नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट AKstudyHub में आज का आर्टिकल समावेशी शिक्षा – अर्थ,परिभाषा,विशेषता और मॉडल मनोविज्ञान विषय का एक महत्वपूर्ण अध्याय है । हम इस आर्टिकल के माध्यम समावेशी शिक्षा के माध्यम से इसका अर्थ,परिभाषा,विशेषता,मॉडल के साथ साथ अन्य सभी महत्वपूर्ण जानकारी देगें।
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समावेशी शिक्षा का अर्थ
समावेशी शिक्षा से आशय ऐसी शिक्षा से है, जिसके द्वारा विशिष्ट/दिव्यांग बालकों को सामान्य बच्चों की कक्षा में ही विशिष्ट शिक्षा प्रदान की जाती है। विशिष्ट शिक्षा का ध्येय बाधित बच्चों में छिपी योग्यता को उजागर करना होता है।
यह शिक्षा शारीरिक एवं मानसिक रूप से बाधित बच्चों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षा ग्रहण पर जोर देती है तथा इन बालकों की शिक्षा हेतु अनुमोदन करती है।
इस शिक्षा में बालक की शारीरिक, बौद्धिक-मानसिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विभिन्नताओं की पहचान की जाती है।
समावेशी शिक्षा का निर्धारण छात्र-छात्राओं की बुद्धि-लब्धि, शैक्षिक स्तर व योग्यताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा के अनेक स्तर होते हैं, जो बालकों के अनुरूप निर्धारित किए जाते हैं।
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समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) एक शिक्षा प्रणाली है जो विभिन्न प्रकार के छात्रों को, सहायता और समर्थन के साथ, सामान्य शिक्षा पदार्थों में सम्मिलित करने का ध्यान देती है।
समावेशी शिक्षा प्रणाली एक मानवीय अधिकार दृष्टिकोण से आधारित होती है और सभी छात्रों को समान अवसर और उच्चतम स्तर की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मानती है।
समावेशी शिक्षा के मुख्य लक्ष्यों में से एक है कि छात्रों को उनकी आवश्यकताओं और क्षमताओं के अनुरूप शिक्षा सुविधाएं प्रदान की जाएं, जिससे वे सामान्य शिक्षा प्रणाली में समानता के साथ शामिल हो सकें।
इसमें विभिन्न छात्रों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे विकलांग, अपंग, मानसिक रूप से विकसित छात्र, अनुवांशिक विकलांगता वाले छात्र, और सामान्य छात्रों को भी इसमें शामिल किया जाता है।
समावेशी शिक्षा छात्रों को स्वीकार्यता, समर्पण, संगठनशीलता, संप्रेषण और समर्थन के माध्यम से उनके विकास की समर्थना करती है। इसका मकसद छात्रों को स्वतंत्र, सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम बनाना है ताकि वे समाज के अवसरों का लाभ उठा सकें और स्वयं को सकारात्मक ढंग से जीवित कर सकें।
समावेशी शिक्षा की परिभाषा
- अडवानी और चड्ढा के अनुसार “समावेशी शिक्षा का उद्देश्य एकसहायक तथा अनुकूल पर्यावरण की रचना करना है ताकि सभी को पूर्ण प्रतिभागिता के लिये समान अवसर प्राप्त हो सकें और इस तरह से विशेष आवश्यकता वाले बालक शिक्षा की मुख्य धरा के क्षेत्र में सम्मिलित हो सकें। यह विद्यार्थियों की विभिन्न आवश्यकताओं के महत्त्व को समझती है। यह उपयुक्त पाठ्यक्रम, शिक्षण युक्तियों, सहायक सेवाओं, तथा समाज व माता- पिताओं के सहयोग के द्वारा सभी को समान शिक्षा प्रदान करने का विश्वास दिलाती है।”
- एम. मैनीबज्ञान के शब्दों में “समावेशी शिक्षा उस नीति तथा प्रक्रिया का परिपालन है जो सब बच्चों को सभी कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए अनुमति देती है। नीति से तात्पर्य है कि अपंग बालकों को बिना किसी अवरोध के सामान्य बालकों के सभी शैक्षिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए स्वीकृति प्रदान करे। समावेशी प्रक्रिया से अभिप्राय पद्धति के उन साधनों से है जो इस प्रक्रिया को सबके लिए सुखद बनाये। समावेशी शिक्षा क्षतियुक्त बालकों के लिए सामान्य शिक्षा के अभिन्न अंग के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह सामान्य शिक्षा के भीतर अलग से कोई प्रणाली नहीं है।”
- स्टेनबैक एवं स्टेनबैक का विचार है कि “समावेशी विद्यालय अथवा पर्यावरण से अभिप्राय ऐसे स्थान से है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपने को सदस्य मानता है, जिसको अपना समझा जाता है, जो अपने साथियों और विद्यालय कुटुम्ब के प्रत्येक सदस्य की सहायता करता है और अपनी शिक्षा प्राप्ति सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उनसे सहायता प्राप्त करता है।”
समावेशी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ
- समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत सामान्य तथा विशिष्ट दोनों प्रकार के बालक शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस शिक्षा में विशिष्ट / दिव्यांग बालकों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- इसमें बाधित बालकों की अवस्था को ध्यान में रखकर उनके विकास में विशिष्ट प्रयास किए जाते हैं।
- इस शिक्षा के अन्तर्गत संज्ञानात्मक, सृजनात्मक एवं संवेगात्मक विकास के अवसर दिए जाते हैं।
- यह शिक्षा अमेरिका की मुख्यधारा आन्दोलन से प्रेरित है। इस शिक्षा के अन्तर्गत विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुसार ही अभियोजन किया जाता है।
- इस शिक्षा के अन्तर्गत सामान्य तथा विशिष्ट दोनों प्रकार के बालकों के लिए एक प्राकृतिक वातावरण तैयार किया जाता है।
- दोनों प्रकार के बालकों को पढ़ाने का खर्च सामान्य बजट के ही अनुरूप होता है।
- इस शिक्षा की कक्षा में दृष्टिबाधित बालक के लिए ब्रेल लिपि का प्रयोग किया जाता है।
- इस प्रकार की शिक्षा के द्वारा विशिष्ट बालकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है
समावेशी शिक्षा के सिद्धांत
- वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर शिक्षा समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत वैयक्तिक भिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान की जाती है; जैसे—मन्दबुद्धि बालकों को धीरे-धीरे पढ़ाया जाता है, प्रतिभाशाली बालकों को विस्तारपूर्वक पढ़ाया जाता है। कुछ ऐसे बालक जो पढ़ने में रुचि नहीं लेते, उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाता है तथा उनमें पढ़ने के प्रति रुचि पैदा की जाती है।
- बिना भेदभाव के शिक्षा समावेशी शिक्षा में भिन्न-भिन्न प्रकृति के बालकों को वर्गीकृत करके, उन्हें आवश्यकतानुसार बिना भेद किए पढ़ाया जाता है।
- माता-पिता के सहयोग की अपेक्षा समावेशी शिक्षा में बालकों के माता-पिता या अभिभावकों की सहमति आवश्यक है, क्योंकि विशिष्ट छात्र-छात्राओं के माता-पिता यदि इस सम्बन्ध में अपनी पूर्ण सहमति दे देते हैं, तो समावेशी शिक्षा को स्वतन्त्रतापूर्वक व उचित प्रकार से दिया जा सकता है।
- वातावरण नियन्त्रण पूर्ण होने का सिद्धान्त इस सिद्धान्त के अनुसार, सामान्य एवं विशिष्ट बालकों के मध्य कक्षा में समन्वयपूर्ण वातावरण स्थापित होने से समावेशी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
समावेशी शिक्षा के बालको के प्रकार
- सामान्य बालक जो बालक शारीरिक, मानसिक, शैक्षिक व सामाजिक रूप से सामान्य व स्वस्थ होता हैं, सामान्य बालक कहलाता है।
- शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक इसके अन्तर्गत निम्न प्रकार के बालक आते हैं 1. शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक 2. सम्प्रेषण बाधित बालक 3. शैक्षिक रूप से समृद्ध बालक 4.किसी विषय विशेष को न सीख पाने वाले बालक ।
- मानसिक रूप से वंचित बालक मानसिक रूप से वंचित बालक तीन प्रकार के होते हैं 1. सृजनशील बालक 2. मन्दबुद्धि बालक 3. प्रतिभाशाली बालक ।
- सामाजिक रूप से वंचित बालक इस श्रेणी में निम्नलिखित बालक आते हैं 1. समस्यात्मक बालक 2. सांवेगिक रूप से निर्बल बालक… 3. असमायोजित बालक 4. माता-पिता या अभिभावक द्वारा तिरस्कृत बालक 5. बाल अपराधी ।”
- शारीरिक अक्षमता वाले बालक ये बालक दृष्टि बाधित, श्रवण बाधित, वाक् दोष एवं अस्थि बाधित होते हैं।
- मानसिक अक्षमता एवं सक्षमता वाले बालक मानसिक रूप से अक्षम बालकों की पहचान बुद्धि-लब्धि के माध्यम से की जाती है। ये बालक 90 से 120 तक की IQ के हो सकते हैं। जो बालक 120 से ऊपर होते हैं, वे प्रतिभाशाली, सृजनशील होते हैं। जिन बालकों का 1.Q. 90 या इससे कम हो, वे मन्दबुद्धि वाले होते हैं।
- शैक्षिक समावेश वाले बालक शैक्षिक समावेश वाले बालकों की पहचान-सड़कों पर घूमने-फिरने वाले बालक, प्रवासी श्रमिकों के बच्चे, HIV पॉजीटिव वाले बालक इत्यादि होते हैं।
- शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक शैक्षिक रूप से भिन्न बालकों की पहचान ये बालक सम्प्रेषण बाधित, शैक्षिक रूप से पिछड़े तथा शैक्षिक रूप से समृद्ध बालक होते हैं।
- सामाजिक रूप से वंचित बालक सामाजिक रूप से वंचित बालकों की पहचान —ये बाल अपराधी, माता-पिता द्वारा तिरस्कृत, समस्यात्मक, वंचित बालक, सांवेगिक रूप से परेशान बालक होते हैं।
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता
समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएं निम्नलिखित है
- सामान्य एवं अपंग बालकों के बीच प्राकृतिक वातावरण बनता है। एकीकरण की भावना विकसित होती है।
- यह शिक्षा प्रगति में सहायक होती है।
- समायोजन, भाईचारा, सम्मान तथा दयालुता आदि गुणों का विकास होता है।
- समानता के सिद्धान्त को बल मिलता है। सामाजिक गुणों का विकास होता है।
- समस्यात्मक बालक बनने से रोकने के लिए समावेशी शिक्षा बहुत आवश्यक है।
- अक्षम बालक सामान्य बालक के साथ सम्मिलित होकर किसी-न-किसी रूप में लाभान्वित होता है।
- “वैयक्तिक भिन्नता के फलस्वरूप, समावेशी शिक्षा अधिक लाभप्रद है। समावेशी शिक्षा से सामान्य, अक्षम और सक्षम सभी लाभान्वित होते हैं।
समावेशी शिक्षा के मॉडल
समावेशी शिक्षा के सिद्धान्तों पर आधारित मॉडल निम्न प्रकार
- मौखिक संचार मॉडल
- सांख्यिकीय मॉडल
- मनोसामाजिक मॉडल
- सांस्कृतिक मॉडल
- चिकित्सीय अथवा जीव-विधा मॉडल
उपरोक्त सभी मॉडलों का संक्षिप्त परिचय निम्नवत् है
- मौखिक संचार मॉडल बालक की शैक्षिक उपलब्धि या तो सकारात्मक रूप से प्रभावित होती है अथवा नकारात्मक रूप से। इन्हें प्रभावित करने वाले कुछ कारक अवश्य होते हैं। एक क्षतियुक्त बालक के द्वारा भाषा अथवा वाक् सम्बन्धी दोष के कारण निम्नलिखित परिणाम सामने आते हैं।
कारण | क्षतियुक्त बालक का हकलाना, स्वर दोषयुक्त, मौखिक संचार में भिन्नता |
परिणाम | सीखने की मन्द गति, पिछड़ापन, व्यक्तित्व सम्बन्धी दोष, संवेगात्मक रूप से अव्यवस्थित |
- सांख्यिकीय मॉडल इस मॉडल के द्वारा बालकों की विशिष्टता के बारे में जाना जाता है। यह मॉडल वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित होने के कारण सांख्यिकीय मॉडल कहलाता है
- मनोसामाजिक मॉडल इस मॉडल के द्वारा उन बालकों की पहचान की जाती है, जो मनो-संवेगों से विक्षिप्त या प्रभावित होते हैं। मनोसामाजिक रूप से सम्बन्धित बालक एक ऐसा बालक है, जिसे विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है। ऐसे बालकों में समस्यात्मक तथा अपराधी प्रवृत्ति के दोष पाए जाते हैं। अतः संवेगात्मक अस्थिरता इन्हें समस्यात्मक एवं अपराधी बनाती है।
- सांस्कृतिक मॉडल इसके द्वारा सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक, असुविधायुक्त एवं वंचित बालकों की पहचान की जाती है। पहचान करके इनके लिए विशेष समावेशी शिक्षा की व्यवस्था कराई जाती है।
- चिकित्सीय अथवा जीव-विधा मॉडल जैसा कि इसके नाम से विदित है, यह मॉडल शारीरिक अक्षमता वाले बालकों की पहचान कराता है। शारीरिक अक्षमता निम्न कारणों द्वारा हो सकती है
- आनुवंशिक कारण
- गम्भीर चोट या दुर्घटना
- जन्म के समय होने वाली क्षति जन्म से पूर्व क्षति इत्यादि ।
- ऐसे बालकों के लिए विशेष शिक्षा का आयोजन बालकों की शारीरिक कमी को ध्यान में रखकर किया जाता है।
समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में शिक्षा नीति-2006
समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में शिक्षा नीति-2006 के अन्तर्गत कुछ विशेष तथ्यों एवं उद्देश्यों को रखा गया, जो इस प्रकार हैं
- बाधित बालकों की प्रारम्भिक स्तर पर पहचान करना तथा उनके लिए कार्यक्रम बनाना।
- शारीरिक तथा मानसिक दोषों से ग्रस्त बालक, जो सामान्य शिक्षा संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त करने के अयोग्य हैं, यदि समन्वित शिक्षा में उन्हें सामान्य बालकों के साथ शिक्षा दी जाती है, तो वे अपमान, तिरस्कार तथा हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें सुरक्षा प्रदान करना।
- सामान्य शिक्षा संस्थाओं में विशिष्ट शिक्षा के कार्यक्रमों का उपयोग करने के लिए संसाधन एजेन्सी के रूप में सेवाएँ उपलब्ध कराना।
- विकलांग बालकों के लाभ के लिए विभिन्न प्रविधियों का पर्याप्त विकास हो रहा है। ऐसे में विकलांगों को विभिन्न सहायक प्रविधियाँ उपलब्ध कराना।
- भारतीय संविधान के खण्ड तीन तथा चार में शिक्षा सम्बन्धी अनेक प्रावधान किए गए हैं। केन्द्र तथा राज्यों के शैक्षिक उत्तरदायित्वों को भी विभाजित किया गया है।
- प्रारम्भिक शिक्षा का मूल अधिकार अल्पसंख्यकों की शिक्षा, शिक्षा अधिकारों में समानता, अनुसूचित जाति व जनजाति के बालकों की शिक्षा, धार्मिक शिक्षा की स्वतन्त्रता, शिक्षा के माध्यम से हिन्दी भाषा के विकास इत्यादि के सम्बन्ध में संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं।
शिक्षा का अधिकार एवं अनिवार्य शिक्षा
संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत शिक्षा का अधिकार एक इच्छित अधिकार माना जाता है। शिक्षा का यह अधिकार प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता के अधिकार से प्रवाहित होता है। अनुच्छेद-21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण तथा दैहिक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकेगा।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-19 भी शिक्षा के अधिकार की ओर संकेत करता है, जिसमें नागरिकों को वाक् तथा अभिव्यक्ति स्वातन्त्र्य एवं रोजगार करने का अधिकार दिया गया है।
वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 21 (क) को जोड़कर प्रारम्भिक शिक्षा को नागरिकों का एक मूल अधिकार बना दिया गया है। अनुच्छेद 21 (क) में कहा गया है कि राज्य 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगा।
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