समास का शाब्दिक अर्थ है छोटा करना या घटाना अथार्त जिसके द्वारा शब्दो को छोटा किया जाय उसे हम समास कहते है।
आज के इस लेख में हम समास की परिभाषा, समास का अर्थ और यह कितने प्रकार का होता इन्ही सब बिंदुओं पर विस्तार पूर्वक चर्चा करेगें ।
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समास की परिभाषा
जब दो या दो से अधिक पद मिलकर एक नवीन शब्द की रचना करते है , और उनके मध्य लगने वाली विभक्ति और संयोजक लुप्त हो जाते है लेकिन अर्थ में कोई परिवर्तन नही होता इसी क्रिया को समास कहते है ।
जैसे- सूर्यस्य उदयः सूर्य का उदय से नया शब्द बनता है सूर्योदयः जिसमे षष्टी विभक्ति का लोप हो जाता है इसी क्रिया को समास कहते है ।
समास किसे कहते है
समास का शाब्दिक अर्थ है छोटा करना या घटाना अथार्त जिसके द्वारा शब्दो को छोटा किया जाय उसे हम समास कहते है। समास में दो शब्द प्रधान होते है जो निम्न है –
1- समस्तपद – समस्त का शाब्दिक अर्थ है सम्पूर्ण , पद का अर्थ होता है शब्द । इसी को सामासिक शब्द भी कहते है अथार्त जिन शब्दों में समास हो जाता है , वे शब्द ‘समस्त पद’ कहलाते है ।
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2- विग्रह वाक्य – समस्त पद में प्रयोग किये गये शब्दो को अर्थ के अनुसार अलग अलग विभक्तियों में लिखने की विधि को विग्रह वाक्य कहते है । समस्त पद का अर्थ छोटा रूप होता है , तो विग्रह वाक्य का अर्थ बड़ा रूप होता है ।
समास के प्रकार
मुख्य रूप से समास के छः प्रकार होते है
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- अव्ययीभाव समास
- द्विगु समास
- बहुव्रीहि समास
- द्वन्द समास
तत्पुरुष समास के अन्य भेद भी होते है जो हम आगे विस्तार पूर्वक पढ़ेगे और अन्य के बारे में भी जानेगें।
1. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास में उत्तर पद की प्रधानता रहती है अथार्त जो पहला पद होता है उसकी प्रधानता अधिक होती है ।तत्पुरुष समास मुख्य रूप से छः प्रकार के होते है जो निम्नलिखित है
कर्म तत्पुरुष
(को)
यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
रथचालक | रथ को चलाने वाला |
ग्रामगत | ग्राम को गया हुआ |
स्वर्गगत | स्वर्ग को गया हुआ |
गृहागत | गृह को गया हुआ |
परलोकगमन | परलोक को गमन |
सर्वप्रिय | सब को प्रिय |
जनप्रिय | जनता को प्रिय |
मक्खीमार | मक्खी को मारने वाला |
गगनचुम्बी | गगन को चूमने वाला |
करण तत्पुरुष
(से के द्वारा)
मुंहमांगा | मुँह से मांगा हुआ |
सुरचरित | सूर के द्वारा रचित |
हस्तलिखित | हाथ से लिखा हुआ |
प्रेमातुर | प्रेम से आतुर |
भुखमरा | भूख से मरा |
ईश्वरप्रदत्त | ईश्वर द्वारा प्रदत्त |
मनगढ़न्त | मन से गढ़ा हुआ |
रेखाँकित | रेखा से अंकित |
करुणापूर्ण | करुणा से पूर्ण |
सम्प्रदान तत्पुरुष
(के लिये)
सत्याग्रह | सत्य के लिये आग्रह |
गौशाला | गाय के लिये शाला |
परीक्षाभवन | परीक्षा के लिये भवन |
हथकड़ी | हाथ के लिये कड़ी |
यज्ञशाला | यज्ञ के लिये शाला |
पुण्यदान | पूण्य के लिये दान |
युद्धभ्यास | युद्ध के लिये अभ्यास |
चिकित्सालय | चिकित्सा के लिये आलय |
गुरु दक्षिणा | गुरु के लिये दक्षिणा |
देश भक्ति | देश के लिये भक्ति |
प्रतीक्षालय | प्रतीक्षा के लिये आलय |
कृष्णापर्ण | कृष्ण के लिये अर्पण |
अपादान तत्पुरुष
(से अलग होने के लिये)
जन्मांध | जन्म से अंधा |
पापयुक्त | पाप से युक्त |
वंधनमुक्त | वंधन से मुक्त |
धर्महीन | धर्म से हीन |
ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
जलहीन | जल से हीन |
पथभृष्ट | पथ से भृष्ट |
अपराध मुक्त | अपराध से मुक्त |
धर्म विमुख | धर्म से विमुख |
रोग मुक्त | रोग से मुक्त |
सम्बन्ध तत्पुरुष
(का,की,के)
प्रेमसागर | प्रेम सागर |
भारतरत्न | भारत रत्न |
राजपुत्र | राजा का पुत्र |
विद्यासागर | विद्या का सागर |
देशरक्षा | देश की रक्षा |
राजाज्ञा | राजा की आज्ञा |
शिवालय | शिव का आलय |
अमृतधारा | अमृत की धारा |
आज्ञानुसार | आज्ञा के अनुसार |
पूंजीपति | पूंजी का पति |
अधिकरण तत्पुरष
(में,पे,पर)
आनंदमग्न | आनंद में मग्न |
पुषोत्तम | पुरषो में उत्तम |
लोकप्रिय | लोक में प्रिय |
शोकमग्न | शोक में मग्न |
आपबीती | आप पर बीती |
कला निपुण | कला में निपुण |
कार्य कुशल | कार्य में कुशल |
गृह प्रवेश | गृह में प्रवेश |
हवाई यात्रा | हवाई में यात्रा |
शोक मग्न | शोक में मग्न |
2. कर्मधारय समास
विशेषण – विशेष्य (संज्ञा) अथवा उपमान-उपमेय वाले समास को कर्मधारय समास कहते हैं। इसमें दोनों शब्द (पूर्व पद एवं उत्तर पद) प्रथमा विभक्ति में होते हैं तथा दोनों ही पदों की प्रधानता होती है।
जैसे- ‘कृष्णाश्वः’ में प्रथम पद ‘कृष्णः’ अर्थात् काला विशेषण, जबकि अन्तिम पद ‘अश्व:’ अर्थात् घोड़ा विशेष्य है। इसका विग्रह होगा ‘कृष्णः अश्व:’ अर्थात् काला घोड़ा।
नील गाय | नीली है जो गाय |
परमानंद | परम् है जो आनंद |
नीलकंठ | नीला है जो कण्ठ |
महात्मा | महान है जो आत्मा |
सद्धर्म | सत है जो धर्म |
पीताम्बर | पीला है जो अम्बर |
चन्द्रमुखी | चन्द्रमा के समान मुख बाला |
सुविचार | अच्छे है जो विचार |
श्वेताम्बर | श्वेत है जो अम्बर |
लालटोपी | लाल है जो टोपी |
नीलाम्बर | नीला है जो अम्बर |
महादेव | महान है जो देव |
कमलनयन | कमल के समान है जो नयन |
प्राणप्रिय | प्राण है जो प्रिय |
मृग नयन | मृग की तरह है जो नयन |
लालमणि | लाल है जो मणि |
महापुरुष | महान है जो पुरुष |
महादेव | महान है जो देव |
अधमरा | आधा है जो मरा |
परमानन्द | परम् है जो आनंद |
3. अव्ययीभाव समास
जिस समास में प्रथम पद अव्यय तथा अन्तिम पद संज्ञा हो तथा प्रथम पद अर्थात् अव्यय के ही अर्थ की प्रधानता हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
इस समास के शब्द हमेशा नपुंसकलिंग एकवचन में ही रहते हैं। इस समास का अपने पदों में विग्रह नहीं होता; जैसे- ‘निर्धन’ का विग्रह होगा ‘धनानां अभावः ।
प्रतिदिन | प्रत्येक दिन |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
यथाक्रम | क्रम के अनुसार |
प्रत्येक | प्रति एक |
हाथोहाथ | हाथ ही हाथ मे |
हरघडी | घड़ी-घड़ी |
यथासम्भव | समय के अनुसार |
भरपेट | पेट भर के |
वेकाम | विना काम के |
बेखटके | विना खटके |
दिनोदिन | दिन ही दिन में |
आमरण | मरने तक |
आजन्म | जन्म से लेकर |
गाँव गाँव | प्रत्येक गाँव |
घर घर | प्रत्येक घर |
4.बहुव्रीहि समास
जिस समास में दोनों पद (पूर्व पद एवं उत्तर पद) को छोड़कर कोई अन्य पद प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। इस प्रकार इसमें सामासिक अर्थ दोनों पदों से भिन्न होता है |
जैसे- ‘त्रीनेत्र’ का विग्रह ‘ऋणि नेत्राणि यस्य सः’ (तीन है नेत्र जिसके) है, जिससे ‘शंकर’ का बोध होता है।
लम्बोदर | गणेश |
दशानन | रावण |
चक्रपाणि | कृष्ण |
महावीर | हनुमान जी |
चतुर्भुज | गणेश |
प्रधानमंत्री | मंत्रियों का प्रधान |
पंकज | कलम |
निशाचर | राक्षस |
विषधर | शिव |
घनश्याम | कृष्ण |
मृत्युंजय | शिव |
गिरधर | कृष्ण |
तिर्लोचन | शिव |
चन्द्रमौलि | शिव |
पीताम्बर | कृष्ण |
5.द्विगु समास
द्विगु समास की मुख्य विशेषता यह है कि इसका पहला शब्द संख्या वाचक होता है ।
नवनिधि | नव निधियों का समाहार |
सप्तदीप | सात दीपों का समूह |
नवरत्न | नव रत्नों का समूह |
चौराहा | चार रास्तो का समाहार |
पंचमडी | पांच मणियों का समुह |
त्रिरंगा | तीन रंगों का समूह |
6.द्वन्द समास
इस समास को विग्रह करने पर और या जैसे शब्द आते है।
जन्म मरण | जन्म और मृत्यु |
दाल रोटी | दाल और रोटी |
तन मन | तन और मन |
अमीर गरीब | अमीर और गरीब |
यश अपक्षय | यश और अपक्षय |
पाप पुण्य | पाप और पुण्य |
नर नारी | नर और नारी |
भला बुरा | भला और बुरा |
माँ वाप | माँ ओर वाप |
रात दिन | रात और दिन |
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