के तट पर कुटिया का कंकाल खड़ा है। मानों बाँसों में घुन बनकर शत-शत हाहाकार खड़ा है ।।
स्पष्टीकरण इन पंक्तियों में घुन (प्रस्तुत वस्तु) में उपमान (अप्रस्तुत वस्तु) की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस कारण 'वस्तुत्प्रेक्षा' अलंकार है।
(ii) हेतूत्प्रेक्षा
जहाँ पर काव्य में अहेतु में हेतु की सम्भावना व्यक्त की जाती है, वहाँ ‘हेतूत्प्रेक्षा’ अलंकार होता है।
उदाहरण विनय शुक-नासा का घर ध्यान, बन गये पुष्प पलास अराला
स्पष्टीकरण इन काव्य पंक्तियों में ढाक के फलों का वक्र आकार होना स्वाभाविक है। नायिका की नुकीली नाक की उससे सम्भावना की जाए यह हेतु नहीं है, परन्तु इन पंक्तियों में उसे हेतु माना गया है। अतः अहेतु की सम्भावना होने से यहाँ 'हेतूत्प्रेक्षा' अलंकार है।
(iii) फलोत्प्रेक्षा
जब अफल में फल की सम्भावना की जाए, वहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण नित्य ही नहाता क्षर सिन्धु में कलाधर है; सुन्दरि तवानन की समता की इच्छा से।
स्पष्टीकरण इन काव्य पंक्तियों में चन्द्रमा का नित्य प्रति क्षीर सागर में स्नान करने का उद्देश्य सुन्दरी के मुख की समता प्राप्त करने में निहित है। वास्तविकता में ऐसा है नहीं। इस प्रकार की सम्भावना की गई है इस कारण 'फलोत्प्रेक्षा' अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण | Utpreksha Alankar Ke Udaharan
नीचे आपको जितने भी उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण (Utpreksha Alankar Ke Udaharan) है वो सभी पिछली प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्न पत्रों से लिये गए जो बहुत ही महत्वपूर्ण है, आप इनका अध्यन बारीकी से जरूर करें।
उदाहरण अति कटु बचन कहत कैकेयी। मानहुँ लोन जरे पर देहि ।।
इस पंक्ति में कैकेयी के कटु वचन की पीड़ा को जली हुई देह पर नमक लगने जैसी संभावना की जा रही है। संभावना का यही गुण उत्प्रेक्षा अलंकार कहलाता है।
उदाहरण सोहत ओड़े पीत पट स्याम सलोने गात मनों नीलमणि सैल पर आतप परयो प्रभात।।
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण के पीले वस्त्रों में शोभा (उपमेय) को नीलमणि पर्वत पर सुबह में पड़ने वाली सूर्य की आभा (उपमान) के जैसा होने की संभावना की जा रही है।
उदाहरण जान पड़ता है नेत्र देख बड़े बड़े हीरकों में गोल नीलम है जड़े
इस पंक्ति में बड़े बड़े नेत्रों (उपमेय) को हीरों में जड़े नीलम (उपमान) के समान दिखने की कल्पना की जा रही है।
उदाहरण नाना रंगी जलद नभ में दीखते हैं अनूठे योचा मानो विविध रंग के वस्त्र धारे हुए हैं।
यहाँ पर विभिन्न रंगों के बादलों (उपमेय) को विभिन्न रंग के वस्त्र पहने हुए योद्धाओं (उपमान) जैसा दिखने की संभावना की जा रही है।
उदाहरण दादुर धुनि चहुँ और सुहाई। वेद पढ़त जनु बटु समुदाई ॥
यहाँ पर मेंढकों की आवाज (उपमेय) को वेदपाठियों के वेद पढ़ने की ध्वनि (उपमान) के जैसा होने की संभावना की जा रही है।
उदाहरण नेत्र मानो कमल हैं।
इस पंक्ति में 'नेत्र' उपमेय की 'कमल' उपमान होने कि कल्पना कि जा रही है। इसलिये यहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की मालबाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल ।।
इस उदाहरण में 'गूंज की माला' - उपमेय में'दावानल की ज्वाल' - उपमान की संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण ले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण ।
इस पंक्ति में कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो। इसमें ज्यों शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक- उपमेय में स्वर्ण-उपमान के होने कि कल्पना हो रही है। इसलिए यह उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण “सिर फट गया उसका वहीं मानो अरुण रंग का घड़ा हो।
इस पंक्ति में सिर की लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की हो रही है। इसमें सिर- उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा उपमान हैं। उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है, इसलिए यहां उत्प्रेक्षा अलंकार होगा।
उदाहरण जान पड़ता है नेत्र देख बड़े बड़े हीरो में गोल नीलम हैं जड़े।
इस पंक्ति में देख सकते हैं यहां बड़े-बड़े नेत्र (उपमेय) में नीलम (उपमान) के होने की कल्पना की जा रही है। यहाँ कवि कह रहा है की तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखें ऐसी लगती हैं जैसे की हीरों में नीलम जड़े हुए हैं। जैसा की आपने देखा उपमेय में उपमान के होने की कल्पना की जा रही है। इस वाक्य में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण पाहून ज्यों आये हों गाँव में शहर के; मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के।
इस पंक्ति में बादलों को शहर से आये दामाद के सामान या शहर से आये अतिथि के रूप में दिखाया है। जिस प्रकार, कोई दामाद बड़ा ही सज-धज कर एवं बन-ठन कर अपने ससुराल जाता है, ठीक उसी प्रकार, मेघ भी बड़े बन-ठन कर और सुंदर वेशभूषा धारण कर के आये हैं। इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के 10 उदाहरण
यहाँ हमने उत्प्रेक्षा अलंकार के 10 उदाहरण बिना स्पष्टीकरण के साथ दर्शाएं है जिनमे उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान है, जिनका आप आसानी से अध्यन कर सकते है।
- उदाहरण चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट पट छीन । मनुह सुरसरिता विचल, जल उछरत जुग मीन।।
- उदाहरण उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा मानो के जोर से सोता हुआ सागर जगा
- उदाहरण अरुन भये कोमल चरन भुवि चलबे ते मानु
- उदाहरण लागति अवध भयाविन भारी। मानहु काल राति अंधियारी।।
- उदाहरण चित्रकूट जनु अचल अहेरी ।
- उदाहरण सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।
- उदाहरण सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की मालबाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।
- उदाहरण पाहून ज्यों आये हों गांव में शहर के मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के।
- उदाहरण बढ़त ताड़ को पेड़ यह मनु चूमन आकास।
- उदाहरणले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।
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उत्प्रेक्षा अलंकार FAQs
उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण क्या है ?
मानो माई घनघन अंतर दामिनी घन दामिनी दामिनी घन अंतर, शोभित हरि ब्रज भामिनी।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा क्या है ?
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना हो। जहां उपमेय और उपमान में समानता के कारण रूप में उपमान की संभावना की कल्पना की जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान क्या है ?
इस अलंकार में- मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि शब्द आते हैं।
उत्प्रेक्षा अलंकार का क्या अर्थ है ?
जहाँ उपमेय में उपमान होने की संभावना या कल्पना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
हमने इस लेख में आपके लिये उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा,उत्प्रेक्षा अलंकार का अर्थ, उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण एक सरल भाषा मे समझाने की कोशिश की है आशा करते है आपको सभी बिंदु आसानी से समझ मे आये होंगे।
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