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Study Materialसामान्य ज्ञान

Democracy लोकतंत्र | लोकतंत्र क्या है, अर्थ, परिभाषा, गुण, दोष और सिद्धान्त – Easy Notes 2022

Akhilesh Kumar
Last updated: 2022/10/11 at 9:02 PM
Akhilesh Kumar Published October 11, 2022
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पिछले समय से आज तक शासन व्यवस्था मुख्य रूप से तीन प्रकार से प्रचलित है राजतन्त्र, कुलीनतंत्र और लोकतन्त्र पुराने समय मे साधारण रूप से मुख्यतः कुलीनतंत्रात्मक या राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्थाएं प्रचलित रही है ।

Contents
लोकतंत्र क्या हैलोकतंत्र की परिभाषालोकतंत्र के भेदलोकतंत्र का सिद्धान्तलोकतंत्र की विशेषताएँलोकतंत्र के गुणलोकतंत्र के दोषलोकतंत्र की सफलता के लिये आवश्यकताभारत में लोकतंत्रमहत्वपूर्ण Notes

Democracy लोकतंत्र | लोकतंत्र क्या है, अर्थ, परिभाषा, गुण, दोष और सिद्धान्त – Easy Notes 2022

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एक लम्बे समय के ऐतिहासिक अनुभव से स्पष्ट हुआ कि राजतंत्र या कुलीनतंत्र लोगो के हितों में कार्य न करके अपने लिये या कुछ विशेष लोगों के मतलब को ध्यान में रखकर कार्य करते थे।

Democracy लोकतंत्र | लोकतंत्र क्या है, अर्थ, परिभाषा, गुण, दोष और सिद्धान्त - Easy Notes 2022

कुलीनतंत्र शासन व्यवस्था में विशेष रूप से एक वर्ग के लिये कार्य किये जाते थे जिससे जनसाधारण वर्ग की समस्याओं को दरकिनार किया जाता था ।

इस प्रकार का शासन निरंकुश होने के कारण शासन शक्ति का भृष्ट रूप प्रयोग किया जा सकता है

लोकतंत्र क्या है

लोकतंत्र का पर्यायवाची डेमोक्रेसी (Democracy) एक ग्रीक शब्द है । जिसका अर्थ जनता की शक्ति है । इस प्रकार शासन के रूप में लोकतंत्र उस शासन प्रणाली को कहते है जिसमे जनता प्रत्यक्ष रूप से अप्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि को चुनती है ।

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लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने हुये प्रतिनिधि द्वारा ही शासन किया जाता है , लोकतंत्र में शासन का अस्तित्व जनता के हितों की रक्षा के लिये होता है ।

लोकतंत्र में सरकार हमेशा एक साधन के रुप मे होती है जो जनता के हितों के अनुसार कार्य और शासन करती है सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

यदि शासक द्वारा अपनी शक्ति का प्रयोग जनता के हितों के लिये न किया जाय तो जनता द्वारा ही शासन में परिवर्तन किया जाता है । जनता समय समय पर होने वाले चुनाव के माध्यम से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है और इसमें परिवर्तन भी होता रहता है ।

लोकतंत्र की परिभाषा

विद्वानों द्वारा दी गयी लोकतंत्र की परिभाषायें निम्नलिखित है –

अब्राहम लिंकन “लोकतन्त्र शासन वह शासन है जिसमें शासन जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए हो।"

डायसी  “लोकतन्त्र शासन का वह प्रकार है जिसमें शासक समुदाय सम्पूर्ण राष्ट्र का अपेक्षाकृत एक बड़ा भाग हो।

हेरोडोटस  "लोकतन्त्र सरकार का वह स्वरूप है जिसमें राज्य की सर्वोच्च सत्ता सम्पूर्ण समाज के हाथों में हो।"

सीले  'लोकतन्त्र वह शासन है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का एक भाग होता है। 

 ब्राइस  “लोकतन्त्र शासन का वह रूप है जिसमें राज्य के शासन की शक्ति किसी विशेष वर्ग या वर्गों में निहित न होकर समस्त जनसमुदाय में निहित होती है।'

लोकतंत्र के भेद

1.प्रत्यक्ष लोकतन्त्र (Direct Democracy) जब प्रभुसत्तावान् जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग लेती, नीति निर्धारित करती, कानून बनाती और प्रशासनाधिकारी नियुक्त कर उन पर नियन्त्रण रखती है, तो उसे प्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं,

प्राचीन काल में ग्रीक नगर राज्यों और भारत के वज्जि संघ में प्रत्यक्ष लोकतन्त्रीय शासन ही प्रचलित था और वर्तमान समय में स्विट्ररलैण्ड के कुछ कैण्टनों में यह शासन व्यवस्था प्रचलित है।

प्रसिद्ध विचारक रूसो ने प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का समर्थन किया था। उसने राज्य की जनसंख्या 10,000 निर्धारित की थी। इस प्रकार की प्रत्यक्ष लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था कम जनसंख्या वाले छोटे राज्यों में ही सम्भव हो सकती है और वर्तमान समय के विशाल राष्ट्रीय राज्यों में इसे अपनाना सम्भव नहीं है।

2. अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र (Indirect Democracy) जब प्रभुसत्तासम्पन्न जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से इस प्रकार की प्रभुसत्ता का प्रयोग न कर अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से कार्य करती है तो इसे अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं।

इस प्रणाली में जनता संविधान द्वारा निर्धारित एक निश्चित समय के लिए अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है जिसे कानून निर्माण करने वाली व्यवस्थापिका का निर्माण होता है ।

संसदात्मक शासन में तो इस व्यवस्थापिका में से ही कार्यपालिका का निर्माण किया जाता है ।

लोकतंत्र का सिद्धान्त

मोटे तौर पर लोकतन्त्र के दो सिद्धान्त हैं : प्रथम उदारवादी या आदर्शवादी सिद्धान्त जिसमें लोकतन्त्र को जनता का ऐसा शासन मानते हैं, जो जनता की सहमति पर आधारित है तथा वहां व्यक्तियों के अधिकार व स्वतन्त्रताएं सुरक्षित हैं।

इसमें प्रजातन्त्र को एक शासन व्यवस्था का रूप न मानकर एक जीवन शैली माना गया है। ऊपर प्रजातन्त्र की जिन मूल विशेषताओं का वर्णन किया गया है। वह आदर्शवादी या उदारवादी प्रजातन्त्र की विशेषताएं हैं।

आधुनिक युग में कतिपय राजनीतिक विचारकों ने व्यावहारिक या आनुभविक दृष्टि से प्रजातन्त्र की व्याख्या की है तथा उनका मानना है कि व्यवहार में प्रजातन्त्र जनता का शासन नहीं होता।

इन विचारों का प्रतिपादन दो सिद्धान्तों द्वारा किया गया है। प्रथम प्रजातन्त्र का अभिजन सिद्धान्त जो मास्का, परेटो, मिचेल, शुम्पीटर आदि के विचारों पर आधारित है।

अभिजन सिद्धान्त के अनुसार व्यावहारिक दृष्टि से प्रजातन्त्र में शासन मुट्ठीभर लोगों के हाथ में होता है जिन्हें अभिजन कहते हैं। प्रजातान्त्रिक पद्धति केवल अभिजनों को समय-समय पर बदलने की पद्धति है अर्थात् प्रजातन्त्र एक जीवन शैली न होकर शासकों (अभिजनों) को चुनने की पद्धति है।

दूसरा प्रजातन्त्र का बहुलवादी सिद्धान्त है जिसका समर्थन आर. एच. दहल, कार्ल मैनहीम, रेमण्ड एरों आदि विचारकों ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार लोकतन्त्र विभिन्न प्रतियोगी समूहों में चुनाव करने की एक विधि है।

व्यक्ति के स्थान पर विभिन्न संगठित समूह की राजनीतिक प्रक्रिया की महत्वपूर्ण इकाई। व्यक्ति समूहों के माध्यम से ही राजनीति में भाग लेते हैं। अतः इन सिद्धान्तों के अनुसार लोकतन्त्र शासकों के चयन की एक विधि मात्र है।

लोकतंत्र की विशेषताएँ

लोकतंत्र की विशेषताएँ निम्नलिखित है –

  • शक्ति विभाजन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता
  • बहुमत का शासन
  • मानवीय विवेक में विश्वास
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्मान
  • राजनीतिक स्वतंत्रता
  • नागरिक स्वतंत्रता
  • राजनीतिक समानता
  • नागरिक समानता
  • लोकप्रिय नियंत्रण की व्यवस्था
  • लोकप्रिय प्रभाव
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता
  • शक्ति विभाजन की स्वतंत्रता
  • लोक प्रभुता में विश्वास
  • लोकप्रिय ओर समय समय पर चुनाव

लोकतंत्र के गुण

लोकतंत्र के गुण संक्षिप्त में इस प्रकार है ।

  1. सभी शासन शिक्षा के साधन होते है लेकिन अच्छी शिक्षा स्वशिक्षा है इसलिए सबसे अच्छा शासन स्वशासन है जिसे लोकतंत्र कहते है
  2. लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने हुये प्रतिनिधियों द्वारा शासन किया जाता है ।
  3. लोकतंत्र स्वतंत्रता जनता का जन्म सिद्ध अधिकार माना गया है
  4. समानता का अधिकार होने के कारण यह सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था है ।
  5. लोकतंत्र में व्यक्ति अपने अधिकारों के लिये चुनोती दे सकता है ।
  6. लोकतंत्र की वजह से लोगों में देश भक्ति की भावना अधिक होती है ।
  7. लोकतंत्र का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके नैतिक चरित्र को उच्च करता है ।
  8. लोकतंत्र किसी दूसरी शासन प्रणाली की व्यवस्था की अपेक्षा अधिक कार्यकुशल है ।
  9. लोकतंत्र में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होता है ।
  10. लोकतंत्र में सभी की प्रतिभा के अवसर प्राप्त होते है ।
  11. इस शासन प्रणाली में सामाजिक गुणों का विकास होता है ।
  12. लोकतंत्रीय सरकारें शान्ति और सह अस्तित्व में विश्वास करती है ।
  13. वैज्ञानिक विकास के लिये उपर्युक्त ।

लोकतंत्र के दोष

अगर इस शासन प्रणाली के गुण है तो कुछ दोष भी है जो निम्नलिखित है ।

  1. गुण की अपेक्षा संख्या को महत्व
  2. दल प्रणाली का अहितकर प्रभाव
  3. अयोग्यता की पूजा
  4. भृष्ट शासन व्यवस्था
  5. धनवानों का शासन
  6. अनुत्तरदायी शासन
  7. सार्वजनिक धन और समय का अपव्यय
  8. उन्नति की असंभावना
  9. राजनीतिक शिक्षा का दम्भ
  10. उत्तेजना की प्रबलता
  11. मतदाताओं की उदासीनता
  12. पेशेवर राजनीतिज्ञ व्यक्तियों का विकास
  13. युद्ध और संकट के समय कमजोर होना
  14. सच्चा लोकतंत्र सम्भव नही

लोकतंत्र की सफलता के लिये आवश्यकता

(1) शिक्षित एवं जागरूक जनता

(2) नागरिकों का नैतिक उत्थान

(3) आर्थिक समानता

(4) नागरिक स्वतन्त्रताएं

(5) लिखित संविधान और प्रजातान्त्रिक परम्पराएं

(6) समानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था

(7) स्थानीय स्वशासन

(8) स्वस्थ और सुदृढ़ राजनीतिक दल

(9) बुद्धिमान और सतर्क नेतृत्व

(10) स्वतन्त्र प्रेस

(11) समाज में एकता की भावना

(12) योग्य और निष्पक्ष नागरिक सेवाएं

(13) विश्वशान्ति की स्थापना

भारत में लोकतंत्र

स्वतन्त्रता प्राप्त होने के कुछ समय पूर्व ही भारत में एक संविधान सभा की स्थापना की गयी थी, जिसने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान निर्माण का कार्य पूर्ण किया और 26 जनवरी, 1950 से यह संविधान लागू किया गया।

संविधान द्वारा भारत में एक प्रजातन्त्रात्मक गणराज्य की स्थापना की गयी और प्रजातन्त्र के आधारभूत सिद्धान्त ‘वयस्क मताधिकार को स्वीकार किया गया। संविधान के द्वारा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गयी और नागरिकों को शासन के हस्तक्षेप से स्वतन्त्र रूप में मौलिक अधिकार प्रदान किये गये।

व्यवहार में भी भारतीय नागरिक इन स्वतन्त्रताओं का पूर्ण उपयोग कर रहे हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान आदर्श रूप में एक लोकतन्त्रात्मक संविधान है।

संविधान निर्माण के समय संविधान सभा के अन्दर व बाहर, भारत व विदेशों में भारतीय जनता की राजनीतिक जागरूकता के प्रति बहुत अधिक शंका व्यक्त की गयी थी ।

लेकिन अब तक जिस शान्तिपूर्ण ढंग से पन्द्रह आम चुनाव सम्पन्न हुए हैं तथा भारत की अशिक्षित जनता ने अब तक जिस विवेक के आधार पर लोकतन्त्र के प्रति अपनी आस्था का परिचय दिया और अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रयोग किया है ।

उसके आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय नागरिक एक प्रजातन्त्रात्मक देश के सुयोग्य नागरिकों के समान आचरण कर सकते हैं और उन्होंने इसी रूप में आचरण किया है।

महत्वपूर्ण Notes

भारत का इतिहास Indian History in Hindi | प्राचीन भारत,मध्यकालीन भारत और आधुनिक भारत – Free Notes 2022

पर्यावरण संरक्षण क्या है | अर्थ, परिभाषा, महत्व, पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार और प्रभाव – Free Notes 2022-23

सामान्य ज्ञान Samanya Gyan | के 2000+ पश्नोत्तर CTET, UPTET, HTET, SSC, UPSC , All EXAM, Easy Notes

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Sanskrit Ke kavi aur Rachnayen | संस्कृत के कवि और रचनाएँ – CTET,UPTET,HTET,MPTET – Free Notes :2022

लोकतंत्र English Notes https://www.coe.int/en/web/compass/democracy

हमारे द्वारा दी हुई जानकारी पर आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें ।

धन्यवाद…

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