वैदिक काल से तात्पर्य उस युग से है जिसका ज्ञान वैदिक साहित्य से होता है। वेदों से हमें आय की राजनीतिक व्यवस्था, समाज, धर्म, कला इत्यादि की जानकारी मिलती इसलिए वैदिक सभ्यता को आर्य सभ्यता भी कहते हैं।
आर्य का अर्थ होता है-श्रेष्ठ या उत्तम। प्रायः यह माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के अवसान के बाद वैदिक संस्कृति का विकास हुआ।
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“पशु सदैव से हमारे लिए उपयोगी रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि भारत में पशुओं को पालने की परम्परा कब से चली आ रही है ? प्रारम्भिक आर्य भी पशुपालक थे। आर्यों के रहन-सहन के तरीके तथा परम्पराओं का पालन आज भी भारतीय समाज में देखने को मिलता है।
वैदिक काल की शुरुआत कब हुई थी ?
वैदिक सभ्यता को इतिहासकारों ने दो कालों में विभाजित किया है।
- 1. ऋग्वैदिक काल (लगभग 1500 ई० पू० से 1000 ई०पू०)
- 2. उत्तर वैदिक काल (लगभग 1000 ई० पू० से 600 ई०पू०)
वैदिक काल का समय कब से कब तक है ?
वैदिक काल का समय लगभग 1500 ई०पूर्व० से 600 ई० पूर्व तक माना गया है और इसी समय को विद्वानों द्वारा सहमति प्राप्त हुई है ।
ऋग्वैदिक काल से उत्तर वैदिक काल में परिवर्तन
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ऋग्वैदिक काल | उत्तर वैदिक काल |
जीवन गतिशील था। | जीवन स्थाई हो गया। |
राजा का पद वंशानुगत नहीं था । | राजा का पद वंशानुगत हो गया। |
वर्ण व्यवस्था नहीं थी। | वर्ण व्यवस्था विकसित हो गई। |
पशु-पालन मुख्य व्यवसाय था। | कृषि मुख्य व्यवसाय बन गया। |
वेद
वेद शब्द संस्कृत भाषा के विद शब्द से बना है इसका अर्थ होता है “जानना”। वेदों की संख्या चार है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है। ऋग्वेद में विभिन्न देवताओं को सम्बोधित प्रार्थनाएँ हैं, जिन्हें ऋचा कहा जाता है।
ऋग्वेद में दस भाग जिन्हें मण्डल कहते हैं। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है, जिसका आज भी धार्मिक 1 | अवसरों पर उच्चारण किया जाता है। सामवेद में भारतीय संगीत के सप्तस्वर स, रे, ग, म, प, ध, नि | का वर्णन है। यजुर्वेद में विभिन्न यज्ञों तथा उसे करने की विधियों का वर्णन है। अथर्ववेद में तंत्र-मंत्र, जादू-टोने का वर्णन है।
“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्”
हे विश्व निर्माता, तुम्हारे पापनाशक ज्योतिपुंज से हमारा उद्धार हो। तुम्हारे आलोक स्पर्श से हमारी बुद्धि सही दिशा में संचालित होती रहे।” (गायत्री मंत्र)
वैदिक काल का सामाजिक जीवन
वैदिक काल के सामाजिक जीवन को हम अलग अलग भागो में विभाजित कर सकते है जो इस प्रकार से है ।
वैदिक कालीन समाज
वैदिक कालीन समाज का आधार परिवार था। परिवार का वरिष्ठ पुरुष सदस्य इसका मुखिया होता था। जिसको कुलप या गृहपति कहा जाता था। आरम्भ में आर्य तीन वर्णों में विभाजित थे- राजा, पुरोहित तथा अन्य जन। यह विभाजन उनके व्यवसाय पर आधारित था परन्तु कठोर नहीं था किन्तु धीरे- धीरे जो यज्ञ करवाते थे, वे ब्राह्मण कहलाए। जो युद्ध करते थे, वे क्षत्रिय कहलाए। जो व्यापार करते थे
वे वैश्य कहे जाते थे। बाद में शूद्र नामक चौथा वर्ण भी मिलता है जिसमें युद्ध में हारे लोग शामिल किए गए। धीरे-धीरे वर्ण व्यवस्था कठोर हो गई। अब कार्य रुचि के आधार पर न होकर वंश (पिता के कार्य) के आधार पर हो गए परन्तु योग्य व्यक्ति अपनी योग्यता के बल पर कोई भी पद प्राप्त कर सकता था।
महिलाओं को उच्च स्थान प्राप्त था वे पुरुषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करती थीं। वेदों से हमें लोपा मुद्रा, घोषा, शची आदि महिलाओं के नाम प्राप्त होते हैं।
आर्यों के मकान घास-फूस तथा मिट्टी के बने होते थे। आर्य दूध तथा उससे बने पदार्थ दधि (दही). नवनीत (मक्खन), घृत (घी) का प्रयोग करते थे। अन्न में यव (जौ), गोधूम (गेहूँ), ब्रीहि (चावल) का प्रयोग करते थे।
वैदिक कालीन आश्रम व्यवस्था
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को व्यवस्थित करने के लिए आर्यों ने जीवन को चार अवस्थाओं में बाँट दिया था। पहली अवस्था ब्रह्मचर्य की थी। इसमें बच्चा आश्रम में रहकर शिक्षा पाता था। दूसरी अवस्था गृहस्थ थी।
यह अवस्था पारिवारिक जीवन से सम्बन्धित थी। तीसरी और चौथी अवस्थाएँ क्रमशः वानप्रस्थ और संन्यास की थीं जिसमें व्यक्ति वन में जाता था और आत्म-चिन्तन द्वारा ईश्वर को प्राप्त करने की कोशिश करता था।
वैदिक कालीन शिक्षा

विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। वेदों के साथ गणित, ज्यामिती, ज्योतिष, भूगोल, सैन्य विज्ञान तथा शिल्प आदि की शिक्षा दी जाती थी।
वैदिक कालीन पशुपालन
प्रारम्भ में आर्य पशु-पालक थे। गाय तथा बैल व्यक्ति की सम्पत्ति माने जाते थे। ये उनकी समृद्धि का प्रतीक थे। गाय का प्रयोग वस्तुओं को खरीदने में किया जाता था। गाय को पवित्र पशु माना जाता था।
वेदों में इसे ‘अधन्या’ कहा गया है। पणियों (आस-पास के किसान ) द्वारा गाय चुरा लेने के कारण कई बार युद्ध प्रारम्भ हो जाता था। आर्य उन्हें ‘दस्यु’ कहा करते थे।
वैदिक कालीन कृषि
जनसंख्या वृद्धि के कारण वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कृषि पर ध्यान देने लगे। आर्य अब गंगा, यमुना के दोआब क्षेत्र में बसने लगे। इन्होंने जंगल काटकर कृषि योग्य भूमि बनाया। कृषि करने के लिए वे हल का प्रयोग करते थे। वे जौ के साथ गेहूँ, धान, दाल आदि उगाने लगे।
वैदिक कालीन शिल्प
आर्य पशुओं से सम्बन्धित व्यवसाय जैसे ऊन कातना, घोड़े से रथ बनाना, लकड़ी की वस्तुएँ बनाना मिट्टी के बर्तन, हस्तशिल्प, धातुकर्म का काम करते थे। धातु को अयस कहते थे। ऋग्वैदिक काल में इन्हें ताँबा, काँसा का ज्ञान था। लोहे का ज्ञान उत्तर वैदिक काल में हुआ। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-आर्यों को सूर्य, चन्द्रमा पृथ्वी व नक्षत्रों की गतियों का ज्ञान था। वे ज्यामितीय आकृति से परिचित थे।
वैदिक कालीन भाषा
यह कहना कठिन है कि सारे आर्य लोग एक ही नस्ल के थे। वे इण्डो-यूरोपियन परिवार की भाषा संस्कृत बोलते थे। अब भी यह अपने बदले हुए रूपों में यूरोप, ईरान व भारत में बोली जाती है। यह तथ्य इन भाषाओं के बोलने के ढंग की समानताओं पर आधारित है।
आर्य सभय्ता का प्रसार
भारत में आर्य सभ्यता का प्रारम्भ सप्त सैंधव प्रदेश से होता है। सप्त सैंधव प्रदेश में आर्य कहाँ से आए इसको लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि आर्य बाहर से आकर यहाँ बसे जबकि अनेक इतिहासकारों का कहना है आर्य मूलतः भारत के ही निवासी थे।
आर्यो का भारत मे विस्तार
- सप्त सैन्धव (सात नदी)- सिन्धु, रावी, व्यास, झेलम, चिनाब, सतलज, सरस्वती
- ब्रह्मवर्त दिल्ली के आस-पास का क्षेत्र
- ब्रहार्षि गंगा, यमुना का दोआब क्षेत्र
- आर्यावर्त (1 + 2 + 3) हिमालय से विन्ध्याचल पर्वत तक का क्षेत्र ।
- दक्षिणापथ विन्ध्याचल पर्वत के दक्षिणी ओर का क्षेत्र ।
Sanskrit Ke kavi aur Rachnayen | संस्कृत के कवि और रचनाएँ – CTET,UPTET,HTET,MPTET – Free Notes :2022
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