Green House Effect | हरित गृह क्या है |कारण | प्रभाव | सम्पूर्ण जानकारी -2022
पिछले कुछ वर्षों से ऊष्मारोधी गैसों की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ जाने के कारण वायुमण्डल के तापमान में बृद्धि हो गयी है , जिसे हम भूमण्डलीय तापन अथवा हरित गृह प्रभाव कहा जाता है।
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हरित गृह प्रभाव क्या है ?
ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी ग्रह या उपग्रह के वातावरण में मौजूद कुछ गैसें उस ग्रह/उपग्रह के वातावरण के ताप को अपेक्षाकृत अधिक बनाने में मदद करती हैं।
विश्वव्यापी ताप वृद्धि के पीछे मुख्य कारण कार्बन डाइऑक्साइड गैस है, जिसे ग्रीन हाउस गैस कहा जाता है। मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड भी इसी प्रकार की गैसें हैं। ये सभी गैसें वातावरण की ऊष्मा को सोख लेती हैं।
यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे ग्रीन हाउस में ग्लास (सीसा) अपने अंदर समाहित गर्म वायु को बाहर नहीं निकलने देता है। इसे ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ के नाम से जाना जाता है।
ग्रीन हाउस प्रभाव में वायुमंडलीय गैसों (मुख्यतया कार्बन डाइऑक्साइड) द्वारा अवरक्त विकिरण को अवशोषित कर लिए जाने से वायुमंडल का तापमान बढ़ता है।
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अतः ग्रीन हाउस गैसें वायुमंडल में उपस्थित वह गैसें हैं, जो तापीय अवरक्त विकिरण की रेंज के अंतर्गत विकिरणों का अवशोषण एवं उत्सर्जन करती हैं।
पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाने वाली प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें । जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरोकार्बन। आपको एक बात की जानकारी दे दें कि ऑर्गन ग्रीन हाउस गैस नहीं है तथा यह वैश्विक ऊष्मन के लिए उत्तरदायी नहीं होती है।
ग्रीन हॉउस प्रभाव में सबसे ज्यादा उत्तरदायी गैसें हमने तालिका के माध्यम से प्रदर्शित की है –
जलवाष्प | 36 से 70 प्रतिशत |
कार्बन डाइऑक्साइड | 9 से 26 प्रतिशत |
मीथेन | 4 से 9 प्रतिशत |
ओजोन | 3 से 7 प्रतिशत |
हरित गृह प्रभाव का कारण
कार्बन डाइऑक्साइड गैस धरती पर जीवन के लिए हानिकारक और लाभदायक दोनों है। कार्बन डाइऑक्साइड पौधे ग्रहण कर (प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा) जीवन दायिनी ऑक्सीजन गैस को मुक्त करते हैं, जो हमारे जीवन के लिए लाभदायक है, वहीं यह भूमंडलीय तापन का मुख्य कारण भी है, जो हमारे लिए हानिकारक है।
मानवीय गतिविधियों द्वारा उत्पन्न अधिकांश कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल के निचले भाग में नहीं रुकती बल्कि समुद्री पादपों या भूमि पर पौधों एवं मिट्टी द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में पादप प्लवक (Phytoplankton) कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर उसे पादप सामग्री में परिवर्तित कर देते हैं।
Green House Effect | हरित गृह क्या है |कारण | प्रभाव | सम्पूर्ण जानकारी -2022
कार्बन डाइऑक्साइड (CO) गैस अन्य ग्लोबल वार्मिंग ग्रीन हाउस गैसों के विपरीत पौधों के विकास के लिए संभावित रूप से फायदेमंद प्रभाव डालती है क्योंकि पौधे अपनी ऊर्जा तथा वृद्धि के लिए कार्बोहाइड्रेट के निर्माण हेतु सूर्य के प्रकाश के साथ वायु में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करते हैं, जिससे पौधों में वृद्धि व विकास संभव होता है।
पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाने वाली प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें हैं- जल वाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन।
इसमें से कार्बन डाइऑक्साइड गैस ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है क्योंकि वायुमंडल में इसकी सांद्रता अन्य ग्रीन हाउस गैसों की तुलना में बहुत अधिक है। ध्यातव्य है कि पिछले कुछ दशकों से वातावरण में CO2 की सांद्रता में लगातार वृद्धि हो रही है।
धान के खेत, कोयले की खदानें एवं घरेलू पशु वातावरण में मीथेन उत्सर्जन के मानवीय स्रोत हैं जबकि आर्द्रभूमि, समुद्र, हाइड्रेट्स (Hy drates), मीथेन उत्सर्जन के प्राकृतिक स्रोत हैं। * प्राकृतिक स्रोतों से वैश्विक मीथेन उत्सर्जन का सर्वाधिक 76% भाग आर्द्रभूमि से ही उत्सर्जित होता है।
इसके अतिरिक्त जीवाश्म ईंधन के जलने से वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि तथा ओजोन परत का अवक्षय जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण हैं। जलवायु परिवर्तन हेतु ग्रीन हाउस गैसें एवं प्रदूषण प्रत्यक्ष रूप से जबकि ओजोन पर्त का क्षरण अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है।
ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव
भूमंडलीय उष्णता या तापन का प्रभाव हिम क्षेत्रों में तेजी से पिघलती बर्फ के रूप में देखा जा सकता है। मौसम में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं और सागर तट के समीपवर्ती क्षेत्र तेजी से डूब रहे हैं।
स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप के अनेक यूरोपीय देश अपने अनेक ऐसे तटों को गवां चुके हैं। समय से पूर्व आम में बौर आना वैश्विक तापन से ही संबंधित है तथा वैश्विक तापन से स्वास्थ्य भी कुप्रभावित हो रहा है।
आर्कटिक एवं ग्रीनलैंड हिम चादर (Arctic and Greenland Ice sheet) वैश्विक तापन द्वारा सामान्यतया पहले प्रभावित होने वाले सर्वाधिक भंगुर पारिस्थितिक तंत्र हैं।
इस क्षेत्र में वैश्विक तापन के कारण बर्फ का पिघलना शेष पृथ्वी को प्रभावित कर रहा है।
यदि विश्व-तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2°C बढ़ जाता है, तो विश्व भर में ‘प्रवाल मर्त्यता’ (Coral Mortality) घटित होगी, साथ ही पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र का 1/6 भाग रूपांतरित हो जाएगा और पृथ्वी पर ज्ञात प्रजातियों का 1/4 भाग विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएगा।
यदि विश्व का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3°C से अधिक बढ़ जाता है, तो स्थलीय जीवमंडल एक नेट कार्बन स्रोत की ओर प्रवृत्त होगा, साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र का 1/5 से अधिक भाग रूपांतरित हो जाएगा और 30% तक ज्ञात प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएंगी।
वैश्विक ऊष्मन पृथ्वी पर जीवन के समक्ष सबसे गंभीर चुनौती है। IPCC के अनुसार, वैश्विक ऊष्मन से ग्लेशियर के पिघलने की दर बढ़ेगी, समुद्री जल स्तर में वृद्धि होगी, सूखा और बाढ़ की बारंबारता एवं तीव्रता में वृद्धि होगी, चक्रवात, तूफान, बवंडर आदि की बारंबारता एवं तीव्रता में भी वृद्धि होगी।
पिछली शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.8℃ की वृद्धि हुई है ।
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