नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट AKstudyHub.com में आज हम बाल विकास और शिक्षा शास्त्र के महत्वपूर्ण अध्याय मूल्यांकन – मूल्यांकन का अर्थ,मूल्यांकन क्या है (Mulyankan – Mulyankan kya hai, Mulyankan ka arth) के बारे में विस्तार से चर्चा करेगें, आप इस आर्टिकल से अंत तक जुड़े रहें।
साधारणतया मूल्यांकन एवं आकलन को एक ही रूप में प्रयोग किया जाता है। जहाँ मूल्यांकन का प्रत्यक्ष सम्बन्ध परीक्षा से है, वहीं आकलन का सम्बन्ध व्यक्तिगत रूप से छात्रों के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक पक्षों से सम्बन्धित तथ्यों का विश्लेषण तथा व्याख्या करने से होता है।।
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मूल्यांकन क्या है (Mulyankan Kya Hai)
‘मूल्य का अंकन’ अर्थात् मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया को ही हम साधारणतया मूल्यांकन कहते हैं।
मूल्यांकन और विशेष रूप से शैक्षिक मूल्यांकन से अभिप्राय उन सब क्रमिक क्रियाओं से है जो समग्र रूप में यह बताती हैं कि अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया कितनी प्रभावी रही। हम इस तथ्य से परिचित हैं कि अध्यापन अधिगम प्रक्रिया को तीन तत्त्व प्रभावित करते हैं उद्देश्य, अधिगम अनुभव और अध्येता । मूल्य-निर्धारण मूल्यांकन इन तीनों मुख्य तत्त्वों के अन्तःक्रियात्मक पक्षों को ध्यान में रखता है। मेरी थोर्प ने इसी बात को आसान ढंग से इस प्रकार बताया है।
“मूल्यांकन, किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम के किसी भी एक पक्ष के विषय में सूचना एकत्र करना, उसका विश्लेषण और व्याख्या है जो इसकी प्रभाविता, कुशलता तथा अन्य परिणामों को परखने की मान्य प्रक्रिया का एक भाग है
मूल्यांकन की परिभाषा
हमने अपने आर्टिकल में अलग अलग किताबो में से कुछ परिभाषाएं अंकित की है जो निम्नलिखित है।
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- मूल्यांकन केवल मूल्य निर्धारण का दूसरा नाम नहीं है। विद्यार्थियों के सीखने के गुणात्मक स्तर को परखना केवल एक बिन्दु है, जिसका हम परीक्षण करना चाहते है। इसके अतिरिक्त कई अन्य तत्त्वों को ध्यान में रखना चाहिए।
- अन्य निष्पत्तियाँ’ इस बात की ओर संकेत करती हैं कि मूल्यांकन के द्वारा कुछ अनपेक्षित बातें ज्ञात हो सकती हैं जिन्हें हमने सोचा भी नहीं था।
- “मान्यता प्राप्त प्रक्रिया’ का अर्थ है कि मूल्यांकन को क्रमबद्ध योजनाबद्ध और पारदर्शी होना चाहिए। ये केवल रिकॉर्ड रखना या अन्तिम रिपोर्ट लिखना नहीं है।
- यह एक उद्देश्यपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए सामाजिक प्रतिबद्धता भी है।
मूल्यांकन का महत्व
अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में मूल्यांकन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। नये उद्देश्यों को तय करने, अधिगम अनुभव प्रस्तुत करने और विद्यार्थी की सम्प्राप्ति की जांच करने में मूल्यांकन अधिगम काफी योगदान देता है।
इसके अतिरिक्त शिक्षण और पाठ्य विवरण सुधारने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह समाज अभिभावक और शिक्षा के ढांचे के प्रति उत्तरदायित्व को भी बताता है।
- शिक्षण शिक्षण विधियाँ, शिक्षण तकनीकें आदि मूल्यांकन से कितने प्रभावित हुए हैं, यह पता लग सकता है। इससे अध्यापकों को अपने अध्यापन और अध्येताओं को अपने सीखने के बारे में पता चल जाता है।
- पाठ्यचर्या पाठ्यचर्या विषय सामग्री पाठ्य पुस्तकों व शैक्षिक सामग्री में मूल्यांकन की सहायता से सुधार , किया जा सकता है।
- समाज नौकरी बाजार की माँग और आवश्यकता के रूप में समाज के प्रति उत्तरदायित्व का हिसाब बताता है।
- अभिभावक मूल्यांकन के द्वारा अभिभावकों को अपने बच्चों को प्रगति का विवरण स्पष्ट रूप से मिल जाता है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शिक्षा की कार्यप्रणाली के लिए मूल्यांकन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इससे शिक्षा के अनेक उद्देश्य पूरे होते हैं; जैसे, गुणवत्ता पर नियन्त्रण, उच्च कक्षा में प्रवेश, अन्य क्षेत्रों के चयन में सहायता । मूल्यांकन की सहायता से भविष्य के विषय में सोचना और निर्णय लेना सरल हो जाता है।
भविष्य में कौन-सा कोर्स लेना चाहिए अथवा कौन-सा पेशा अपनाना चाहिए यह निर्णय करने में दिशाज्ञान आसान हो जाता है। कुछ शिक्षाविद् मूल्यांकन को पूर्व में प्रयुक्त मूल्य निर्धारण का समानार्थक ही मानते हैं।
परन्तु वास्तव में मूल्यांकन का महत्त्व इससे कहीं अधिक है। उद्देश्यों पर प्रश्न करने और उन्हें चुनौती देने में भी इसका महत्त्व है। इससे यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि कार्यक्रम उद्देश्यों की खूब खुलकर आलोचना की जा सकती है।। कार्यक्रम के उद्देश्य और आवश्यकता को भली-भाँति समझकर ही आलोचना करनी चाहिए।
विद्यार्थी के जाँच – परिणामों से जो जानकारी मिलती है उसके आधार पर ही अधिगम अनुभवों को बनाना या सुधारना चाहिए। नीचे अध्यापन- अधिगम प्रक्रिया में मूल्यांकन के स्थान को बड़ी सरलता से प्रदर्शित किया गया है।
मूल्यांकन का उद्देश्य
मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है जो इस प्रकार है।
- यह सुनिश्चित करने के लिए कि अध्ययन के विभिन्न विषयों में बीते समय में बच्चे के अन्दर क्या अधिगम, परिवर्तन और प्रगति हुई है?
- यह पता लगाना कि प्रत्येक छात्र की जरूरतें और अधिगम शैली क्या है?
- एक अध्यापन अधिगम योजना संकल्पित करना जो वैयक्तिक जरूरतों और अधिगम शैलियों के लिए प्रतिक्रियाशील हो ।
- मूल्यवर्धन द्वारा अध्यापन अधिगम सामग्रियों को सुधारना।
- प्रत्येक छात्र को अपनी रुचियों, मनोवृत्तियों, क्षमताओं और कमियों के बारे में पता लगाने में सहायता करना ताकि छात्र प्रभावी अधिगम कार्यनीतियाँ विकसित कर सकें।
- पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को पाने की सीमा का मापन करना।
- अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता को बढ़ाना।
- प्रत्येक छात्र की प्रगति को अभिलेखित करना और माता-पिता तथा अन्य हितधारकों को इसका सम्प्रेषण करना।
- अध्यापक और छात्र के बीच वार्तालाप कायम रखना और साथ ही माता-पिता को प्रणाली के समग्र सुधार के लिए एक संयोगात्मक प्रयास के रूप में जोड़े रखना।
- अभिजात और स्वयं मूल्यांकन के जरिए प्रक्रिया में छात्रों को शामिल करना।
मूल्यांकन के प्रकार
मुख्यतः मूल्यांकन दो प्रकार के होते है।

- सतत मूल्यांकन
- व्यापक मूल्यांकन
1 सतत मूल्यांकन
एक शिक्षक के लिए उद्देश्यों की प्राप्ति की प्रगति का निर्धारण और मूल्यांकन किया ही जाना आवश्यक
होता है, नहीं तो वह यह नहीं जान पाएगा कि वह कहाँ पहुँचा है और उसे कहाँ पहुँचना है?
विद्यालय स्तर पर मूल्यांकन के प्रयोजनों में से एक मुख्य प्रयोजन शैक्षिक विषयों में छात्रों की उपलब्धि में सुधार करना और विद्यालयी शिक्षा के उद्देश्यों के अनुरूप उसमें सही आदतों और अभिवृत्तियों का विकास करना है।
जिसके लिए समय-समय पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता पड़ती है। अतः मूल्यांकन में निरन्तरता ही सतत् मूल्यांकन है।
यदि हम किसी विद्यार्थी द्वारा अनुदेशात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के वर्तमान स्तर और उसकी प्रगति का पता लगाने चाहते हैं, जो सतत् मूल्यांकन द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति के वर्तमान स्तर तथा प्रगति को दिशा का पता लगाया जा सकता है।
यदि अध्यापक से यह अपेक्षा है कि वह अधिगम अनुभवों में सुधार के लिए अपनी अध्यापन विधियों में वांछनीय परिवर्तन करे तो इसके लिए सतत् मूल्यांकन अनिवार्य होगा।
2. व्यापक मूल्यांकन
शैक्षिक और गैर-शैक्षिक क्षेत्रों से सम्बद्ध उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यार्थी की प्रगति के मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया ही ‘व्यापक मूल्यांकन’ कहलाती है। सापेक्ष में व्यापक मूल्यांकन का अर्थ छात्रों की अभिवृद्धि और विकास के दोनों पक्षों, शैक्षिक एवं गैर-शैक्षिक के आकलन से है जो उसके द्वारा सीखने के निम्न उद्देश्यो के साथ जुड़ा है।
- ज्ञान
- अवबोध
- अनुप्रयोग
- मूल्यांकन
- संश्लेषण
- विश्लेषण सृजन
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की विधियाँ
सप्तत् एवं व्यापक मूल्यांकन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है।
- दत्त कार्य – कक्षा में शिक्षण के दौरान प्रायः शिक्षक किसी विषय के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों की पूर्ण विवेचना नहीं कर पाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण कौशल भी होते हैं जिनका शिक्षण के लिए निर्धारित समय-सीमा के अन्दर मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है, जैसे प्रेक्षण आँकड़ों की प्रस्तुति अथवा क्रमबद्ध रूप में सूचना देना, किसी विषय के महत्त्वपूर्ण पक्षों को संगठित करना मौलिकता, सृजनात्मकता आदि। इन सभी प्रयोजनों की प्राप्ति के लिए दत्त कार्य एक उपयुक्त चुनाव है। इसके द्वारा आसानी से अधिगम का सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन किया जा सकता है।
- आवधिक परीक्षा – जब कोई शिक्षक यह निर्धारित करना चाहे कि विद्यार्थी ने, किसी पाठ या यूनिट में जो कुछ पढ़ाया गया था, वह सब सीख लिया है तथा उसे और क्या कठिनाइयाँ हैं, इसका पता लगाने की युक्ति को आवधिक परीक्षण कहा जाता है। जब यह आवधिक परीक्षण प्रत्येक विषय/ यूनिट के शिक्षण के बाद दिए जाते हैं, तो हम यह स्पष्टतः जान सकते हैं कि छात्र ने कितना सीखा है या उसकी कितनी प्रगति हुई है? यह सतत् मूल्यांकन की सबसे उपयुक्त विधि है।
- वार्षिक परीक्षा – का महत्त्व विद्यार्थी ने क्या सीखा है? और जो कुछ उसने सोखा है क्या वह सही है या गलत है, इसकी भी जानकारी सत्र के अन्त में वार्षिक परीक्षा द्वारा प्राप्त की जा सकती है। इस परिणाम का प्रयोग रैंक निर्धारित करने, डिवीजन प्रदान करने, अगली कक्षा में चढ़ाने (प्रोमोशन) तथा मार्गदर्शन के लिए किया जा सकता है। चूंकि वार्षिक परीक्षा सत्र के अन्त में आयोजित की जाती है, अतः इस परीक्षा के परिणामों का कक्षा में शिक्षण की प्रभावी योजना तैयार करने अथवा छात्र द्वारा प्रभावी अधिगम के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। यह व्यापक मूल्यांकन की सबसे उपयुक्त विधि है।
- समंकों सम्बन्धी रिपोर्ट देना – दत्त कार्य, आवधिक और वार्षिक परीक्षाएं विद्यार्थी को समंक देने के लिए प्रमुख आधार होती हैं। समंक अनुदेशात्मक उद्देश्यों की उपलब्धि का एक माप है। समंकों की रिपोर्ट तैयार करने की सर्वाधिक ज्ञात पद्धति प्रगति रिपोर्ट तैयार करना है। प्रगति रिपोर्ट में समंक ग्रेड और जाँच-सूची मद होते हैं। ग्रेड अथवा समंक उपलब्धि के स्तर को बताते हैं और जाँच सूची मद गैर-शैक्षिक क्षेत्रों जैसे चरित्र नियमितता, रुचि, अभिवृत्ति और सामाजिक विकास में निष्पादन का उल्लेख किया जाता है जिसके माध्यम से छात्र का सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन किया जा सकता है।
मूल्यांकन की विशेषताएँ
- वैधता – वैध मूल्यांकन वह होता है जो वास्तव में उसी बात का परीक्षण करे जिसके बारे में वह जानना चाहता है, अर्थात् उद्देश्य में वर्णित जो व्यवहार हम जाँचना चाहते हैं केवल उसी की जाँच की जाए। स्पष्टतः कोई) व्यक्ति जानबूझकर ऐसे मूल्यांकन प्रश्न नहीं बनाएगा जो निरर्थक बातों को जाँचे। वास्तविकता यह है कि अधिकतर शिक्षक ऐसे बिन्दुओं को जाँचते हैं जो प्रामाणिक नहीं होते।
- विश्वसनीयता – विभिन्न परन्तु समतुल्य परिस्थितियों में किसी प्रश्न, परीक्षण या परीक्षा का उत्तर पूर्णतः एक ही प्रकार का होगा तो ऐसा मापन विश्वसनीयता कहलाएगी। विश्वसनीय सामग्री वही है जिसमें एक-से स्तर के विद्यार्थी पुनः परीक्षा में लगभग एक-सा ही उत्तर देते हैं। व्यावहारिकता मूल्याकंन की प्रक्रिया, लागत, समय और प्रयोग सरलता की दृष्टि से वास्तविक, परन्तु उसे व्यवहार
- व्यावहारिक – और कुशल होनी चाहिए। हो सकता है कि मूल्यांकन का कोई तरीका आदर्श हो में न लाया जा सके। यह ठीक नहीं है, इसको प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।
- न्यायसंगतता – मूल्यांकन सभी विद्यार्थियों के लिए समान रूप से न्यायसंगत होना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब किसी पाठ के उद्देश्यों के अनुरूप विद्यार्थियों के अपेक्षित व्यवहारों को दर्शाएँ। अतः यह भी अपेक्षित है कि विद्यार्थी को पता हो कि उनका मूल्यांकन कैसे होना है?
- उपयोगिता मूल्यांकन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होना चाहिए। इसके परिणामों से विद्यार्थी को अवगत होना चाहिए ताकि वह अपनी कमजोरियों को और जिन बातों (बिन्दुओं) में उसे महारत है, उनको जान सके। इस प्रकार वह अधिक सुधार लाने की सोच सकता है।
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आशा करते है आपको मेरा आर्टिकल (मूल्यांकन – मूल्यांकन क्या है, अर्थ, परिभाषा, विधियाँ | Mulyankan – Mulyankan kya hai, Mulyankan ka arth) पसन्द आया होगा अगर आप मेरे इस लेख पर अपनी कोई प्रतिक्रिया देना चाहते है तो कॉमेंट के माध्यम से सम्पर्क कर सकते है।
धन्यवाद…