हिंदी भाषा मे कारकों में लगने वाले चिह्नों का प्रयोग किया जाता है | संस्कृत भाषा मे चिह्नों के स्थान पर विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है , आपको जानकारी होगी कि विभक्तियों की संख्या सात है।
विभक्ति | संस्कृत विभक्ति उदाहरण सहित – Important Questions 2023
आज के इस लेख में हम आपको विभक्तियों के भेद और विभक्तियों के विषय मे विस्तृत जानकारी देंगें ।
विभक्ति परिभाषा
हिंदी भाषा मे कारकों में लगने वाले चिह्नों का प्रयोग किया जाता है | संस्कृत भाषा मे चिह्नों के स्थान पर विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है , आपको जानकारी होगी कि विभक्तियों की संख्या सात है।
विभक्ति के भेद
विभक्ति दो प्रकार की होती है
- कारक विभक्ति जो विभक्ति हिन्दी के वाक्य में प्रयोग किए गए कारकों के चिह्नों के अनुसार लगती है, उसे कारक विभक्ति कहते हैं; जैसे—सा लतां पश्यति/ वह लता को देखती है।
इस वाक्य में ‘वह’ देखने वाली है। अतः ‘वह’ का प्रयोग कर्ता कारक एकवचन में ‘सा’ हुआ। इस वाक्य का दूसरा शब्द ‘लता को’ है। यहाँ कारक का चिह्न को है। ‘को’ यह चिह्न कर्म कारक का है। इसमें द्वितीया विभक्ति है। अतः ‘लता’ शब्द का द्वितीया विभक्ति एकवचन में लतां शब्द प्रयोग किया गया है। यही कारक विभक्ति होती है।
- उपपद विभक्ति उपपद’ यह शब्द दो शब्दों उप + पद के मेल से बना है। ‘उप’ का अर्थ ‘योग’ अथवा ‘पास’ होता है और पद का अर्थ शब्द होता है। इस प्रकार जो विभक्ति कारक के चिह्न के अनुसार न लगकर किसी शब्द या धातु के योग में प्रयोग होती है, उसे ‘उपपद’ विभक्ति कहते हैं: जैसे— पुत्र माता के साथ जाता है। पुत्रः मात्रा सह गच्छति ।
इस वाक्य में कारक के चिह्न को देखा जाए तो का, के, की षष्ठी विभक्ति के चिह्न हैं। इस आधार पर इस वाक्य के ‘माता’ शब्द में षष्ठी विभक्ति लगकर ‘मात:’ रूप होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि संस्कृत में के साथ’ ‘सह’ शब्द का प्रयोग किया जाता है और ‘उपपद’ विभक्ति के नियम के अनुसार ‘सह’ शब्द के योग में जिसके साथ कोई क्रिया की जाती है (जाने की, पढ़ने आदि की) उसमें तृतीया विभक्ति होती है। अतः ‘माता’ में ‘सह’ शब्द के साथ तृतीया विभक्ति होकर ‘मात्रा’ रूप बना। यही ‘उपपद’ विभक्ति है।
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प्रथमा विभक्ति
(सूत्र—प्रातिपदिकार्थ-लिङ्ग-परिमाण वचनमात्रे प्रथमा) प्रातिपदिकार्थमात्र में, लिंगमात्र की अधिकता में, परिमाणमात्र ( मापमात्र) में तथा वचनमात्र (संख्यामात्र) में प्रथमा विभक्ति होती है। प्रातिपदिकार्थ से सम्बोधन अर्थ की अधिकता में भी प्रथमा विभक्ति होती है।
उदाहरण
प्रातिपदिकार्थमात्र उच्चैः (ऊँचा), नीचैः (नीचा), कृष्ण: (कृष्ण), श्री (लक्ष्मी), ज्ञानम् (ज्ञान, जानना) ।
लिंगमात्र तट, तटी तटम्।
परिमाणमात्र द्रोणो व्रीहि: (द्रोण परिमाण से मापा हुआ धन)।
संख्यामात्र एकः द्वौ बहवः ।
सम्बोधन में हे राम हे अर्जुन!
द्वितीया विभक्ति
(सूत्र – अभितः परितः समय निकषा-हा-प्रतियोगेऽपि) अभितः (चारों ओर), परितः (सब ओर), निकषा (समीप), हा, प्रति (ओर, तरफ) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है।
उदाहरण
बिलग्रामं निकषा गंगा प्रवहति ।
विद्यालयम् परितः वृक्षाः सन्ति ।
ग्रामम् परितः क्षेत्राणि सन्ति।
कार्यालयम् अभितः भवनानि सन्ति।
ग्रामम् अमितः वृक्षा सन्ति।
गुरु शिष्यान् प्रति कृपालु अस्ति।
ग्रामं परितः उपवनानि सन्ति ।
नदीं अभितः क्षेत्राणि सन्ति ।
विद्यालयं निकषा जलाशयः अस्ति।
ग्रामम् समया नदी अस्ति।
विद्यालयं उभयतः हरिताः वृक्षाः सन्ति।
ग्रामं अभितः वृक्षाः सन्ति।
हा ! कृष्णाभक्तम् ।
ग्रामं निकषा नदी वहति ।
ग्रामं निकषा वाटिका अस्ति।
पुष्पं परित: भ्रमराः सन्ति ।
वणिक धनं प्रति आसक्तः अस्ति।
माधवी विद्यालयं प्रति याति ।
कृपं परितः जनाः तिष्ठन्ति ।
तृतीया विभक्ति
(सूत्र 1 येनाङ्गविकारः) शरीर के अंगों में विकृति दिखाई पड़ने पर विकृत अंग के वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण
सः पादेन खञ्जः ।
दिलीपः शिरसा खल्वाटः ।
अक्ष्णा काण: ।
नेत्रेण काण: ।
सः पादेन खञ्जः अस्ति।
भिक्षुकः पादेन खञ्जः अस्ति।
भिक्षुकः नेत्रेण काणः अस्ति।
सः शिरसा खल्वाटः अस्ति।
सुरेशः शिरसा खल्वाटः अस्ति।
मन्थरा कट्या कुब्जा आसीत्।
(सूत्र 2 सहयुक्तेऽप्रधाने) सह, साकम्, सार्धम्, समम् के साथ वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण
छात्रा; अध्यापकेन सह क्रीडन्ति ।
अहमपि त्वया सार्धं यास्यामि।
रामेण सह सीता वनम् अगच्छत्।
माता पुत्रेण साकं श्वः आगमिष्यति।
सः बालिकाभिः सह कन्दुकं क्रीडति ।
गुरुणा सह शिष्यः अपि आगच्छति।
सः पुत्रेण सह आगतः ।
रामेण सह मोहनः गच्छति।
रामः लक्ष्मणेन सह वनम् अगच्छत्।
पित्रा सह पुत्रः गच्छति ।
पुत्रेण सह पिता गच्छति ।
बालिकाभिः सह जननी गृहं गच्छति।
सः मया सह कदापि न गच्छति।
पुत्री मात्रा सह आपणं गच्छति।
हरिणा सह राधा नृत्यति ।
(सूत्र 3 प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम् ) प्रकृति (स्वभाव) आदि क्रिया-विशेषण शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
अस्माकं प्रधानाचार्यः प्रकृत्या सज्जनः अस्ति ।
देवदत्तः जलेन मुखं प्रक्षालयति ।
प्रकृत्या साधुः ।
सः प्रकृत्या चञ्चलः अस्ति।
सः प्रकृत्या मृदुः अस्ति।
सः प्रकृत्या मृदुः न अस्ति।
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चतुर्थी विभक्ति
(सूत्र – नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च) नम:, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
उदाहरण
हनुमते नमः सीतायै नमः
श्री गुरवे नमः कृष्णाय नमः
दानार्थे चतुर्थी
माता पुत्राय फलानि यच्छन्ति
श्री गणेशाय नमः ।
इन्द्राय वषट्।
आग्नये स्वाहा।
रामाय नमः ।
कृष्णाय नमः।
गुरुवे नमः ।
पितृभ्यः स्वधा ।
प्रजाभ्यः स्वस्ति।
दैत्येभ्यः हरिः अलम्।
पंचमी विभक्ति
(सूत्र ध्रुवमपायेऽपादानम्) किसी वस्तु का ध्रुव (निश्चित) वस्तु से स्थायी अलगाव अपादान कहलाता है। ‘अपादाने पञ्चमी’ सूत्रानुसार अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
उदाहरण
वृक्षात् फलानि पतन्ति ।
वृक्षात् फलं पतति।
वृक्षात् पतितं फलं आनय ।
दिनेश: विद्यालयात् आगच्छति।
छात्रः विद्यालयात् गृहम् आगच्छति ।
मालाकार : उद्यानात् पुष्पाणि आनयति ।
मोहनः गृहात आगच्छति ।
षष्ठी विभक्ति
(सूत्र षष्ठी शेषे) कारक एवं प्रातिपदिकार्थ से भिन्न स्वस्वामिभाव आदि सम्बन्ध ‘शेष’ होने पर षष्ठी विभक्ति होती है।
उदाहरण
सुग्रीवः रामस्य सखा आसीत् ।
रामायणस्य कथा।
रामस्य गृहम् अस्ति।
कृष्णस्य पिता वासुदेवः ।
सुदामा कृष्णस्य मित्रम् आसीत्।
छात्रस्य पुस्तकम् अस्ति ।
सुवर्णस्य आभूषणम् बहुमूल्यम् अस्ति।
सुग्रीवस्य भ्राता बालिः आसीत्।
गङ्गायाः उदकम्।
राज्ञः पुत्रः ।
सप्तमी विभक्ति
(सूत्र 1 यतश्च निर्धारणम्) किसी वस्तु की अपने समुदाय से किसी विशेषण द्वारा कोई विशिष्टता दिखाई जाने पर समुदायवाचक शब्द में षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है।
उदाहरण
छात्रासु मंजरी श्रेष्ठा।
नगरेषु प्रयागः श्रेष्ठः अस्ति ।
छात्रेषु रामः श्रेष्ठतम्ः अस्ति।
छात्रेषु आशीषः श्रेष्ठः।
बालकेषु अरविन्दः श्रेष्ठः ।
छात्रासु रत्ना श्रेष्ठा।
कविषु कालिदासः श्रेष्ठः ।
काव्येषु नाटकं रम्यम्।
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