नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट AKstudyHub में आज के आर्टिकल में सामाजिक अधिगम का सिद्धान्त | Social Learning Theory – अल्बर्ट बेण्डुरा के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।
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प्रेक्षणात्मक अधिगम | सामाजिक अधिगम का सिद्धान्त | Social Learning Theory
जब किसी अन्य या दूसरे को देखकर उनके अनुरूप व्यवहार करने के कारण, अथवा दूसरों के व्यवहारों को अपने जीवन में उतारने तथा समाज द्वारा स्वीकृत किये हुए व्यवहारों को धारण करने तथा अमान्य या खराब व्यवहारों को त्यागने के कारण ही यह सिद्धान्त सामाजिक अधिगम सिद्धान्त कहलाता है।
जनक | अल्बर्ट बेण्डुरा |
निवासी | कनाडा |
प्रयोग कब किया | 1977 ई० में |
प्रयोग किस पर किया | बॉबी डॉल ( जीवित जोकर फ़िल्म ) |
अल्बर्ट की पुस्तेकें | ‘अडोलेसेन्ट अग्रेशन’ (Adolescent Aggression, 1959), ‘सोशल लर्निंग थ्योरी’ (Social Learning Theory, 1977) |
बेन्डुरा ने संज्ञानात्मक मनोविज्ञान से प्रभावित होकर 1986 में अपने सिद्धांत का नाम सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory) से परिवर्तित कर सामाजिक संज्ञानात्मक अधिगम सिद्धांत (Social Cognitive Learning Theory) कर दिया
संज्ञानात्मक सिद्धान्त के महत्व
- प्रेक्षणात्मक अधिगम दूसरों का प्रेक्षण करने से घटित होता है। अधिगम के इस रूप को पहले अनुकरण भी कहा जाता था। इस सिद्धांत को मॉडलिंग (Modeling) भी कहा जाता है।
- बंडूरा को प्रेरणात्मक अधिगम का प्रवर्तक माना जाता है।
- इस प्रकार के अधिगम में व्यक्ति सामाजिक व्यवहार को सीखता है इसलिए इसे कभी-कभी सामाजिक अधिगम भी कहा जाता है।
- बहुत बार व्यक्ति के सामने ऐसी सामाजिक स्थितियाँ आती हैं जिनमें उसे यह पता नहीं होता है कि उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए। ऐसी स्थिति में वह दूसरों के व्यवहार का प्रेक्षण करता है और उनकी तरह व्यवहार करने लगता है।
- इस प्रकार के अधिगम को मॉडलिंग कहते हैं।
अल्बर्ट बेण्डुरा का प्रयोग
अल्बर्ट बंडूरा का सबसे प्रसिद्ध प्रयोग बोबो डॉल पर प्रयोग है। इस प्रयोग में बच्चों को एक 5 मिनट की एक फिल्म दिखलाई जाती है तथा उस फिल्म को देखने के बाद बच्चे में हुए असर को देखा जाता है।

सामाजिक अधिगम का सिद्धान्त | Social Learning Theory – अल्बर्ट बेण्डुरा आर्टिकल के माध्यम से हमने अल्बर्ट जी का प्रयोग प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है—
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बंडूरा ने सामाजिक अधिगम को समझने के लिए एक प्रयोग किया जिसमें बच्चों को एक छोटी फिल्म दिखाई गई। फिल्म में एक कमरे में बहुत सारे खिलौने रखे थे। उनमें एक खिलौना बहुत बड़ा सा गुड्डा बोबो डॉल था। एक लड़का कमरे में प्रवेश करता है तथा सभी खिलौनों के प्रति क्रोध प्रदर्शित करता है और बड़े खिलौनों के प्रति विशेष रूप से आक्रामक हो उठता है और उन्हें तोड़ने लगता है।
इसके बाद का घटनाक्रम तीन अलग रूपों में तीन फ़िल्मों में तैयार किया गया।
- पहली फिल्म में बच्चों के एक समूह ने देखा कि आक्रामक व्यवहार करने वाले लड़के मॉडल को पुरस्कृत किया गया और एक वयस्क व्यक्ति ने उसके आक्रामक ब्यवहार की प्रशंसा की।
- दूसरी फिल्म में बच्चों के समूह ने देखा कि उस लड़के को उसके आक्रामक व्यवहार के लिए दंडित किया गया।
- तीसरी फिल्म में बच्चों के तीसरे समूह ने देखा कि लड़के को ना तो पुरस्कृत किया गया और ना ही दंडित किया गया।
फिल्म देख लेने के बाद सभी बच्चों को एक अलग प्रायोगिक कक्ष में बिठाकर विभिन्न प्रकार के खिलौनों से खेलने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया। प्रयोग में यह पाया गया कि जिन बच्चों ने खिलौनों के प्रति किए जाने वाले आक्रामक व्यवहार को पुरस्कृत होते हुए देखा था वह खिलौनों के प्रति सबसे अधिक आक्रामक थे।
सबसे कम आक्रामकता उन बच्चों ने दिखाई जिन्होंने फिल्म में आक्रामक व्यवहार को दंडित होते हुए देखा था।
अल्बर्ट बेण्डुरा की मॉडलिंग प्रक्रिया
प्रेक्षण द्वारा सीखना – बंडूरा का मत है कि व्यक्ति दूसरों या मॉडल के व्यवहारों का प्रेक्षण करके तथा उसे दोहराकर वैसा ही व्यवहार करना सीख लेता है इसे ही मॉडलिंग की संज्ञा दी जाती है। बंडू ने मॉडलिंग की प्रक्रिया के चार आवश्यक तत्व बताए हैं-
- अवधान (Attention) – निरीक्षणकर्ता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मॉडल आकर्षक, लोकप्रिय, रोचक, तथा सफल होने चाहिए।
- धारण (Retention) / स्मृति – व्यक्ति व्यवहारों को अपने मस्तिष्क में प्रतिमाओं / बिंबों के रूप में अथवा शाब्दिक वर्णन के रूप में संग्रहित कर लेते हैं।
3. पुनः प्रस्तुतीकरण (Reinforcement ) / अनुकरण (Imitation)— व्यक्ति द्वारा देखे गए व्यवहार का पुनः प्रस्तुतीकरण कर पाना।
- पुनर्बलन (Reinforcement) – व्यवहार का पुनः प्रस्तुतीकरण करने पर अधिगमकर्ता को पुनर्बलन प्राप्त होना।
बंडूरा के अनुसार पुनर्बलन दो प्रकार का होता है-
- स्थानापन्न पुनर्बलन / अप्रत्यक्ष पुनर्बलन (Vicarius Reinforcement)
- आत्म पुनर्बलन / प्रत्यक्ष पुनर्बलन (Self Reinforcement)
स्थानापन्न पुनर्बलन / अप्रत्यक्ष पुनर्बलन (Vicarius Reinforcement)
जब व्यक्ति यह देखता है कि मॉडल द्वारा कोई विशिष्ट व्यवहार करने पर उसे पुनर्बलन मिलता है तो इस तरह के पुनर्बलन व्यवहार को मात्र देख कर वह भी ऐसा व्यवहार करना सीख जाता है इस तरह के पुनर्बलन को स्थानापन्न पुनर्बलन कहा जाता है।
आत्म पुनर्बलन / प्रत्यक्ष पुनर्बलन (Self Reinforcement)
जब व्यक्ति को स्वयं किसी कार्य को करने के लिए पुनर्बलन प्राप्त हो तो उसे आत्म पुनर्बलन कहते हैं। इन दोनों तरह के पुनर्बलन का महत्व सामाजिक/ प्रेक्षणात्मक अधिगम अधिगम में काफी अधिक माना गया है।
सामाजिक अधिगम / प्रेक्षणात्मक अधिगम के उदाहरण
- बच्चे अधिकांश सामाजिक व्यवहार वयस्कों का प्रेक्षण तथा उनकी नकल करके सीखते हैं।
- कपड़े पहनना, बालों की शैली, समाज में कैसे रहा जाए ये सब दूसरों को देखकर सीखा जाता है।
- बच्चों में व्यक्तित्व का विकास प्रेक्षणात्मक अधिगम के द्वारा भी होता है।
- आक्रामकता, परोपकार, परिश्रम, नम्रता, आदर आदि गुण भी इसी प्रकार के अधिगम द्वारा अर्जित किए जाते हैं।
सामाजिक अधिगम का सिद्धान्त | Social Learning Theory – अल्बर्ट बेण्डुरा FAQs
सामाजिक अधिगम सिद्धांत के जनक कौन थे?
अल्बर्ट बेण्डुरा
बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत क्या है?
दूसरों को देखकर उनके अनुरूप व्यवहार करने के कारण, अथवा दूसरों के व्यवहारों को अपने जीवन में उतारने तथा समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहारों को धारण करने तथा अमान्य व्यवहारों को त्यागने के कारण ही यह सिद्धान्त सामाजिक अधिगम सिद्धान्त कहलाता है।
सामाजिक अधिगम का सिद्धांत कब दिया गया?
सामाजिक अधिगम का सिद्धांत 1977 में दिया गया।
सामाजिक अधिगम सिद्धांत क्यों महत्वपूर्ण है?
बहुत बार व्यक्ति के सामने ऐसी सामाजिक स्थितियाँ आती हैं जिनमें उसे यह पता नहीं होता है कि उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए। ऐसी स्थिति में वह दूसरों के व्यवहार का प्रेक्षण करता है और उनकी तरह व्यवहार करने लगता है।
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