मुद्रा के मूल्य में प्रायः परिवर्तन होते रहते हैं। समाज में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों के स्थिर न होने के कारण, मुद्रा की क्रय-शक्ति में परिवर्तन होते हैं और उसका मूल्य बदल जाता है। मुद्रा के मूल्य में होने वाले इन परिवर्तनों का हमारे आर्थिक व सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
Index Number | सूचकांक संख्या – अर्थ, परिभाषा, महत्व, विशेषताएँ, प्रकार और सीमाएँ PDF Notes 2023
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मुद्रा का मूल्य उसकी क्रय-शक्ति पर आधारित होता है और सामान्य मूल्य-स्तर बदलने पर बदलता रहता है। मूल्य-स्तर के बढ़ जाने पर मुद्रा का मूल्य घट जाता है और उसके घटने पर बढ़ जाता है। इसलिए मुद्रा के मूल्य को मापने के लिए हमें सामान्य मूल्य-स्तर का अध्ययन करना होता है।
सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तन ही मुद्रा के मूल्य के परिवर्तनों को सूचित करते हैं। मुद्रा के मूल्य को जानने के लिए हमें सामान्य मूल्य-स्तर ज्ञात होना चाहिए। किन्तु किसी भी समय पर मूल्य-स्तर का जानना सरल नहीं है, क्योंकि विभिन्न वस्तुओं के मूल्य विभिन्न दिशाओं में बदलते हैं। सब वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में एक साथ तथा एक ही दिशा में परिवर्तन नहीं होते हैं।
जब कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य बढ़ते हैं तो अन्य कुछ वस्तुओं के मूल्य गिर सकते हैं और इस प्रकार यह परिवर्तन विभिन्न दिशाओं में हुआ करते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य एक-सी तीव्रता के साथ नहीं बदलते हैं।
इन सब विभिन्नताओं के कारण सामान्य मूल्य-स्तर को नापना काफी कठिन हो जाता है और उसका सही मापन करना सम्भव नहीं है। सूचकांक, मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों को मापने का एकमात्र साधन है। उनके द्वारा मूल्य-स्तर की केन्द्रीय प्रवृत्ति को मापा जा सकता है।
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सूचकांक (निर्देशांक) का अर्थ (Meaning of Index Number)
सूचकांक, मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों को नापने का एक साधन है। इसके द्वारा मूल्य के स्तर की केन्द्रीय प्रवृत्ति को मापा जा सकता है। सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर ही हम मुद्रा की क्रय शक्ति में होने वाले परिवर्तनों को जान सकते हैं। बढ़ता हुआ सूचकांक हमें यह बताता है कि सामान्य मूल्य-स्तर बढ़ रहा है तथा मुद्रा का मूल्य गिर रहा है।
इसके विपरीत, यदि सूचकांक गिरता है तो वह इस बात का संकेत देता है कि सामान्य मूल्य-स्तर गिर रहा है और मुद्रा का मूल्य बढ़ रहा है। सूचकांक मुद्रा के मूल्य की निरपेक्ष माप प्रस्तुत नहीं करते। उनके द्वारा केवल मुद्रा के मूल्य में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तनों को मापा जा सकता है तथा विभिन्न समय में मूल्य स्तर की तुलना की जा सकती है। किसी निश्चित समय पर मूल्य-स्तर कितना है, इसे सूचकांक द्वारा नहीं बताया जा सकता, अपितु किसी दूसरे समय की अपेक्षा यह कितना बढ़ गया है अथवा कम हो गया है, इसे हम सूचकांकों की सहायता से जान सकते हैं।

मान लीजिए कि भारत में 2023 ई० में गेहूँ का भाव 1000 रुपये प्रति क्विण्टल था तथा 2025 ई० में बढ़कर 1100 रुपये प्रति क्विण्टल हो गया, तो 2023 ई० की तुलना में 2025 ई० में गेहूँ के भाव में 10% की वृद्धि हुई। इस प्रकार के तुलनात्मक दृष्टिकोण से प्राप्त प्रतिशतों को ही निर्देशांक या सूचकांक कहा जाता है। सूचकांक का आविष्कार इटली निवासी कार्ली ने 1764 ई० में किया था।
सूचकांक की परिभाषाएँ ( Definition of index Number )
विभिन्न विद्वानों द्वारा सूचकांक या निर्देशांक को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया गया है
- डॉ० बाउले के अनुसार, “सूचकांक किसी मात्रा में होने वाले ऐसे परिवर्तनों की माप करते हैं, जिनका हम प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन नहीं कर सकते हैं।”
- चैण्डलर के अनुसार, “कीमतों का सूचकांक आधार, वर्ष की औसत कीमतों की ऊँचाई की तुलना में किसी अन्य समय पर उनकी ऊँचाई को प्रकट करने वाली संख्या होता है।”
- होरेस सेक्रिस्ट के अनुसार, “सूचकांक अंकों की एक ऐसी श्रेणी है, जिसके द्वारा किसी भी तथ्य के परिणाम में होने वाले परिवर्तनों को समय या स्थान के अनुसार मापा जा सकता है।
- मरे स्पाइगल के अनुसार, “सूचकांक एक सांख्यिकीय माप है जो समय, भौगोलिक स्थिति अथवा अन्य विशेषताओं के आधार पर किसी चर मूल्य अथवा सम्बन्धित चर मूल्यों के समूह में होने वाले परिवर्तनों को प्रदर्शित करता है।”
- वेसेल, विलेट तथा सिमोन के अनुसार, “सूचकांक एक विशिष्ट प्रकार का माध्य है जो समय या स्थान के आधार पर होने वाले सापेक्ष परिवर्तनों का मापन करता है।”
सूचकांकों का महत्त्व (Importance of Index Numbers)
वर्तमान समय में आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों के मापन तथा उनके विश्लेषण की दृष्टि से सूचकांक अथवा निर्देशांक एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपकरण बन चुका है। यही कारण है कि
सूचकांकों को आर्थिक वायुमापक यन्त्र कहकर सम्बोधित किया गया है। सूचकांक का महत्त्व आर्थिक व्यावसायिक एवं राजनीतिक सभी दृष्टिकोणों से है। सूचकांकों के अभाव में उपभोग, उत्पादन, मुद्रा का मूल्य, वस्तुओं का मूल्य, माँग-पूर्ति जैसी समस्याओं का व्यापक अध्ययन व समाधान असम्भव ही है।
सूचकांकों के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रीय आय की वास्तविकता का ज्ञान सूचकांकों के द्वारा ही होता है। सूचकांकों के द्वारा यह जानकारी प्राप्त हो जाती है कि वास्तविक राष्ट्रीय आय में परिवर्तन की सामान्य प्रवृत्ति क्या है? इसके ज्ञात होने पर ही आर्थिक विकास के नियोजित कार्यक्रमों की रूपरेखा बनायी जा सकती है।
(2) सूचकांकों के माध्यम से सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकता है. अर्थात् इसके माध्यम से मुद्रा की क्रय शक्ति में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकता है।
(3) निर्वाह-व्यय सूचकांकों द्वारा मजदूरी के परिवर्तनों को जाना जाता है। इसी आधार पर मजदूरी,महँगाई भत्ते आदि में वृद्धि या कमी की जाती हैं। वर्तमान समय में मजदूरी एवं महँगाई भत्तों के निर्धारण में सूचकांक ही आवश्यक सूचनाएं प्रदान करते हैं।
(4) सूचकांक -आर्थिक जगत् में होने वाले परिवर्तनों का ज्ञान कराते हैं। इसके आधार पर ही सरकार करारोपण, सार्वजनिक व्यय, ऋण, बैंक-साख, ब्याज दर सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण करती है। सरकार को बजट निर्माण में भी इससे सहायता मिलती है।
(5) सूचकांकों की सहायता से जटिलतम एवं कठिनतम तथ्यों को भी सरल रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए व्यापारिक क्रियाओं का मापन केवल किसी एक तथ्य के अध्ययन से सम्भव नहीं होता, वरन् इसके लिए उत्पादन, आयात-निर्यात, लाभ, बैंकिंग एवं यातायात से सम्बन्धित अनेक तथ्यो का अध्ययन करना होता है जो कि केवल सूचकांक की सहायता से ही हो सकता है।
(6) सूचकांक सापेक्ष परिवर्तनों को मापते हैं; अतः इनकी सहायता से तुलनात्मक अध्ययन सुविधाजनक हो जाता है। यह तुलना विभिन्न स्थानों या समयों के बीच भी की जा सकती है।
(7) विश्व के सभी राष्ट्रों के द्वारा सूचकांक तैयार किये जाते हैं। मूल्यों में परिवर्तन, उत्पादनों, व्यावसायिक परिवर्तनों आदि के सूचकांक की रचना करके अन्य राष्ट्रों से उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। ‘विश्व बैंक मुद्रा कोष’ द्वारा भी विभिन्न राष्ट्रों से सम्बन्धित आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के सूचकांक तैयार किये जाते हैं।
(8) सूचकांक अनेक प्रकार के होते हैं एवं इनकी रचना अनेक प्रकार से की जाती है। अतः विभिन्न प्रकार के सूचकांक जनसाधारण को अनेक प्रकार से लाभ पहुँचाते हैं। सूचकांकों द्वारा प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर ही लोग भावी परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाते है। उन्हें आय की वास्तविक क्रय-शक्ति की जानकारी भी सूचकांकों के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
(9) सूचकांकों द्वारा भूतकाल को आधार मानकर वर्तमान का अध्ययन किया जाता है, जिससे प्राप्त निष्कर्षो में भावी प्रवृत्तियों की एक झलक भी छिपी रहती है जिसके आधार पर विद्वान् भावी योजनाओं व प्रवृत्तियों का निर्माण एवं पूर्वानुमान करते हैं।
सूचकांकों की विशेषताएँ (Characteristics of Index Numbers)
सूचकांकों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- सूचकांक सर्वदा सापेक्षिक माप के रूप में ही कार्य करते हैं, क्योंकि निरपेक्ष रूप में प्रस्तुतीकरण की स्थिति में उनका तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया जा सकता; अतः तुलनात्मक अध्ययन करने हेतु इन्हें सापेक्षिक बनाया जाता है।
- सूचकांक परिवर्तन की दिशा को औसत के रूप में व्यक्त करता है। ये किसी एक वस्तु के मूल्यों में परिवर्तन की केवल एक ही दिशा का मापन नहीं करते बल्कि समान्य रूप में परिवर्तन की दिशा का मापन करते है। उदाहरण के लिए— यदि कुछ वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं तो सम्भव है कि कुछ की कीमतें घट भी रही हों, पर सामान्य या औसत प्रवृत्ति बढ़ने की हो। इस प्रकार सूचकांक सामान्य या औसत प्रवृत्ति को बताते हैं।
- सूचकांक केवल संख्या में ही व्यक्त किये जाते हैं; अर्थात् ये केवल ऐसे उच्चावचनों एवं परिवर्तनों को प्रदर्शित करते हैं जो अंकों या संख्याओं में व्यक्त किये जा सकें। किसी तथ्य में होने वाले परिवर्तन की वर्णनात्मक व्याख्या सूचकांक नहीं करते।
- सूचकांक एक विशेष प्रकार के माध्य होते हैं जो परिवर्तनों को औसत रूप में मापते हैं। साधारण माध्य में समंक एक रूप में होते हैं तथा उनकी मापन इकाई समान होती है, लेकिन सूचकांकों में विभिन्न इकाइयों में व्यक्त समंको का माध्य लिया जाता है। वास्तव में, सूचकांक मूल्यानुपातों का औसत है; अतः ये विशेष प्रकार के माध्य हैं।
- निर्देशांक या सूचकांक का प्रयोग केवल मूल्य-स्तर के मापन हेतु ही नहीं किया जाता है, वरन् ऐसे सभी तथ्यों के लिए किया जाता है जिनकी निरपेक्ष माप या प्रत्यक्ष माप सम्भव नहीं होती। आधुनिक युग में सामान्यतः सरकार की नीतियों के आधार सूचकांक ही होते हैं। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों, नीतियों तथा गतिविधियों का संचालन सूचकांकों के आधार पर ही किया जाता है। आज अनेक देशों ने नियोजन को विकास का आधार बनाया है और नियोजन का आधार निर्देशांक या सूचकांक होते हैं।
सूचकांको के प्रकार (Types Of Index Number)
सूचकांक विभिन्न उद्देश्यों को लेकर बनाये जाते हैं। इनके द्वारा हम केवल मुद्रा की क्रय-शक्ति को ही नहीं मापते, वरन् उनकी सहायता से आर्थिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं को भी माप सकते हैं। विभिन्न उद्देश्यों के लिए विभिन्न प्रकार के सूचकांकों का निर्माण किया जाता है, जिनमें से निम्नलिखित मुख्य है—
(1) सामान्य मूल्य सूचकांक
इस सूचकांक का निर्माण मुद्रा की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के सूचकांकों को बनाने के लिए उन वस्तुओं तथा सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है, जो लोगों के द्वारा सामान्यतः उपभोग की जाती हैं। विभिन्न वस्तुओं को उन पर व्यय की जाने वाली आय के अनुपात में भार दिया जाता है।
इसका निर्माण करते समय, उपभोग की जाने वाली समस्त वस्तुओं को सम्मिलित करना सम्भव नहीं होता, इसलिए इसे केवल प्रतिनिधि वस्तुओं के आधार पर ही बनाया जाता है। इस प्रकार के सूचकांक बनाते समय मुख्यतया थोक मूल्यों का प्रयोग किया जाता है। इसे बनाना अत्यधिक कठिन होता है और इनकी उपयोगिता भी सीमित है, क्योंकि ये मुद्रा की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तनों का सही अनुमान नहीं दे पाते।
(2) श्रमिकों के जीवन-निर्वाह व्यय सूचकांक
यह सूचकांक मजदूरों के रहन-सहन के व्यय में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बनाये जाते हैं। इनकी सहायता से हम श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। रहन-सहन व्यय सूचकांक बनाने के लिए केवल उन्हीं वस्तुओं को लिया जाता है, जिन पर श्रमिक वर्ग प्रायः अपनी आय को व्यय करता है। विभिन्न वस्तुओं को उनके महत्त्व के अनुसार भार दिया जाता है। वस्तुओं को दिये जाने वाले भार किसी विशेष मण्डल द्वारा निश्चित किये जाते हैं।
(3) थोक कीमतों के सूचकांक
इस प्रकार के सूचकांक वस्तुओं के थोक मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बनाये जाते हैं। इन्हें बनाते समय कच्चे माल, अर्द्धनिर्मित वस्तुओं तथा तैयार माल के मूल्यों को सम्मिलित किया जाता है। विभिन्न वस्तुओं को देश की अर्थव्यवस्था में उनके तुलनात्मक महत्त्व के अनुसार भार दिया जाता है, जो उत्पत्ति की गणना के आधार पर निश्चित किये जाते हैं।
इन सूचकांकों का प्रयोग भी मुद्रा की क्रय-शक्ति को नापने के लिए किया जाता है, किन्तु इस कार्य के लिए वे पूर्णतया सन्तोषजनक नहीं होते। वे केवल थोक मूल्यों के आधार पर बनाये जाते हैं, जब कि उपभोक्ता अपनी वस्तुओं को फुटकर मूल्य पर खरीदते हैं। इसलिए ये उपभोक्ताओं के लिए मुद्रा की क्रय शक्ति में होने वाले परिवर्तनों को नहीं बता सकते।
(4) औद्योगिकीय सूचकांक
इन सूचकांकों का प्रयोग देश की औद्योगिक स्थिति में परिवर्तन तथा विभिन्न उद्योगों की प्रगति को जानने के लिए किया जाता है। प्रायः विभिन्न उद्योगों की उत्पत्ति का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए इन्हें बनाया जाता है। सर्वप्रथम आधार वर्ष में भिन्न-भिन्न उद्योगों के उत्पादन सम्बन्धी आँकड़े इकट्ठे किये जाते हैं और फिर अन्य वर्षों की उत्पत्ति के आँकड़े इकट्ठे करते हैं। आधार वर्ष के उत्पादन को 100 मानकर अन्य वर्षों के उत्पादन की उससे तुलना की जाती है। उत्पादन सूचकांक में जितने प्रतिशत की वृद्धि होती है, उसी अनुपात में उस उद्योग का उत्पादन बढ़ा हुआ होता है।
सूचकांकों की सीमाएँ (Limitations of Index Numbers)
सूचकांक यद्यपि एक उपयोगी सांख्यिकीय उपकरण है, किन्तु इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं। इन सीमाओं को जाने बिना सूचकांकों के निष्कर्ष भ्रम उत्पन्न कर सकते हैं। ये सीमाएँ निम्नलिखित हैं
(1) सूचकांक, परिवर्तन की केवल औसत प्रवृत्ति को ही प्रकट करते हैं; अतः इनसे परिवर्तनों की पूर्ण वास्तविकता का पता नहीं चलता।
(2) सूचकांकों के निष्कर्ष समूह पर सामान्य रूप से ही लागू होते हैं। यह भी सम्भव है कि किन्हीं एक या अधिक इकाइयों पर वे निष्कर्ष लागू न हो।
(3) सूचकांक बनाने की विभिन्न रीतियाँ हैं; अतः एक ही उद्देश्य के लिए विभिन्न रीतियों से बनाये गये सूचकांक भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
(4) आधार वर्ष का ठीक चुनाव न होने की स्थिति में सूचकांक भ्रामक निष्कर्ष दे सकते हैं।
(5) सूचकांकों की गणना करते समय वस्तु के गुणात्मक पक्ष की ओर ध्यान नहीं दिया जाता।।
(6) सूचकांकों की रचना नमूनों के आधार पर की जाती है; अतः इसके निष्कर्ष शुद्धता के निकट होते है।
महत्वपूर्ण (Important)
मुद्रा के मूल्य में प्रायः परिवर्तन होते रहते हैं। समाज में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों के स्थिर न होने के कारण, मुद्रा की क्रय-शक्ति में परिवर्तन होते हैं और उसका मूल्य बदल जाता है। मुद्रा के मूल्य में होने वाले इन परिवर्तनों का हमारे आर्थिक व सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
मुद्रा का मूल्य उसकी क्रय-शक्ति पर आधारित होता है और सामान्य मूल्य-स्तर बदलने पर बदलता रहता है। मूल्य-स्तर के बढ़ जाने पर मुद्रा का मूल्य घट जाता है और उसके घटने पर बढ़ जाता है। इसलिए मुद्रा के मूल्य को मापने के लिए हमें सामान्य मूल्य-स्तर का अध्ययन करना होता है। सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तन ही मुद्रा के मूल्य के परिवर्तनों को सूचित करते हैं। मुद्रा के मूल्य को जानने के लिए हमें सामान्य मूल्य-स्तर ज्ञात होना चाहिए। किन्तु किसी भी समय पर मूल्य-स्तर का जानना सरल नहीं है, क्योंकि विभिन्न वस्तुओं के मूल्य विभिन्न दिशाओं में बदलते हैं।
सब वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में एक साथ तथा एक ही दिशा में परिवर्तन नहीं होते हैं। जब कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य बढ़ते हैं तो अन्य कुछ वस्तुओं के मूल्य गिर सकते हैं और इस प्रकार यह परिवर्तन विभिन्न दिशाओं में हुआ करते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य एक-सी तीव्रता के साथ नहीं बदलते हैं।
इन सब विभिन्नताओं के कारण सामान्य मूल्य-स्तर को नापना काफी कठिन हो जाता है और उसका सही मापन करना सम्भव नहीं है। सूचकांक, मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों को मापने का एकमात्र साधन है। उनके द्वारा मूल्य-स्तर की केन्द्रीय प्रवृत्ति को मापा जा सकता है।
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