प्रिय पाठकों नमस्कार , आज के लेख में हम VIRUS ( विषाणु ) क्या है , इसकी संरचना , विषाणु की खोज किसने की, लक्षण और विषाणु की विशेषताओं पर चर्चा करेंगे जो आपके लिये बहुत उपयोगी साबित होगी ।
विषाणु या वायरस वातावरण में बैक्टीरिया से भी अति सूक्ष्म कणों के सदृश संरचनाये है । विषाणु ऐसे सूक्ष्म अकोशकीय संक्रमित कण होते है जिनमे जीनोम के रूप में न्यूक्लिक अम्ल पाया जाता है ।
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इसमे एक DNA या RNA पाया जाता है विषाणु जीवित कोशिकाओं में जनन की क्रिया बताते है और अपने सदृश कणों के निर्माण में पोषक कोशिका की जैव संश्लेषि मशीनरी का उपयोग करते है ।
विषाणु क्या है ?
विषाणु का अध्ययन वैज्ञानिक रुस्का द्वारा , इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी के आविष्कार के पश्चात हुआ था । वाइरस में सजीव व निर्जीव दोनों प्रकार के लक्षण पाये जाते है ।
अतः इन्हें सजीव व निर्जीव के बीच की कड़ी भी कहते है , वैसे तो वाइरस निर्जीव ही प्रतीत होते है लेकिन किसी जीवित कोशिका के सम्पर्क में आने पर सजीव होकर बृद्धि के साथ साथ परजीवी जीवन व्यतीत करते है ।
ये जन्तुओं (जानवरों) में वास करने पर जन्तु वाइरस पादपों में वास करने पर पादप वाइरस तथा बेक्टेरिया में वास करने पर जीवनुभोजी या बेक्टेरिया फेज कहलाते है ।
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VIRUS या विषाणु की खोज किसने की ?
सर्वप्रथम विषाणु या वाइरस की खोज मेयर ने 1888 ओर रूसी वनस्पतिशास्त्र डी०जे० आइवनो वस्की ने 1892 में की थी।
इन्होंने तम्बाकू की पत्ती के चेतक रोग निरीक्षण व अध्ययन के समय पता लगाया कि तम्बाकू में यह रोग अति सूक्ष्म परजीवी द्वारा उत्तपन्न हुआ है । तम्बाकू के मोजेक रोग संचरण रोग ग्रस्त पौधे से स्वस्थ पौधे पर यांत्रिक विधि द्वारा किया जा सकता है ।
रोग ग्रस्त पत्तियां चितकबरी या दागी होकर मुरझा जाती है प्रयोग द्वारा इन रोग ग्रसित पत्तियों से निकाले गये रस को दूसरे स्वस्थ तम्बाकू के पौधे की पत्तियों पर रगड़ने पर यह मोजेक रोग फैलता देखा जा सकता है ।
साथ ही प्रयोग में इन रोग प्रसित पक्षियों के रस को बैक्टीरिया प्रूफ फिल्टर या जीवाणु रहित फिल्टर (bacteria free filter) पेपर द्वारा छानकर, स्वस्थ पौधों की पत्तियों पर रगड़ने से पत्तियों पर रोग के लक्षण दर्शित होते हैं और स्पष्ट हो जाता है कि पत्तियाँ मोजेक रोग (mosaic disease) से ग्रसित हो गयी।
इसके बाद लगभग छः वर्षों के पश्चात् बीजेरिंक, ल्योफलर एवं फ्रोश ने 1898 में तम्बाकू की पत्तियों में मोजेक रोग का निरीक्षण कर आइवानोवस्की के मत की पुष्टि की। इन्होंने पादपों व जन्तुओं के अनेकों रोगों का पता लगाया
और लुई पाश्चर के साथ सम्मिलित रूप से इन रोगाणुओं को जीवित तरल संक्रामक (contagium vivum fluidum = virus) के नाम से सम्बोधित किया। यह स्पष्ट हो गया कि विषाणु जीवाणु से भी छोटे सूक्ष्म रोग फैलाने वाले जीव होते हैं।
वाइरस जनित रोग या विषाणु से फैलने वाली बीमारियां
प्राकृतिक रूप से वाइरस के अस्तित्व की जानकारी के फलस्वरूप हुए मानव रोगों के अध्ययनों में पीत ज्वर (yellow fever), जुकाम (common cold). इन्फ्लुएन्जा (influenza), चेचक (small pox), खसरा (measles), गलसुआ (mumps), पोलियो (Poliomyelitis) व अलर्क रोग (rabies) गलसुआ, छोटी माता आदि महत्त्वपूर्ण रोग है
अनेकों संक्रामक रोगों में वाइरस की भूमिका प्रमुख बतायी गयी। संग्रहणी रोग या डाइबिटीज से पीड़ित रोगियों की आंतों में ऐशरिकिया कोलाई जीवाणु (Escherichia coll bacteria) में एक विषाणु परजीवी के रूप में रहता है
यह महत्त्वपूर्ण खोज अंग्रेज वैज्ञानिक ट्वॉर्ट तथा फ्रांसीसी वैज्ञानिक डी. हेरिल ने की और इस विषाणु को जीवाणुभोजी या बैक्टीरियोफेज कहा।
विषाणु या वाइरस की विशेषताएँ
विषाणु की विशेषताएँ निम्नलिखित है —
1. अतिसूक्ष्म संरचना, केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा इनका अध्ययन सम्भव होता है।
2. पोर्सलीन की छलनी में से छनकर निकल जाते हैं।
3. स्पष्ट कोशिकीय संरचना का अभाव होता है।
4. जीवद्रव्य का अभाव, केवल डी.एन.ए. पर प्रोटीन खोल निर्मित होता है।
5. सजीव कोशिका के सम्पर्क में आने पर ही जनन संभव होता है।
6. अधिक समय तक पूरी गुणवत्ता के साथ इनको क्रिस्टेलाइज अवस्था में रखना सम्भव है।
7. वाइरस में विभाजन आनुवंशिक पदार्थ की पुनरावृत्ति के रूप में होता है। अन्य जीवों की भाँति कोशिका विभाजन नहीं होता है।
8. वाइरस का केवल जीवित पोषद (host) कोशिका में संवर्धन (multiplication) होता है।
9. वाइरस में आनुवंशिक पदार्थ की पुनरावृत्ति (replication) होती है।
10. वाइरस में प्रतिजनी (antigenic) गुण होते हैं।
11. वाइरस में आनुवंशिक पदार्थ (DNA या RNA) पाया जाता है।
विषाणुओं के सजीव लक्षण
- अपनी क्षमतानुसार स्वाभाविक रूप से वृद्धि करना। इनका संवर्धन केवल जीवित कोशिकाओं में होता है। इसके लिए वाइरस परपोषी कोशिका का उपयोग करते है।
- सजीव कोशिका के समान जीन – उत्परिवर्तन की क्षमता होती है अर्थात् उत्परिवर्ती एक प्रमुख लक्षण है। अतः वाइरस में उत्परिवर्ती फॉर्म मिलते हैं।
- सजीव पोषद कोशिका के कोशिकाद्रव्य में प्रवेश कर सक्रियता से अपने न्यूक्लीक अम्ल (DNA, RNA) की भाँति पदार्थ संश्लेषित करता है। केवल एक ही प्रकार का न्यूक्लिक अम्ल मिलता है। न्यूक्लिक अम्ल द्विरज्जुकी या एकरज्जुकी हो सकता है।
- वाइरस पर ताप, रासायनिक पदार्थों, विकिरण आदि का प्रभाव पड़ता है। वाइरस में एन्टीजैविक गुण होते हैं।
- वाइरस में आनुवंशिक पदार्थ की पुनरावृत्ति होती है।
- सजीव पोषद कोशिका के सम्पर्क में आकर जनन करना।
विषाणुओं के निर्जीव लक्षण
- वाइरस की संरचना कोशिका सदृश नहीं होती है।
- सजीव कोशिका विशिष्ट परपोषी के बाहर वाइरस पूर्णतः अक्रिय/निष्क्रिय होते हैं।
- निर्जीव व बड़े-बड़े रासायनिक रवों के रूप में अर्थात् क्रिस्टलीकरण किया जा सकता है। गुणवत्ता बिना किसी कमी के, काफी समय तक बोतलों में संचित किये जा सकते हैं।
- कोशाकला तथा कोशिका-भित्ति, कोशाद्रव्य, केन्द्रक व अन्य अंगकों का पूर्णतः अभाव, केवल प्रोटीन खोल में बन्द न्यूक्लीक अम्ल (DNA व RNA) के अणु होते हैं।
- पोषण व श्वसन क्रियाओं का पूर्णतः अभाव होता है।
- पोषद कोशिका के बाहर जनन संभव नहीं होता है।
- वाइरस स्वोत्प्रेरक होते हैं। इनमें प्रकार्यक स्वायत्ता का अभाव होता है।
- आनुवंशिक पदार्थ की पुनरावृत्ति तथा अपने संवर्धन के लिए ये परपोषी पर आश्रित होते हैं।
विषाणु या वाइरस की संरचना
सबसे पहले वाइरस की संरचना का अध्ययन बाउडेन तथा डार्लिंगटन ने इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा किया। इन्होंने वाइरस के अतिसूक्ष्म निष्क्रिय कणों को विरिऑन (virion) नाम दिया।
सभी वाइरस कणों के चारों ओर एक मोटा, सुरक्षात्मक खोल या कवच कैप्सिड नामक प्रोटीन का निर्मित होता है। इसके अन्दर न्यूक्लीक अम्ल का केन्द्रीय कोड होता है।
न्यूक्लीक अम्ल एक कुण्डलित सूत्र के रूप में होता है। यह कुण्डलित सूत्र अधिकांश पादप वाइरस में राइबोन्यूक्लीक अम्ल का तथा बैक्टीरियोफेज व जन्तुओं के वाइरस में डीऑक्सीराइबोन्यूक्लीक अम्ल का निर्मित होता है।
न्यूक्लीक अम्ल (RNA या DNA) विरिऑन (virion) का लगभग 6% केन्द्रीय भाग बनाता है। शेष 94% भाग प्रोटीन अणुओं का बना एक सुरक्षात्मक खोल होता है जिसे कैप्सिङ कहते हैं।
कैप्सिड साधारणतः एक बहुतलीय शीर्ष लगभग 95 mu लम्बा व 65 mu चौड़ा तथा एक पतली सी संकरी या बेलनाकार पूंछ (लगभग 100 mu लम्बी व 25 mu चौड़ी) में भिन्नित होता है।
कुछ वाइरसों की पूंछ के छोर पर प्लेट होती हैं, जिसमे 6 पूँछ तन्तु लगे रहते हैं। पूँछ एक खोखली प्रोटीन शलाका के सदृश होती है, जिसकी सहायता से वाइरस बैक्टीरियम कोशिकाओं से संलग्न होते हैं।
कुछ वाइरसों के प्रोटीन खोल (कैप्सिड) के बाहर प्रोटीन एवं वसा पदार्थ का निर्मित एक पतला आवरण होता है।
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