जब मनुष्यों की जरूरतें पूरी नही होती या उनमें कोई बाधा उत्पन्न होती है तो मनुष्यों में Frustration कुंठा की स्थिति उत्पन्न होने लगती है ।
आमतौर पर सभी व्यक्तियों में Frustration कुंठा जैसे स्थिति होती रहती है आज के आर्टिकल में हम आपको Frustration के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसकी परिभाषा अर्थ और कारकों को विस्तृत रूप से जानेगें ।
- Advertisement -
Frustration Defination | कुण्ठा की परिभाषा
विद्वानों ने कुण्ठा की अलग अलग परिभाषाएँ दी है जो निम्नलिखित है-
कोल्सनिक (Kolesnik) – “कुण्ठा से अभिप्राय व्यक्ति विशेष की उस अनुभूति से है जो उसे अपनी उस आवश्यकता की संतुष्टि या लक्ष्य की प्राप्ति में आने वाली बाधा या प्रतिरोध के फलस्वरूप होती है जिसे वह अपने लिए काफी महत्वपूर्ण मानता है।”
गुड (Good) – “कुण्ठा से अभिप्राय किसी भी इच्छा या आवश्यकता की पूर्ति में आने वाली बाधा से उत्पन्न संवेगात्मक तनाव से है ।
बारने एवं लेहनर (Barnery & Lehner) – “कुण्ठा से आशय व्यक्ति विशेष की अपनी किसी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति में मिलने वाली विफलता है जो उसकी स्वयं की या बाहरी बाधाओं द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों के कारण प्राप्त होती है।”
- Advertisement -
केरौल (Carroll) – “कुण्ठा को किसी भी अभिप्रेरक की संतुष्टि में आने वाली बाधा के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली स्थिति या परिस्थिति के रूप में जाना जा सकता है।”
मन (Munn) – “कुण्ठा किसी भी प्राणी की उस अवस्था की द्योतक है जो किसी अभिप्रेरणात्मक व्यवहार की संतुष्टि के असाध्य एवं असम्भव हो जाने के फलस्वरूप पैदा होती है।”
Frustration कुण्ठा होने के कारण
कुण्ठा उत्पन्न होने के अलग अलग कारण हो सकते है जिन्हें हम दो भागों में विभाजित कर सकते है
1. बाह्य कारक ( External Factors)
वो कारक जो व्यक्ति के वातावरण से सम्बन्धित होते हैं। इन कारकों में निम्नलिखित कारक सम्मिलित किए जाते हैं
- भौतिक कारक (Physical factors) – इन कारकों में भौतिक वातावरण से जुड़े कारक आते हैं। प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूकम्प, बाढ़, तूफान, आग, सूखा या अन्य कोई दुर्घटना जिसके कारण व्यक्ति का सामान्य जीवन नष्ट/तबाह हो जाता है।
- सामाजिक कारक (Social factors)—इन कारकों में सामाजिक वातावरण से सम्बन्धित कठोर अंकुश या नियंत्रण को सम्मिलित किया जाता है। विशेषकर माता-पिता, परिवार के अन्य बड़े सदस्यों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, अध्यापकों, कार्यस्थल के लोगों तथा समाज के अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों द्वारा बनाये गए सख्त नियम व अंकुश इसमें सम्मिलित हैं।
- आर्थिक कारक (Economic Factors) – यदि व्यक्ति की आर्थिक आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं होती हैं, वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं तथा अन्य सम्बन्धित आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर पाता है। ऐसी स्थिति में आर्थिक कारक भी कुण्ठा उत्पन्न कर सकते हैं।
2. आंतरिक कारक (Internal Factors)
Frustration के आंतरिक कारक मनुष्यों के द्वारा स्वयं उत्पन्न होते है जो निम्न है
- शारीरिक दोष या असामान्यता — यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष प्रकार के शारीरिक दोष से ग्रसित है यथा विकलांगता, सुनने की समस्या, दृष्टि संबंधी समस्या, आवाज/बोलने से संबंधी समस्या आदि, इस प्रकार की समस्याएं व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं तथा विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति में अवरोध पैदा करती हैं। ऐसे व्यक्तियों में हीन भावना का उत्पन्न होना तथा आत्म सम्मान का कम होना भी पाया जा सकता है जो कि आगे बढ़कर गंभीर कुण्ठा का रूप ले सकता है।
- व्यक्ति के अत्यधिक ऊँचे आदर्श – यदि किसी व्यक्ति के नैतिक आदर्श इतने ऊँचे स्तर के हैं कि वे उसकी मूलभूत आवश्यकताओं को बाधा पहुँचाते हैं और ‘उनकी पूर्ति में अवरोध का कार्य करते हैं तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति के इदम् तथा पराहम् में द्वंद्व उत्पन्न होता है तथा यदि व्यक्ति का अहम् (ego) इस द्वंद्व का प्रबंधन नहीं कर पाता है तो यह निश्चित ही कुंठा का एक कारण बन सकात है।
- इच्छाओं की अनिश्चितता/द्वंद्वात्मक इच्छाएँ – यदि व्यक्ति की इच्छाएँ ऐसी हैं जो एक-दूसरे से विरोधात्मक प्रवृत्ति की हैं तो वह उन इच्छाओं की पूर्ति हेतु काफी सांवेगिक द्वंद्व का सामना करता है तथा इन द्वंद्वात्मक इच्छाओं के कारण भी उसमें कुण्ठा उत्पन्न हो सकती है।
- महत्वाकांक्षाओं का उच्च स्तर — महत्वाकांक्षा के स्तर से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा निश्चित किये गए उन लक्ष्यों से है जिन्हें वह अपने जीवन में प्राप्त करना चाहता है। अपने जीवन में अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करना गलत नहीं है, परन्तु समस्या तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपनी क्षमताओं से असंगत/बेमेल लक्ष्य निर्धारित कर लेता है।
- ऐसी स्थिति में विशिष्ट कौशलों व क्षमताओं की कमी के कारण व्यक्ति अपने द्वारा निश्चित किए लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाता है तथा इस प्रकार महत्वाकांक्षा का ऊँचा तथा बेमेल स्तर भी कुण्ठा का कारण बन सकता है।
- दृढ़ता एवं प्रयत्नों की कमी – ऐसा व्यक्ति जो किसी भी कार्य को पूर्ण करने हेतु अपने प्रयास दृढ़ता से नहीं करता है तथा अपनी आवश्यकताओं/लक्ष्यों की पूर्ति हेतु गंभीर नहीं होता है आसानी से कुण्ठा का शिकार हो सकता है। अतः लक्ष्यों को परिवर्तित करने की अधिक आवृत्ति तथा लक्ष्यों की “पूर्ति हेतु गंभीर प्रयासों की कमी भी कुण्ठा उत्पन्न करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है।
Frustration कुण्ठा को रोकने के उपाय
कुण्ठा को खत्म करने की कई प्रकार की प्रतिक्रिया की जाती है जिन्हें दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है
सामान्य प्रतिक्रिया (General Peaction) – इसके अन्तर्गत व्यक्ति द्वारा अपने प्रयत्नों में वृद्धि की जाती है तथा आवश्यक हो तो कार्यविधि में परिवर्तन लाया जाता है।
- समझौतावादी उपाय भी किए जाते हैं
- पलायनवादी व्यवहार अपनाना भी कुण्ठा के प्रति एक प्रकार की सामान्य प्रतिक्रिया है।
हिंसात्मक / आक्रामक प्रतिक्रिया – सामान्य प्रतिक्रियाओं के अलावा व्यक्ति द्वारा कुण्ठा के फलस्वरूप कुछ आक्रामक प्रतिक्रियाएँ भी की जा सकती हैं। इन आक्रामक प्रतिक्रियाओं को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है
- ब्राह्य आक्रामक प्रतिक्रयाएँ –इन प्रतिक्रियाओं में अन्य व्यक्तियों/दूसरों पर गुस्सा दिखाना सम्मिलित किया जाता है। विशेषकर वे जिन्हें स्वयं व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छाओं में बाधा समझा जाता है। अतः इसमें दूसरों से झगड़ना व क्रोध करना आता है।
- आंतरिक आक्रामक प्रतिक्रियाएँ – इस प्रकार की प्रतिक्रियाओं में व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर क्रोध जाहिर नहीं करता है अपितु वह स्वयं ही अपने क्रोध का निशाना बनता है।
अतः इसमें स्वयं के प्रति घृणा उत्पन्न होती है तथा यह घृणा विध्वंसक प्रवृत्ति मे बढ़कर आत्महत्या में भी परिवर्तित हो सकती है। अतः आंतरिक आक्रमण बाह्य आक्रमण की तुलना सामान्यतः अधिक नुकसानदेह हो सकता है।
Frustration definition in english
https://www.merriam-webster.com/dictionary/frustration
हमारे द्वारा Frustration | Full information (कुंठा) 2022-23 लिखे गये आर्टिकल पर आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें
Hello akstudyhub.com owner, Thanks for the well-organized and comprehensive post!