प्रिय पाठकों आज के आर्टिकल Adjustment समायोजन | समायोजन का अर्थ, परिभाषा और समायोजन की विधियाँ – Psychology Free Notes 2023-24 के माध्यम से हम आपको Adjustment समायोजन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे जो आपके लिये किसी भी परीक्षा के लिये बहुत ही उपयोगी साबित होंगी।
किशोर अधिगमकर्ताओं की मुख्य विकासात्मक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि उनके परिवार, विद्यालय तथा समाज द्वारा उन्हें समझा जाए तथा उनके सम्पूर्ण विकास हेतु उनका आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन किया जाए।
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इसके अलावा, किशोरावस्था के दौरान होने वाले तीव्र शारीरिक परिवर्तनों, किशोरवय बालकों की सांवेगिक संवेदनशीलता तथा इनके कारण उत्पन्न समायोजन की कमी का बेहतर रूप से प्रबंधन किया जाए।
Adjustment समायोजन का अर्थ
‘समायोजन‘ शब्द सामान्य रूप से काफी उपयोग में लिया जाता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं तथा इन आवश्यकताओं से सम्बन्धित वातावरणीय कारकों के बीच संतुलन बैठाने की कोशिश करता है।
किसी व्यक्ति के समायोजन का स्तर तब पर्याप्त, स्वस्थ या संपूर्ण माना जाता है जब उसने अपने आप में तथा अपने भौतिक एवं सामाजिक वातावरण में उपस्थित व्यक्तियों एवं स्थितियों के साथ सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किया हुआ हो।
Adjustment समायोजन की परिभाषायें
मनोविज्ञानिकों ने समायोजन की अनेकों परिभाषायें प्रस्तुत की है परन्तु हम आपको कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं पर प्रकाश डालेगें।
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गेट्स, जरसील्ड के अनुसार – समायोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने व्यवहार में इस प्रकार से परिवर्तन करता है कि उसे स्वयं तथा अपने वातावरण के बीच और अधिक मधुर संबंध बनाने के लिए मदद मिल सके।
स्मिथ के अनुसार- अच्छा समायोजन वह है जो यथार्थ पर आधारित संतोष देने वाला होता है।
वोनहेलर के अनुसार – हम समायोजन शब्द को अपने आपको मनोवैज्ञानिक रूप से जीवित रखने के लिए वैसे ही प्रयोग में ला सकते हैं जैसे कि जीवशास्त्री अनुकूलन शब्द का प्रयोग किसी जीव को शारीरिक या भौतिक दृष्टि से जीवित रखने के लिए करते हैं।
शेफर के अनुसार- समायोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई प्राणी अपनी आवश्यकताओं तथा इन आवश्यकताओं से सम्बन्धित परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखता है।
Adjustment समायोजन के तत्व
संतुलन बनाये रखना - समायोजन एक सन्तुलन बनाये रखने की प्रक्रिया है मुख्यतः व्यक्ति की शारीरिक,सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि को प्रभावित करने बाली परिस्थितियों के बीच
सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध - व्यक्ति तथा उसके वातावरण के मध्य सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों का बने रहना ।
वातावरण को बदलने की प्रक्रिया — परिस्थिति की आवश्यकता के अनुसार कई बार समायोजन के लिए व्यक्ति को वातावरण में परिवर्तन भी लेकर आना पड़ता है।
सामाजिक भावना तथा जवाबदेही - 'समायोजन' व्यक्ति की इस भावना की वजह से संभव हो पाता है कि वह एक विशिष्ट समाज का सदस्य है तथा उसे उस सदस्यता से सम्बन्धित कुछ भूमिका तथा जवाबदेही उठानी होती है।
व्यवहार का परिमार्जन - परिस्थिति की आवश्यकता के अनुसार अपने मी व्यवहार का परिमार्जन कर लेना ही समायोजन है।
एक प्रक्रिया एवं उपलब्धि - कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा समायोजन को एक प्रक्रिया ही माना जाता है जबकि कुछ इसे व्यक्ति द्वारा प्राप्त किये जाने वाली उपलब्धि या एक उत्पाद के रूप में मानत हैं।
बहु-आयामी प्रक्रिया - समायोजन एक बहु-आयामी प्रक्रिया है। चूँकि एक व्यक्ति हमेशा एक ही परिस्थिति तथा स्थान पर नहीं रहता है, वह विभिन्न स्थानों पर जाता है, अलग-अलग भूमिकाओं का निर्वहन करता है। अतः उसे विभिन्न आयामों में समायोजन बनाए रखना होता है।
Adjustment समायोजन की विधियाँ
मुख्यतः समायोजन की विधियों को दो भागों में विभाजित किया जाता है प्रत्यक्ष विधि ओर अप्रत्यक्ष विधि।
सबसे पहले हम प्रत्यक्ष विधियों के बारे में जानते है —
समायोजन की प्रत्यक्ष विधियाँ
प्रत्यक्ष विधियों व्यक्ति द्वारा चेतन अवस्था मे समायोजन से संबंधित समस्या के समाधान हेतु प्रयोग ली जाती है । यह विधियों में निम्नलिखित को सम्मलित किया जाता है ।
प्रयासों की संख्या बढ़ाना– कुछ परिस्थितियों में व्यक्ति जब असफलता का सामना करता है तो वह अपने प्रयासों का मूल्यांकन करता है
और यदि उसे लगता है कि उसके प्रयासों में कोई कमी रह गयी है तो वह अपने प्रयासों को बढ़ा कर समस्या का समाधान करने का प्रयास करता है।
समझौतावादी उपाय अपनाना कभी-कभी व्यक्ति परिस्थिति में समायोजित होने के लिए कुछ समझौते करने को तैयार हो जाता है।
अर्थात् अपने आपको तथा अपनी आवश्यकताओं को या तो परिमार्जित कर लेता है या उन्हें सीमित कर देता है।
समर्पण कर देना कुछ परिस्थितियों में व्यक्ति जब समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का सामना करता है
वह स्वयं को किसी के अधीन करने को तैयार हो जाता है यह भी एक प्रकार की समायोजन विधि मानी जाती है।
सही चुनाव कर निर्णय लेना समायोजन करने हेतु व्यक्ति समस्या का तथा उससे सम्बन्धित सभी पहलुओं का विश्लेषण करता है तथा सही विकल्प का चयन करता है
उसी के अनुसार अपने आगे के निर्णय लेता है और इस प्रकार से किसी विशेष परिस्थिति में वह समायोजन कर पाता है।
समायोजन की अप्रत्यक्ष विधियाँ
इन विधियों को रक्षा प्रक्रम भी कहा जाता है। ये विधियाँ व्यक्ति के अचेतन मन से उत्पन्न मानी जाती हैं।
फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धान्त के आधार पर यह माना जाता है कि व्यक्ति का अहम (Ego) इन युक्तियों को तब प्रयोग करता है जब उसमें चिन्ता उत्पन्न होती है।
अतः जब व्यक्ति को उसकी कमियों या असफलताओं के कारण ठेस पहुँचती है। तब वह उन असफलताओं तथा कमजोरियों से उत्पन्न होने वाली चिन्ता से स्वयं को बचाने के लिए जिन रक्षात्मक साधनों का प्रयोग करता है उन्हें ही मनोविज्ञान में रक्षात्मक युक्तियाँ कहा जाता है।
समायोजन की अप्रत्यक्ष विधियाँ निम्नलिखित है
दमन – दमन एक मुख्य रक्षा प्रक्रम है जिसमें की विभिन्न इच्छाएँ अनैतिक एवं असामाजिक विचार आदि को व्यक्ति की जानकारी के बिना ही अचेतन में धकेल दिया जाता है
अतः किमी ऐसी इच्छा के उत्पन्न होने से जो कि समाज द्वारा या यथार्थ के अनुरूप स्वीकार नही की जा सकती अहम द्वारा अचेतन रूप से दबा दिया जाता है जिसको दमन कहते है ।
प्रतिगमन पिछली अवस्थाओं के व्यवहार प्रदर्शित करना ही प्रतिगमन कहलाता है अर्थात् जब व्यक्ति अपने जीवन की गुजरी हुई अवस्थाओं से सम्बन्धित लक्षण व्यवहार में प्रदर्शित करता है वह प्रतिगमन का सहारा ले रहा होता है।
उदाहरण के लिए जब कोई 6-7 वर्ष का बालक अपने छोटे भाई/बहन के आने पर उसके साथ घुटनों के बल चलने लगता है तो इसे प्रतिगमन ही माना जाता है।
क्षतिपूर्ति इस रक्षा युक्ति में व्यक्ति अपनी हीनता की पूर्ति के लिए किसी प्रकार से दूसरे कार्य में बेहतर निष्पादन करता है
अतः एक क्षेत्र में असफलता की पूर्ति दूसरे क्षेत्र में सफलता प्राप्त करके की जाती है। इसके अलावा, अपनी कमी को छुपाने या दूर करने के उपाय एवं प्रबंध भी क्षतिपूर्ति के अन्तर्गत ही आते हैं।
उदाहरणके लिए यदि एक लड़की जो रंग-रूप में अच्छी नहीं है वह बहुत ही अच्छे कपड़े पहनकर लोगों के समक्ष जाए।
औचित्य स्थापन – इस रक्षा प्रक्रम में व्यक्ति अपनी कमियों, गलतियों या गलत विचारों को विभिन्न रूपों में सही ठहरा कर युक्तियाँ प्रयोग लेता है। इसके दो रूप हो सकते हैं- अंगूर खट्टे हैं तथा नींबू मीठे हैं। अंगूर खट्टे हैं प्रकार के युक्तिकरण में व्यक्ति जिस वस्तु को नहीं पा पाता उसमें हो खामी निकालता है
अर्थात् यदि कई प्रयत्न करने के बाद भी किसी कार्य में सफल नहीं हो पाता तो उस कार्य का महत्त्व ही नगण्य बताता है। जबकि नींबू मीठे हैं प्रकार के तर्क संगतीकरण में व्यक्ति स्वयं के पास जो भी होता है उसे ही वह सबसे अच्छा बताता है।
उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति जिसका की अपनी नौकरी में प्रमोशन ना हुआ हो वह यह कहे कि अच्छा ही हुआ कि मेरा प्रमोशन नहीं हुआ, नहीं तो मुझे बहुत तनाव का सामना करना पड़ता।
प्रक्षेपण – इस रक्षा प्रक्रम में व्यक्ति अपने दोषों तथा बुरे कार्यों को दूसरे व्यक्तियों पर धोपकर स्वयं की निन्दा से बचने की कोशिश करता है।
अतः इस प्रकार में अपने गलतियों का आरोप किसी भी अन्य व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति पर लगाया जा सकता है।
अन्यारोपण – इस रक्षा प्रक्रम में व्यक्ति अपने प्रेम से सम्बंधित संवेगों को किसी अन्य मानव या अपने प्रिय से सम्बंधित वस्तुओ पर आरोपित करने लगता है ।
अन्तः क्षेपण – यह रक्षा प्रक्रम काफी कम पाया जाता है । इस रक्षा प्रक्रम में मनुष्य अपनी पहचान भूल कर किसी अन्य व्यक्ति में ही अपने आपको पूर्णतः समाहित कर लेते है ।
वह स्वयं को कोई ओर समझने लगता है यह एक प्रकार से तादात मीकरण का अत्यधिक गहन रूप में होना ही होता है ।
दिवास्वपन – इसका अर्थ है दिन में सपने देखना । जब किसी व्यक्ति की इच्छा पूरी नही होगी तो वह सपने में अपनी इच्छा पूरी कर अपने अचेतन के अंदर पूर्ति कर लेता है ।
तादात्मीकरण (Identification ) — इस रक्षा प्रक्रम में व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के अनुसार अपने आप को ढालने की कोशिश करने लगता है।
इसके अलावा अपनी जान पहचान वाले किसी व्यक्ति की सफलता से स्वयं को दूसरों के सम्मुख पहचान करवाना भी तादात्मीकरण ही कहलाता है। सामान्यतः किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के पहनावे, बोलचाल आदि का अनुसरण करना तादात्मीकरण का उदाहरण है।
सहानुभूतिकरण – इस रक्षा प्रक्रम में व्यक्ति अपने आपके लिए दूसरों से अत्यधिक सहानुभूति ग्रहण करने की कोशिश करता है
अतः यदि उसे कोई छोटी समस्या भी होती है तो उसका बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रदर्शन करता है ताकि उसे अधिक से अधिक सहानुभूति प्राप्त हो सके।
प्रतिकरण – इस प्रक्रम में व्यक्ति में विद्यमान इच्छा/संवेग के ठीक विपरीत इच्छा/संवेग का प्रदर्शन किया जाता है क्योंकि जो वास्तविक इच्छा होती है वह समाज में स्वीकार्य नहीं होती है या उसके कारण व्यक्ति को नुकसान की संभावना होती है।
उदात्तीकरण – इस रक्षा प्रक्रम में व्यक्ति द्वारा अपनी कमियों या दमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज द्वारा स्वीकृत रचनात्मक कार्यों की तरफ मोड़ दिया जाता है।
इसे शुद्धिकरण भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए- जैसे आक्रामक व्यक्तित्व वाले व्यक्ति का अपने आपको बॉक्सिंग या फुटबॉल आदि खेलों की तरफ लगा देना।
विस्थापन – जब व्यक्ति अपने नकारात्मक संवेगों को सम्बन्धित बलशाली व्यक्ति से हटाकर किसी दूसरे निर्बल तथा तटस्थ व्यक्ति या वस्तुओं पर स्थानांतरित करने लगता है तो इसे विस्थापन की संज्ञा दी जाती है।
उदाहरण के लिए यदि किसी बालक को विद्यालय में अध्यापक द्वारा डांटा जाता है और वह घर आकर अपने खिलौनों को क्रोध में इधर-उधर फेंकता है तो यह विस्थापन ही कहलायेगा।
अलगाव – जब व्यक्ति अपनी असफलताओं केकारण अपनी पहचान ही बदल लेना चाहता है अर्थात् जिस परिस्थिति में उसे समस्याओं का सामना करना पड़ता है वहाँ से खुद को दूर ले जाना चाहता है तो उसे अलगाव का नाम दिया जाता है।
उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति पर अत्यधिक कर्ज हो और वह उसे चुकाने में सक्षम ना हो और अन्ततः वह अपने रहने का स्थान तथा पहचान ही बदल कर कहीं और चला जाये तो उसे अलगाव कहा जाता है।
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English Notes – https://www.britannica.com/science/adjustment-psychology