Berojgari ki samasya बेरोजगारी की समस्या – निबंध | Berojgari par Nibandh Hindi mein – 2023

Berojgari ki samasya बेरोजगारी की समस्या - निबंध | Berojgari par Nibandh Hindi mein - 2023
Berojgari ki samasya बेरोजगारी की समस्या – निबंध | Berojgari par Nibandh Hindi mein – 2023

आज के लेख में एक प्रमुख बिषय पर बेरोजगारी की समस्या पर विस्तृत रूप से चर्चा की जाएगी जिसमें हम बेरोजगारी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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Berojgari ki samasya बेरोजगारी की समस्या – निबंध

निबन्ध की रूप रेखा

  • प्रस्तावना
  • बेरोजगारी का अर्थ
  • बेरोजगारी के कारण
  • बेरोजगारी के प्रकार
  • बेरोजगारी समस्या के समाधान
  • शिक्षित बेरोजगारी की समस्या

प्रस्तावना

हमारे इस प्यारे से देश भारत मे वैसे तो अनेक समस्याएं है लेकिन इन सभी समस्याओं में प्रमुख समस्या बेरोजगारी की है । भारत की जनसंख्या लगभग 131 करोड़ के आस पास है लेकिन कुछ आंकड़ो के अनुसार बेरोजगारों की संख्या लगभग आधी से थोड़े कम है । अगर ऐसे ही चलता रहा तो कुछ समय पश्चात हमारे देश मे बेरोजगारों की संख्या और अधिक बढ़ जाएगी।

स्वतंत्रता के बाद आशा थी कि हमारे देश मे बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो जायेगा परन्तु ऐसा नही हो सका बेरोजगारी की समस्या से निजात पाने के लिये देश के हर एक नागरिक को अपना कर्तव्य निभाना पड़ेगा।

बेरोजगारी का अर्थ

रोजगार से रहित होने की स्थिति को बेरोजगारी कहा जाता है। कार्ल प्रिबाम के अनुसार, “बेकारी श्रम बाजार की यह दशा है जिसके अन्तर्गत श्रम शक्ति की पूर्ति कार्य करने के स्थानों की अपेक्षा अधिक होती है।” फ्लोरेन्स ने इसकी परिभाषा देते हुए लिखा है कि, “बेकारी उन व्यक्तियों की निष्क्रियता के रूप में परिभाषित की जा सकती है जो कार्य करने के योग्य एवं इच्छुक हैं।”

काम करने योग्य एवं काम करने के इच्छुक लोगों के लिए आर्थिक अर्थ में कार्य का अभाव ही बेकारी कहलाता है। अन्धे, बहरे, लूले, लंगड़े, रोगी, बच्चे अथवा अपाहिज व्यक्ति, जो काम करने के सर्वथा अयोग्य हैं. बेकार नहीं माने जाते। इसी प्रकार भिखारी व साधु-संन्यासी जो काम करने के इच्छुक नहीं हैं, वे भी बेकार नहीं समझे जाते। बेकारी का मूल कारण होता है, जितनी संख्या में व्यक्ति उपलब्ध हैं, उनकी कम व्यक्तियों के लिए काम उपलब्ध होना।

  • किसी भी व्यक्ति को बेकार उस समय कहा जाएगा जब वह काम करने की इच्छा रखता। और उसे काम न मिले। हो
  • व्यक्ति में कार्य करने की शारीरिक मानसिक योग्यता भी होनी चाहिए।
  • उसके द्वारा कार्य पाने के लिए प्रयत्न करना भी आवश्यक है।
  • व्यक्ति द्वारा काम करने का उद्देश्य धन अर्जन करना होना चाहिए।

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बेरोजगारी के कारण

  • जनसंख्या में वृद्धि-भारत में बेरोजगारी का सबसे महत्वपूर्ण कारण जनसंख्या की तीव्र गति से में वृद्धि है। हमारे यहां प्रति वर्ष 1.93 प्रतिशत जनसंख्या बढ़ जाती है। जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण श्रम शक्ति के आधिक्य की समस्या उत्पन्न हो गई है। जनसंख्या में इस वृद्धि ने बेरोजगारी की समस्या को गम्भीर बनाने में सबसे अधिक योग दिया है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में विनियोग का अभाव सार्वजनिक क्षेत्र में पूंजी निवेश के बढ़ने से रोजगार में वृद्धि होती है। देश में 1965 के बाद सार्वजनिक विनियोग व सार्वजनिक व्यय में वार्षिक वृद्धि दर पहले से कम हुई है, जिससे इन्फ्रास्ट्रक्चर व उद्योगों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ा तथा साथ ही रोजगार के अवसर भी कम बढ़ पाए।
  • सीमित भूमि जनसंख्या में तो वृद्धि हो रही है किन्तु भूमि तो सीमित है। जनसंख्या के बढ़ने से प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि में कमी आती है। परिवार में सम्पत्ति के बंटवारे में भूमि भी बंट जाती है भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े अनुत्पादक हो जाते हैं। इन छोटे-छोटे टुकड़ों पर परिवार के सभी सदस्य कृषि कार्य करते हैं, जिससे ‘छिपी बेरोजगारी’ पनपती है।
  • लघु एवं कुटीर उद्योगों का पतन एवं उनके पुनर्विकास की धीमी गति — लघु एवं कुटीर उद्योग मशीनों की सहायता से होने वाले उत्पादन की तुलना में अधिक लोगों को रोजगार दे पाते हैं। कच्चे माल की कमी, वित्तीय साधनों के अभाव तथा बड़े उद्योगों के सामने न टिक पाने के कारण स्वनियोजित कारीगर तथा मजदूर भी बेरोजगारी के शिकार हो गए। यद्यपि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद इन उद्योगों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन विभिन्न कारणों से इनका अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है।
  • दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षितों का दृष्टिकोण—भारत में विश्वविद्यालयी शिक्षा सैद्धान्तिक ज्यादा है और व्यावसायिक या व्यावहारिक कम। विश्वविद्यालय से डिग्रियां प्राप्त करने के पश्चात् भी आज का युवक किसी भी व्यवसाय के अनुकूल अपने आपको नहीं बना पाता। इसके अतिरिक्त शिक्षित व्यक्तियों का दृष्टिकोण भी बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी है।
  • औद्योगीकरण का अभाव– भारत में औद्योगीकरण की गति बड़ी मन्द रही तथा देश में आधारभूत उद्योगों के अभाव तथा पूंजी एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव के कारण औद्योगिक पिछड़ापन रहा। परिणामतया गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित रहे।
  • भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन – विभाजन के समय पाकिस्तान से शरणार्थी आए। इसके बाद भी दक्षिण अफ्रीका, म्यांमार तथा श्रीलंका से प्रवासी भारतीयों की वापसी हुई। तिब्बत से दलाई लामा के साथ तिब्बती तथा पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिन्दुओं का आगमन हुआ।
  • समयबद्ध रोजगार नीति एवं कार्यक्रमों का अभाव — यद्यपि देश में योजनाबद्ध विकास के लगभग 59 वर्ष पूरे हो गए हैं, किन्तु किसी भी योजना में बेरोजगारी के निराकरण के लिए निश्चित समयबद्ध कार्यक्रम क्रियान्वित नहीं किया गया है।
  • अन्य कारण—स्त्रियों तथा सेवा निवृत्त व्यक्तियों द्वारा रोजगार की तलाश के कारण भी अन्य व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर कम हो गए हैं। इसके अलावा देश में बचत व विनियोग की निम्न दर, निम्न के आव स्तर, प्रभावपूर्ण मांग का अभाव, ऊंचे मूल्यों के कारण वस्तुओं की मांग का कम होना तथा भारतीयों में विदेशी माल के उपयोग की कम रुचि, आदि कारणों ने बेरोजगारी को बढ़ाने में योग दिया है।

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बेरोजगारी के प्रकार

  • संरचनात्मक बेरोजगारी — यह बेरोजगारी की वह स्थिति है जब किसी देश में उत्पादन, विनियोग तथा प्रभावपूर्व मांग की कमी से रोजगार के अवसरों में कमी हो जाती है जबकि श्रम शक्ति में तीव्रतर वृद्धि से लाखों लोग रोजगार की तलाश में दर-दर ठोकरें खाते हैं। भारत में लगभग 5 प्रतिशत व्यक्ति संरचनात्मक बेरोजगारी से पीड़ित हैं।
  • मौसमी बेरोजगारी — जब श्रमिकों को वर्ष भर निरन्तर काम नहीं मिल पाता और किसी मौसम विशेष में उन्हें बेकार ही बैठना पड़ता है तो उसे मौसमी बेकारी कहते हैं। जैसे भारत में रबी और खरीब की फसलों के बीच की अवधि में मानसून न आने तक किसान को बेकार बैठना पड़ता है।
  • छिपी हुई बेरोजगारी — जब श्रमिक वैसे तो काम पर लगा हुआ होता है, परन्तु उसके काम से उत्पादन में लगभग कोई वृद्धि नहीं होती। अगर उस श्रमिक को काम से हटा लिया जाए, तो भी कुछ उत्पादन में लगभग कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता। इसे अदृश्य बेरोजगारी भी कहते हैं।
  • शिक्षित व अशिक्षित बेरोजगारी जब देश में शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी होती है तो उसे शिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है और जब अशिक्षितों में काम करने की इच्छा, शक्ति और क्षमता होने पर भी उन्हें वर्तमान वेतन दर पर रोजगार उपलब्ध नहीं होता है तो इसे अशिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है।
  • अर्द्ध-बेरोजगारी—जब किसी सक्षम व्यक्ति को योग्यतानुसार कार्य न मिलने के कारण उसे कम योग्यता वाले पद या कार्य में अपनी सेवाएं देने को विवश होना पड़ता है, तो वह अर्द्ध-बेरोजगारी की स्थिति होती है।

बेरोजगारी समस्या के समाधान

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  • गहन कृषि को प्रोत्साहन तथा कृषि सहायक उद्योगों का विकास-कृषि में यन्त्रीकरण की व्यवस्था बेरोजगारी को उग्र बना सकती है। अतः वर्तमान परिस्थिति में तो उत्तम खाद, उत्तम बीज, सिंचाई व्यवस्था तथा बहु- फसल कार्यक्रमों से प्रति एकड़ उपज बढ़ाने की सघन कृषि को प्रोत्साहन देना ही श्रेष्ठ है। उससे कम भूमि पर भी अधिक लोगों के आर्थिक रोजगार की व्यवस्था सम्भव होगी। भूमिहीनों को परती भूमि देकर भी रोजगार दिया जा सकता है। इसी प्रकार कृषि सहायक उद्योग – पशु-पालन, मुर्गी पालन, भेड़-पालन आदि कृषि सहायक कामों से अर्द्ध-बेरोजगारी दूर होने के साथ अनेक बेकारों को पूरे समय काम मिल सकेगा। भारत में हरित क्रान्ति इस दिशा में उपयोगी रही है।
  • जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण-आर्थिक विकास की गति तेज करने तथा “अधिकतम आय के स्तर पर अधिकतम रोजगार” की स्थिति प्राप्त करने के लिए तेज रफ्तार से बढ़ती हुई जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण आवश्यक है।
  • औद्योगीकरण व लघु व कुटीर उद्योगों के विकास पर अधिक बल — कृषि पर रोजगार के दबाव को कम करने तथा वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की वृद्धि के लिए देश में तीव्र औद्योगीकरण की जरूरत है। बड़े पैमाने के आधारभूत एवं उपभोग उद्योगों के विस्तार के साथ-साथ विकेन्द्रित व लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। कुटीर उद्योगों के विकास से ग्रामीण क्षेत्रों में कई लोगों की अर्द्ध-बेरोजगारी समाप्त होगी तथा कई को पूरे समय काम मिल सकेगा। लघु एवं कुटीर उद्योगों की विशेष बात यह है कि ये उद्योग कम पूंजी में अधिक लोगों को रोजगार दे पाते हैं। इस दृष्टि से कुटीर उद्योग बेरोजगारी दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • राष्ट्रीय निर्माण कार्यों में वृद्धि देश में आर्थिक विकास के साथ-साथ अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करने के लिए सड़क, बांध, पुल तथा नहर निर्माण कार्यों को प्रधानता देनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में गृह निर्माण, भू-संरक्षण आदि कार्यक्रमों की ओर ध्यान देना चाहिए।
  • सामाजिक सेवाओं का विस्तार देश में चिकित्सा, शिक्षा, कल्याण कार्य तथा अन्य सामाजिक सेवा के विस्तार से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
  • गांवों में रोजगार प्रधान नियोजन-भारत में बेरोजगारी की समस्या खासतौर से ग्रामीण बेरोजगारी तथा अर्द्ध बेरोजगारी की समस्या है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम-प्रधान निर्माण कार्यों, जैसे सड़क निर्माण, गृह-निर्माण, पुल निर्माण, बांध निर्माण, लघु सिंचाई योजनाएं, भू-संरक्षण, बाढ़ नियन्त्रण, आदि को प्राथमिकता देने से रोजगार अवसरों में वृद्धि होगी।
  • रोजगार दफ्तरों तथा अन्य सहायक सेवाओं का विस्तार— रोजगार के इच्छुक लोगों तथा रोजगार देने बालों के बीच निकट सम्पर्क ऐसी प्रतिनिधि संस्थाओं से ही सम्भव है जो नियोजन तथा नियोक्ता के बीच अविभाज्य कड़ी के रूप में आवश्यक सूचना के केन्द्र बनें।
  • शिक्षा प्रणाली में सुधार एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण— भारत में वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बदलकर उसे प्रत्येक स्तर पर व्यवसाय उन्मुख बनाया जाना चाहिए। इससे व्यक्ति की सामान्य मानसिकता में भी परिवर्तन आएगा तथा राष्ट्र निर्माण में भी मदद मिलेगी।

भारत में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या

भारत में सामान्य बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, इसके साथ ही शिक्षित बेरोजगारी भी भयंकर रूप धारण करती जा रही है। शिक्षित बेरोजगारी के कारण शिक्षितों में निराशा और क्षोभ बढ़ता जा रहा है। यदि हम सरकार के रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत शिक्षित बेरोजगारों की संख्या पर गौर करें तो यह प्रति वर्ष बढ़ रही है। 1995 में रोजगार कार्यालयों में 3.6 करोड़ बेरोजगार पंजीकृत थे।

वर्ष 2008 में यह संख्या बढ़कर 3.9 करोड़ हो गई। बेरोजगारी की यह स्थिति तब है जब बहुत से शिक्षित बेरोजगारों ने सरकारी रोजगार कार्यालयों में पंजीकरण नहीं कराया।’ आन्दोलन, हड़ताल, बन्द और सरकारी विरोध की भावना समस्या के शीघ्र निराकरण की आवश्यकता पर जोर देते हैं। शिक्षित बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित है ।

  • मानव शक्ति नियोजन का अभाव– भारत में मानव शक्ति नियोजन की उपयुक्त एवं पर्याप्त व्यवस्था का अभाव है। एक ओर दक्ष, अनुभवी एवं तकनीकी रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं पर उपयुक्त आदमी नहीं तो दूसरी ओर शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार नहीं ।
  • दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली — लॉर्ड मैकाले की सैद्धान्तिक शिक्षा ने देश में क्लकों एवं सफ़ेदपोश शिक्षितों में वृद्धि की है। व्यावसायिक एवं प्राविधिक शिक्षा की गति धीमी रही है, अतः देश में सामान्य शिक्षित बेरोजगारों में तेजी से वृद्धि हुई है।
  • शिक्षितों का दृष्टिकोण— देश में शिक्षितों का दृष्टिकोण विचित्र है, सफेदपोश कुर्सी पसन्द हैं। उनमें शारीरिक श्रम के प्रति अरुचि है, ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने से घृणा है। शहरी वातावरण से लालायित हैं। वे तकनीकी एवं ग्रामीण रोजगारों में जाना नहीं चाहते। अतः शिक्षित बेकारी बढ़ी है।
  • व्यावसायिक शिक्षा की धीमी गति—देश में सामान्य शिक्षा का तो तेजी से विकास हुआ है, किन्तु व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा की प्रगति बहुत धीमी रही है। इसमें सामान्य शिक्षितों में बेरोजगारी निरन्तर बढ़ती ही गई। अब तो तकनीकी शिक्षा प्राप्त लोगों में भी बेकारी व्याप्त है।
  • रोजगार मार्ग-दर्शन का अभाव — देश में नियोजकों एवं रोजगार चाहने वालों के बीच निकट सम्पर्क कराने वाली संस्थाओं की कमी रही है, अतः रोजगार सूचनाओं, उपयुक्त मार्ग-दर्शन तथा उनमें तालमेल बैठाने की सेवाओं का नितान्त अभाव रहा है।
  • आर्थिक विकास की धीमी गति—- देश में आर्थिक विकास, औद्योगिक तथा सेवाओं के क्षेत्र में वृद्धि धीमी गति से हुई अतः उनमें शिक्षित बेरोजगारी के रोजगार अवसर नहीं बढ़ पाए।

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