अनुप्रास अलंकार: अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है । अनु + प्रास – यहाँ पर
- अनु का अर्थ है- बार – बार
- प्रास का अर्थ है- वर्ण
जब किसी वर्ण की बार- बार आवर्ती हो तब जो परिवर्तन होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है। अनुप्रास अलंकार एक शब्दालंकार है इसको पाँच भागो में विभाजित किया जाता है।
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अनुप्रास अलंकार की परिभाषा
एक या अनेक वर्णों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति को ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते है ।अनुप्रास वर्णनीय रस की अनुकूलता के अनुसार समान वर्णों का बार-बार प्रयोग है। यह एक प्रचलित अलंकार है, जिसका प्रयोग छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास, लाटानुप्रास आदि के रूप में होता है।
अनुप्रास अलंकार का उदाहरण
- रघुपति राघव राजा राम । इस काव्य पंक्ति में ‘र’ वर्ण की आवृत्ति है। यह आवृत्ति अनुप्रास अलंकार के रूप में जानी जाती है।
- सम सुबरन सुखाकर सुजस न थोर । इस वाक्यांश (काव्यांश) में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति दिखती है। यह आवृत्ति ने ‘अनुप्रास अलंकार’ के रूप में जानी जाती हैं।
अनुप्रास अलंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार के पाँच भेद होते है जो निम्नलिखित है ।
(i) श्रुत्यानुप्रास
एक ही स्थान से उच्चारित होने वाले वर्णों की आवृत्ति हो वहां श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण राम कृपा भव-निसा सिरानी जागे पुनि न डसैहों ।
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(ii) वृत्यानुप्रास
समान वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।
(iii) छेकानुप्रास
जब कोई वर्ण मात्र दो बार ही आए तो ऐसी जगह छेकानुप्रास अलंकार की उपस्थिति होती है।
उदाहरण इस करुणा-कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती।
(iv) लाटानुप्रास
शब्द व अर्थ की आवृत्ति के बाद भी अन्वय के उपरान्त भिन्न अर्थ मिले ऐसी स्थिती में लाटानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण पूत सपूत तो क्यों धन संचै? पूत कपूत तो क्यों धन संचै?
(v) अन्त्यानुप्रास
शब्दों के अन्त में समान ध्वनि की आवृत्ति हो वहाँ अन्त्यानुप्रास अंलकार होता है।
उदाहरण बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ ।
अनुप्रास अलंकार के 10 उदाहरण
- राम नाम-अवलंब बिनु परमार्थ की आस, बरसत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास।
- तेही निसि सीता पहुँ जाई । त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई ॥
- पुरइन पात रहत ज्यों जल मन की मन ही माँझ रही ।
- खेदी -खेदी खाती दीह दारुन दलन की
- कर कानन कुंडल मोर पखा, उर पे बनमाल बिराजति है।
- सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुम पर खिलते हैं।
- रावनु रथी विरथ रघुवीरा।
- बंदऊं गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥
- कुकि – कुकि कलित कुंजन करत कलोल।
- सहज सुभाय सुभग तन गोरे ।
अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण (Anupras Alankar ke Udaharan)

- जो खग हौं बसेरो करौं मिल, कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन ।
- बरसत बारिद बून्द गहि
- प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि
- कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि।
- “तरनि- तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये । “
- बुझत स्याम कौन तू गोरी । कहाँ रहत काकी है बेटी।
- कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि । कहत लखन सन राम हृदय गुनि। ।
- चमक गई चपला चम चम
- मुदित महीपति मंदिर आये। सेवक सचिव सुमंत बुलाये। ।
- संसार की समर स्थली में धीरता धारण करो ।
- लाली देख मैं गई मैं भी हो गई लाल ।।
- प्रसाद के काव्य- कानन की काकली कहकहे लगाती नजर आती है।
- चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल-थल में।
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अनुप्रास अलंकार के महत्वपूर्ण प्रश्न FAQs
अनुप्रास अलंकार क्या है ?
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है- अनु+प्रास । यहाँ अनु का अर्थ है- बार-बार और प्रास का अर्थ होता है-वर्ण। जब किसी का वर्णन की बार-बार अविद्या हो तब जो परिवर्तन होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
अलंकार को व्याकरण में क्या कहते है ?
अलंकार एक अलंकार है जिसका अर्थ है आभूषण या श्रंगार जिस प्रकार महिलाएं अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों का उपयोग करती हैं, उसी प्रकार हिंदी भाषा में अलंकार का उपयोग अनिवार्य रूप से कविता की सुंदरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
अलंकार क्या है?
अलंकार संगीत सजावट का कोई भी पैटर्न है जिसे संगीतकार या गायक प्राचीन संगीत सिद्धांतों के आधार पर या स्वरों की प्रगति में व्यक्तिगत रचनात्मक विकल्पों के आधार पर स्वरों के भीतर या पार बनाता है।
रघुपति राघव राजा राम में कौन सा अलंकार है?
अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार की पहचान कैसे करें ?
जहाँ एक शब्द या वर्ण बार बार आता है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। अनुप्रास का अर्थ है दोहराना। जहां कारण उत्पन्न होता है अर्थात् काव्य में जहां एक ही अक्षर की आवृत्ति बार-बार होती है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है। (जब किसी काव्य पंक्ति में कोई वर्ण की आवृत्ति होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।)
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