Kundaliya Chhand ki Paribhasha : कुण्डलिया मात्रिक छंद का का प्रमुख अंग है आज के लेख में हम कुण्डलिया छंद की परिभाषा उदाहरण सहित जानेंगे और इस लेख के माध्यम से कुण्डलिया के उदाहरण स्पष्टीकरण सहित समझाने की कोशिश करेगें।
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कुण्डलिया की परिभाषा
यह विषम मात्रिक एवं संयुक्त छन्द है। इस छन्द का निर्माण दोहा और रोला के संयोग से होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। आरम्भ में दोहा और पश्चात् में दो छन्द रोला के होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
कुण्डलिया का उदाहरण स्पष्टीकरण सहित
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- कोई संगी उत नहीं है इत ही को संग।
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- पथी लेहु मिलि ताहि ते सबसों सहित उमंग।।
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- सबसों सहित उमंग बैठि तरनी के माहीं।
- नदिया नाव संजोग फेरि मिलिहै पहनाहीं ।।
- बरनै दीनदयाल पार पुनि भेंट न होई ।
- अपनी-अपनी गैल पथी जो सब कोई ।।
छ: चरणों वाले इस उदाहरण के प्रत्येक चरण में चौबीस (24) मात्राएँ हैं। इसका प्रथम चरण (कोई संगी) दोहे में प्रथम एवं द्वितीय चरण को मिलाकर रचा गया है और इसके द्वितीय चरण (पथी लेहु" की रचना दोहे में तृतीय व चतुर्थ चरण के सम्मिश्रण से हुई है। इसके अन्य चरणों की रचना रोला के चरणों को मिला कर की गई है। इसमें यतियों की व्यवस्था दोहे एवं रोले के अनुसार है। अतः यह कुण्डलिया छन्द का उदाहरण है।
कुण्डलिया के अन्य उदाहरण
उदाहरण
- दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान ।
- चंचल जल दिन चारि कौ, ठाउँ न रहत निदान ।।
- ठाउँ न रहत निदान, जियन जग में जस लीजै ।
- मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै ।।
- कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घर तौलत ।
- पाहुन निसिदिन चारि, रहत सब ही के दौलत ।।
उदाहरण
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- रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
- बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान ।।
- सीप चुने नादान, अज्ञ मूंगे पर मरता ।
- जिसकी जैसी चाह, इकट्ठा वैसा करता।
- ‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर ।
- “हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर।।
उदाहरण
- कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम ।
- खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान ॥
- उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
- बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै ॥
- कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी ।
- सब दिन रखे साथ, बड़ी मर्यादा कमरी ॥
उदाहरण
- “घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध ।
- बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
- हंस घरेलू गिद्ध, उसे पूछे ना कोई ।
- जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
- चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
- बाहर ही धक्के खायेगा, घर का जोगी ।। “
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कुण्डलिया के महत्वपूर्ण प्रश्न
कुण्डलिया की परिभाषा क्या है ?
कुंडलिया दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है। इस छंद के ६ चरण होते हैं तथा प्रत्येकचरण में २४ मात्राएँ होती है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुंडलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है। दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में १३-१३ मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
कुण्डली छन्द की विशेषता क्या है ?
कुंडलिया एक मात्रिक छंद होता है, जो दोहा और रोला छंद के संयोग से बनता है। कुंडलिया छंद में दोहे का अंतिम चरण रोले का पहला चरण होता है, यानी दोहा और रोला छंद एक दूसरे से कुंडलित रहते हैं। इसी कारण इस छंद को कुंडलिया छंद कहा जाता है। एक अच्छे कुंडलिया छंद में जिस शब्द से वह प्रारंभ होता है, उसी शब्द पर समाप्त भी होता है।
आज के लेख में हमने आपके लिये कुण्डलिया की परिभाषा उदाहरण सहित सरल भाषा मे समझाने की कोशिश की है तथा कुण्डलिया के अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण भी बताएं है आशा करते है आपको हमारे द्वारा दी हुई जानकारी पसन्द आयी होगी।
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