ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है ? ऑपरेटिंग सिस्टम प्रत्येक कम्प्यूटर सिस्टम का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसका प्रमुख कार्य यूजर और हार्डवेयर के बीच एक इण्टरफेस (Interface) प्रदान करना है।
यह इण्टरफेस एक यूजर को अधिक कुशल तरीके से हार्डवेयर रिसोर्सेज (Resources) का उपयोग करने की सुविधा प्रदान करता है।
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ऑपरेटिंग सिस्टम का स्ट्रक्चर (Structure of Operating System)
ऑपरेटिंग सिस्टम एक बड़ा और जटिल (Very Large and Complex) सॉफ्टवेयर है, जो बड़ी संख्या में फंक्शन्स (Large Number of Functions) का समर्थन (Support) करता है,
अतः ऑपरेटिंग सिस्टम का डेवलमेंट (Development) एक मोनोलिथिक सॉफ्टवेयर (Monolithic Software) के रूप में न होकर कई छोटे-छोटे मॉड्यूल्स (Modules) कलेक्शन के रूप में होना चाहिए।
इनमें से प्रत्येक मॉड्यूल्स के इनपुट (Inputs), आउटपुट (Outputs) तथा कार्य (Function) अच्छी तरह से परिभाषित होने चाहिए। ऑपरेटिंग सिस्टम के विभिन्न स्ट्रक्चर्स (Structures) निम्न प्रकार हैं
(1) लेयर्ड स्ट्रक्चर एप्रोच (Layered Structure Approach)
लेयर्ड स्ट्रक्चर एप्रोच, ऑपरेटिंग सिस्टम को विभिन्न लेयरों में विभाजित कर, उसे डेवलप (Develop) करने का एक मेथड (Method) है।
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प्रत्येक लेयर नीचे वाली लेयर के शीर्ष (Top) पर दे बनाई जाती है। सबसे नीचे (Bottom) की लेयर हार्डवेयर (Hardware) की होती है, जबकि सबसे ऊपर (Highest) की लेयर यूजर इंटरफेस की (User Interface) होती है।
(2) कर्नेल एप्रोच (Kernel Approach)
कर्नेल एप्रोच में ऑपरेटिंग सिस्टम को दो अलग-अलग भागों में बाँटकर डिजाइन और डेवलप (Develop) किया जाता है अर्थात् कर्नेल एप्रोच द्वारा बनाया गया ।
ऑपरेटिंग सिस्टम दो अलग-अलग भागों का बना होता है। एक भाग को कर्नेल (Kernel) कहा जाता है तथा दूसरे भाग में सिस्टम प्रोग्राम्स (System Programs) होते हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य (Functions of Operating System)
ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर के सफल संचालन की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभता है। इसके प्रमुख कार्य चार प्रकार के होते हैं
(1) प्रोसेसिंग प्रबन्धन (Processing Management)
कम्प्यूटर के सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU) के प्रबन्धन का कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है।
यह प्रबन्धन इस प्रकार से होता है कि सभी प्रोग्राम एक-एक करके निष्पादित (Execute) होते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम सभी प्रोग्रामों के समय को सीपीयू के लिए विभाजित कर देता है।
(2) मैमोरी प्रबन्धन (Memory Management)
प्रोग्राम के सफल एक्जीक्यूशन के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम मैमोरी प्रबन्धन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। जिसके अन्तर्गत कम्प्यूटर मैमोरी में कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं ।
जिनका विभाजन प्रोग्रामों के मध्य किया जाता है तथा साथ ही यह भी ध्यान में रखा जाता है कि प्रोग्रामों को मैमोरी के अलग-अलग स्थान प्राप्त हो सकें।
किसी भी प्रोग्राम को इनपुट एवं आउटपुट करते समय आँकडों एवं सूचनाओं को अपने निर्धारित स्थान संग्रहीत करने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम का है।
(3) इनपुट-आउटपुट डिवाइस प्रबन्धन (Input-Output Device Management)
डेटा को इनपुट यूनिट से पढ़कर मैमोरी में उचित स्थान पर संग्रहीत (Store) करने एवं प्राप्त परिणाम को मैमोरी से आउटपुट यूनिट तक पहुँचाने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम का ही होता है।
प्रोग्राम लिखते समय कम्प्यूटर को केवल यह बताया जाता है कि हमें क्या इनपुट करना है और क्या आउटपुट लेना है? बाकी का कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है।
(4) फाइल प्रबन्धन (File Management)
ऑपरेटिंग सिस्टम फाइलों को एक सुव्यवस्थित ढंग से किसी डायरेक्टरी में संग्रहीत करने की सुविधा प्रदान करता है।
किसी प्रोग्राम के निष्पादन के समय इसे सेकेण्डरी मैमोरी से पढ़कर प्राइमरी मैमोरी में डालने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है
ऑपरेटिंग सिस्टम के अन्य महत्वपूर्ण कार्य
- ऑपरेटिंग सिस्टम यूजर को एक आसान सा इण्टरफेस प्रदान करता है ताकि वह कम्प्यूटर का प्रयोग सरलतापूर्वक कर सके।
- कम्प्यूटर पर कार्य करने वाले यूजर का एकाउण्ट व्यवस्थित रखने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है एवं इस बात का ध्यान रखता है कि यूजर ने कितने समय के लिए कम्प्यूटर पर कार्य किया है?
- कम्प्यूटर एवं उसके यूजर को एक विशिष्ट पासवर्ड के माध्यम से सुरक्षा प्रदान करने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System)
ऑपरेटिंग सिस्टम को उनके कार्य के आधार पर निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(1) सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम (Single User Operating System)
यह ऑपरेटिंग सिस्टम एक बार में एक ही प्रोग्राम को प्रोसेस कर सकता है क्योंकि इसमें एक बार में एक ही यूजर कम्प्यूटर पर कार्य करने में सक्षम होता है।
माइक्रो कम्प्यूटर के लिए प्रारम्भ में विकसित किए गए ऑपरेटिंग सिस्टम इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं।
उदाहरण CPM (Control Program for Micro-Computer System), ऑपरेटिंग सिस्टम एवं MS-DQS (Microsoft Disk Operating System)
(2) मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi User Operating System)
इस ऑपरेटिंग सिस्टम में एक बार में बहुत-से यूजर कम्प्यूटर पर कार्य कर सकते हैं। सामान्यतः प्रत्येक यूजर एक टर्मिनल कम्प्यूटर के द्वारा मुख्य कम्प्यूटर से जुड़ा रहता है।
टर्मिनल में की-बोर्ड तथा मॉनीटर होते हैं जिनके माध्यम से यूजर इनपुट करने का कार्य करता है, लेकिन प्रोसेसिंग का कार्य मुख्य कम्प्यूटर पर ही होता है। प्रोसेसिंग का परिणाम यूजर के टर्मिनल की स्क्रीन पर देखा जा सकता है।
उदाहरण यूनिक्स (UNIX) एवं VAX-VMS
(3) बैच प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Processing Operating System)
इस सिस्टम में कार्य समूह में होता है अर्थात् ऑपरेटिंग सिस्टम सभी कार्य समूह में यूजर के हस्तक्षेप (Interfere) के बिना प्राथमिकता के आधार पर करता है, इस सिस्टम को बैच प्रोसेसिंग सिस्टम कहते हैं।
उदाहरण-पेरौल बनाना, विलिंग आदि।
(4) मल्टी प्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Programming Operating System)
ऐसे सिस्टम में ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा एक से अधिक प्रोग्राम या कार्य, एक साथ कार्य करते हैं। प्रत्येक कार्य को CPU का एक निश्चित समय दिया जाता है, जिसे टाइम स्लाइसिंग (Time Slicing) कहते हैं।
(5) मल्टी प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Processing Operating System)
इस सिस्टम में एक ही कम्प्यूटर सिस्टम होता है तथा इसमें दो या दो से अधिक सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट का उपयोग होता है।
(6) टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System)
इसमें यूजर को एक ही संसाधन (Resource) का साझा (Share) उपयोग करना होता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम विभिन्न यूजर की आवश्यकताओं को सन्तुलित करता है कि प्रत्येक प्रोग्राम जिन्हें वे उपयोग कर रहे हैं, पर्याप्त है या नहीं। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में मैमोरी का सही प्रबन्धन आवश्यक होता है।
(7) रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real Time Operating System)
इसका प्रमुख उद्देश्य यूजर को तीव्र Responce टाइम उपलब्ध करना है। इसमें यूजर का हस्तक्षेप (Interfere) कम होता है तथा एक प्रोग्राम के परिणाम का दूसरे प्रोग्राम में इनपुट डेटा के रूप में प्रयोग होता है।
रियल टाइम, ऑपरेटिंग सिस्टम का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा यह है कि एक विशेष ऑपरेशन एक निश्चित समय अवधि में ही पूर्ण हो जाए, नहीं तो आगे के प्रोग्राम में त्रुटि (Error) आ जाएगी तथा परिणाम रुक जाएगा। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक अनुसन्धान, रेलवे आरक्षण, उपग्रहों का संचालन आदि।
Computer GK | Computer GK in Hindi – New Notes 2022-23
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