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Mahadevi verma ka jeevan parichay | महादेवी वर्मा का जीवन परिचय- Hindi Notes

Akhilesh Kumar
Last updated: 2023/07/04 at 5:50 PM
Akhilesh Kumar Published July 4, 2023
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नमस्कार मित्रों ! आपका हमारी वेबसाइट akstudyhub.com में स्वागत है आज हम अपने लेख के माध्यम से प्रमुख साहित्यकार, कवियित्री Mahadevi verma ka jeevan parichay | महादेवी वर्मा का जीवन परिचय बताने जा रहे है।

Contents
Mahadevi Verma | महादेवी वर्मामहादेवी वर्मा का जीवन परिचय | Mahadevi Verma ka Jeevan Parichay in HindiMahadevi Verma ki Rachnayen | महादेवी वर्मा की रचनाएँकविता संग्रहसंकलनरेखाचित्रसंस्मरणनिबन्ध संग्रहमहादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएंमहादेवी वर्मा की भाषामहादेवी वर्मा की शैलीमहादेवी वर्मा के अलंकार एवं छन्दमहादेवी वर्मा का कला पक्षमहादेवी वर्मा लाक्षणिकतामहादेवी वर्मा का हिंदी साहित्य में स्थानगीत नामक कविता की कुछ पंक्तियां

किसी ने कल्पना भी नही की होगी कि उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले से निकली एक महिला अपनी रचनाओं,कविताओं और अन्य लेखों के माध्यम से अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कराएगी।

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हम अपने लेख में महादेवी वर्मा Mahadevi Verma के वारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से देने जा रहे है इसलिए आप इस लेख और वेबसाइट से जुड़े

Mahadevi Verma | महादेवी वर्मा

नाममहादेवी वर्मा (mahadevi verma)
जन्म तारीख 1907 ई० फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश
पिता का नामगोविंद प्रसाद वर्मा
माता का नामहेमरानी देवी
पति का नामस्वरूपनारायन वर्मा
पुरुस्कारपद्मभूषण भारत सरकार द्वारा
कृतियाँसभी कृतिया आगे विस्तारपूर्वक दी हुई है
सम्पादनचांद पत्रिका
भाषा शेलीशुद्ध साहित्यिक, खड़ी बोली भाषा मुक्तक गीतिकाव्य
उपलब्धियांहिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सेकसरिया एवं मंगला प्रसाद पुरुस्कार।
1983 में यामा के लिये ज्ञानपीठ पुरस्कार
1983 में भारत भारती पुरुस्कार
शिक्षाइनकी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पूर्ण हुई
मृत्यु1987 ई०

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय | Mahadevi Verma ka Jeevan Parichay in Hindi

महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्ठित शिक्षित कायस्थ परिवार में 1907 ई. में होलिका दहन के पर्व के दिन हुआ था। इनके पिता का नाम गोविन्द प्रसाद वर्मा था। इनकी माता हेमरानी हिन्दी व संस्कृत की ज्ञाता तथा साधारण कवयित्री थीं।

Mahadevi verma ka jeevan parichay | महादेवी वर्मा का जीवन परिचय- Hindi Notes

नाना व माता के गुणों का प्रभाव ही महादेवी जी पर पड़ा। नौ वर्ष की छोटी आयु में ही इनका विवाह स्वरूपनारायण वर्मा से हो गया था। कुछ समय पश्चात् महादेवी की माता का देहान्त हो गया। इसके बावजूद इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा।

महादेवी वर्मा का दाम्पत्य जीवन सफल नहीं रहा। विवाह के बाद इन्होंने अपनी परीक्षाएँ सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कीं। इन्होंने घर पर ही चित्रकला एवं संगीत की शिक्षा अर्जित की। इनकी उच्च शिक्षा इलाहाबाद (प्रयाग) में हुई। कुछ समय तक इन्होंने ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन भी किया।

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इन्होंने शिक्षा समाप्ति के बाद 1933 ई. से प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्रधानाचार्या पद को सुशोभित किया। इनकी काव्यात्मक प्रतिभा के लिए इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘सेकसरिया‘ एवं ‘मंगलाप्रसाद‘ पुरस्कारों सम्मानित किया गया था।

1983 ई. में ‘भारत-भारती‘ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार‘ (‘यामा’ नामक कृति पर ) द्वारा सम्मानित किया गया। भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण‘ सम्मान से सम्मानित इस महान् लेखिका का स्वर्गवास 11 सितम्बर, 1987 को हो गया।

Mahadevi Verma ki Rachnayen | महादेवी वर्मा की रचनाएँ

कविता संग्रह

  • रश्मि
  • निहार
  • नीरजा
  • सांध्यगीत
  • दीपसिखा
  • सप्तपर्ण
  • प्रथम आयाम
  • अग्निरेखा

संकलन

  • आत्मिका
  • निरन्तरा
  • परिक्रमा
  • सन्धिनी
  • यामा
  • गीतपर्व
  • दीपगती
  • स्मारिका
  • हिमालय

रेखाचित्र

  • अतीत के चलचित्र 1941
  • स्मृति की रेखाएं 1943

संस्मरण

  • पथ के साथी
  • मेरा परिवार
  • स्मृतिचित्र
  • संस्मरण

निबन्ध संग्रह

  • श्रंखला की कड़ियाँ
  • विवेचनात्मक गद्य
  • संकल्पिता
  • भारतीय संस्क्रति के स्वर
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महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएं

  • अलौकिक प्रेम का चित्रण महादेवी वर्मा के सम्पूर्ण काव्य में अलौकि ब्रह्म के प्रति प्रेम का चित्रण हुआ है। वही प्रेम आगे चलकर इनकी साधना बन गया। इस अलौकिक ब्रह्म के विषय में कभी तो इनके मन में मिलन की प्रबल भावना जाग्रत हुई है, तो कभी रहस्यमयी प्रबल जिज्ञासा प्रकट हुई है।
  • रहस्यात्मकता आत्मा के परमात्मा से मिलन के लिए बेचैनी इनके काव्य में प्रकट हुई है। आत्मा से परमात्मा के मिलन के सभी सोपानों का वर्णन महादेवी वर्मा के काव्य में मिलता है। मनुष्य का प्रकृति से तादात्म्य, प्रकृति पर चेतनता का आरोप, प्रकृति में रहस्यों की अनुभूति, असीम सत्ता और उसके प्रति समर्पण तथा सार्वभौमिक करुणा आदि विशेषताएँ इनके रहस्यवाद से जुड़ी हैं। इन्होंने प्रकृति पर मानवीय भावनाओं का आरोपण करके उससे आत्मीयता स्थापित की।
  • वेदना भाव महादेवी वर्मा के काव्य में मौजूद वेदना में साधना, संकल्प एवं लोक कल्याण की भावना निहित है। वेदना इन्हें अत्यन्त प्रिय है। इनकी इच्छा है कि इनके जीवन में सदैव अतृप्ति बनी रहे। इन्होंने कहा भी है-“मैं नीर भरी दुःख की बदली।” इन्हें ‘आधुनिक मीरा’ की संज्ञा भी दी गई है
  • प्रकृति का मानवीकरण महादेवी के काव्य में प्रकृति आलम्बन, उद्दीपन, उपदेशक, पूर्वपीठिका आदि रूपों में प्रस्तुत हुई है। इन्होंने प्रकृति में विराट की छाया देखी है। छायावादी कवियों के समान ही इन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। सुन्दर रूपकों द्वारा प्रकृति के सुन्दर चित्र खींचने में महादेवी जी की समानता कोई नहीं कर सकता।

महादेवी वर्मा की भाषा

महादेवी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। इनकी भाषा के स्निग्ध एवं प्रांजल प्रवाह अन्यत्र देखने को नहीं मिलते हैं। कोमलकान्त पदावली ने भाषा को अपूर्व सरसता प्रदान की है।

महादेवी वर्मा की शैली

इनकी शैली मुक्तक गीतिकाव्य की प्रवाहमयी सुव्यवस्थित शैली है। ये शब्दों को पंक्तियों में पिरोकर कुछ ऐसे ढंग से प्रस्तुत करती हैं कि उनकी मौक्तिक आभा एवं संगीतात्मक गूँज सहज ही पाठकों को आकर्षित कर लेती है।

महादेवी वर्मा के अलंकार एवं छन्द

महादेवी जी ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके यहाँ उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण, सांगरूपक, रूपकातिशयोक्ति, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विरोधाभास, विशेषण-विपर्यय आदि अलंकारों का सहज रूप में प्रयोग हुआ है। इन्होंने मात्रिक छन्दों में अपनी कुछ कविताएँ लिखी हैं, परन्तु सामान्यतया विविध गीत – छन्दों का प्रयोग किया है, जो इनकी मौलिक देन है।

महादेवी वर्मा का कला पक्ष

सूक्ष्म प्रतीक एवं उपमान महादेवी जी के काव्य में मौजूद प्रतीकों, रूपकों एवं उपमानों की गहराई तक पहुँचने के लिए आस्तिकता, आध्यात्मिकता एवं अद्वैत दर्शन की एक डुबकी अपेक्षित होगी, अन्यथा हम इनकी अभिव्यंजना के बाह्य रूप को तो देख पाएँगे, किन्तु इनकी सूक्ष्म आकर्षण शक्ति तक पहुँच पाना कठिन होगा ।

महादेवी वर्मा लाक्षणिकता

लाक्षणिकता की दृष्टि से महादेवी जी का काव्य बहुत प्रभावशाली है। इन्होंने अपने गीतों के सुन्दर चित्र अंकित किए हैं। कुशल चित्रकार की भाँति इन्होंने थोड़े शब्दों से ही सुन्दर चित्र प्रस्तुत किए हैं।

महादेवी वर्मा का हिंदी साहित्य में स्थान

महादेवी वर्मा छायावादी युग की एक महान् कवयित्री समझी जाती हैं। इनके भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों ही अद्वितीय हैं। सरस कल्पना, भावुकता एवं वेदनापूर्ण भावों को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से इन्हें अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। कल्पना के अलौकिक हिंडीले पर बैठकर इन्होंने जिस काव्य का सृजन किया, वह हिन्दी साहित्याकाश में ध्रुवतारे की भाँति चमकता रहेगा।

गीत नामक कविता की कुछ पंक्तियां

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!

जाग तुझको दूर जाना!

अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,

या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;

आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,

जाग या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!

पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना !

जाग तुझको दूर जाना!

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