हजारी प्रसाद द्विवेदी | हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय Hazari Prasad Dwivedi ka Jeevan Parichay -Hindi Notes 2023 लेख में आप द्विवेदी जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय ,भाषा, शैली, रचनाएँ, उनके द्वारा दी हुई साहित्यिक सेवाएँ और उनका हिंदी सहित्य में स्थान इन सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे।
द्विवेदी जी हिंदी के श्रेष्ठ निबन्धकार,उपन्यासकार, आलोचक,और भारतीय संस्कृति के युगीन व्याख्याता थे द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान है इन्होंने हिंदी साहित्य में अनेक सेवाएँ प्रदान की है जिसके हम सभी देशवासी हमेशा ऋणि रहेगें।
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हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय | Hazari Prasad Dwivedi ka Jeevan Parichay

नाम | हजारी प्रसाद द्विवेदी |
जन्म का दिनांक | 1907 ई० |
जन्म स्थान | ग्राम – छपरा, जिला बलिया, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | पण्डित अनमोल दुबे |
शिक्षा | इन्होंने काशी विश्विद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधिि प्राप |
भाषा | परिमार्जित और खड़ी बोली |
शैली | भावात्मक,आलोचनात्मक, विवेचनात्मक, गवेषणात्मक, आत्मपरक आदि |
साहित्यिक पहचान | निबन्धकार,आलोचक,उपन्यासकार आदि |
साहित्य में स्थान | हिन्दी-साहित्य जगत् में द्विवेदी जी को एक विद्वान् समालोचक, निबन्धकार एवं आत्मकथा लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त है। |
उपाधि | 1949 में D.lit की उपाधि 1957 में पद्मभूषण से सम्मानित |
मृत्यु | 1979 ई० |
हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार, उपन्यासकार, आलोचक एवं भारतीय संस्कृति के युगीन व्याख्याता आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म 1907 ई. में बलिया ‘जिले के ‘दूबे का छपरा’ नामक ग्राम में हुआ था। संस्कृत एवं ज्योतिष का ज्ञान इन्हें उत्तराधिकार में अपने पिता पण्डित अनमोल दूबे से प्राप्त हुआ।
1930 ई. में इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। 1940 ई. से 1950 ई. तक ये शान्ति निकेतन में हिन्दी भवन के निदेशक के रूप में रहे। विस्तृत स्वाध्याय एवं साहित्य सृजन का शिलान्यास यहीं हुआ। 1949 ई. में लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
1950 ई. में ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने तथा 1960 से 1966 ई. तक पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष भी बने। 1957 ई. में इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। अनेक गुरुतर दायित्वों को निभाते हुए उन्होंने 1979 ई. में रोग-शय्या पर ही चिर निद्रा ली।
हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली
द्विवेदी जी ने अपने साहित्य में संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक तथा सरल भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी, उर्दू तथा फारसी भाषा के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी किया है। इनकी भाषा में मुहावरों का प्रयोग प्रायः कम हुआ है।
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इस प्रकार द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध, परिष्कृत एवं परिमार्जित खड़ी बोली है। उनकी गद्य शैली प्रौढ़ एवं गम्भीर है। इन्होंने विवेचनात्मक, गवेषणात्मक, आलोचनात्मक, भावात्मक तथा आत्मपरक शैलियों का प्रयोग अपने साहित्य में किया है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनको निम्नलिखित वर्गों में प्रस्तुत किया गया है
निबन्ध संग्रह | अशोक के फूल, कुटज, विचार प्रवाह, विचार और वितर्क, आलोक पर्व, कल्पलता । |
इतिहास | हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, हिन्दी साहित्य | |
सम्पादन | नाथ-सिद्धों की बानियाँ, संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो, सन्देश रासक। |
उपन्यास | बाणभट्ट की आत्मकथा, चारु चन्द्र लेख, पुनर्नवा, अनामदास का पौधा |
आलोचना साहित्य | सूर साहित्य, कालिदास की लालित्य योजना, कबीर, साहित्य सहचर, साहित्य का मर्म । |
अनुदित रचनाएँ | प्रबन्ध-चिन्तामणि, पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह, प्रबन्ध-कोश, विश्व – परिचय, लाल कनेर, मेरा बचपन आदि। |
हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिंदी साहित्य में स्थान
हजारीप्रसाद द्विवेदी की कृतियाँ हिन्दी-साहित्य की शाश्वत निधि है। उनके निबन्धों एवं आलोचनाओं में उच्च कोटि की विचारात्मक क्षमता के दर्शन होते हैं। हिन्दी साहित्य जगत् में इन्हें एक विद्वान् समालोचक, निबन्धकार एवं आत्मकथा लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त है।
वस्तुतः ये एक महान् साहित्यकार थे। आधुनिक युग के गद्यकारों में इनका विशिष्ट स्थान है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक सेवाएँ
आधुनिक युग के गद्यकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी गद्य के क्षेत्र में इनकी साहित्यिक सेवाओं का आकलन निम्नवत् किया जा सकता है
हजारी प्रसाद द्विवेदी निबन्धकार के रूप में
आचार्य द्विवेदी के निबन्धों में जहाँ साहित्य और संस्कृति की अखण्ड धारा प्रवाहित होती है, वहीं नित्यप्रति के जीवन की विविध गतिविधियों, क्रिया- व्यापारों, अनुभूतियों आदि का चित्रण भी अत्यन्त सजीवता और मार्मिकता के साथ हुआ है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी आलोचक के रूप में
आलोचनात्मक साहित्य के सृजन की दृष्टि से द्विवेदी जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनकी आलोचनात्मक कृतियों में विद्वत्ता और अध्ययनशीलता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ‘सूर-साहित्य’ उनकी प्रारम्भिक आलोचनात्मक कृति है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी ललित निबन्धकार के रूप में
द्विवेदी जी ने ललित निबन्ध के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण लेखन कार्य किया है। हिन्दी के ललित निबन्ध को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले निबन्धकार के रूप में आचार्य हजारीप्रसाद अग्रणी हैं। निश्चय ही ललित निबन्ध के क्षेत्र में वे युग प्रवर्तक लेखक रहे हैं।
हजारी प्रसाद द्विवेदी उपन्यासकार के रूप में
द्विवेदी जी के उपन्यासों में विस्तृत तथा गम्भीर अध्ययन व प्रतिभा का सामंजस्य मिलता है
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