समास | समास की परिभाषा | समास किसे कहते है | समास के प्रकार – AK STUDY HUB FREE NOTES 2022

समास का शाब्दिक अर्थ है छोटा करना या घटाना अथार्त जिसके द्वारा शब्दो को छोटा किया जाय उसे हम समास कहते है।

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आज के इस लेख में हम समास की परिभाषा, समास का अर्थ और यह कितने प्रकार का होता इन्ही सब बिंदुओं पर विस्तार पूर्वक चर्चा करेगें ।

समास की परिभाषा

जब दो या दो से अधिक पद मिलकर एक नवीन शब्द की रचना करते है , और उनके मध्य लगने वाली विभक्ति और संयोजक लुप्त हो जाते है लेकिन अर्थ में कोई परिवर्तन नही होता इसी क्रिया को समास कहते है ।

जैसे- सूर्यस्य उदयः सूर्य का उदय से नया शब्द बनता है सूर्योदयः जिसमे षष्टी विभक्ति का लोप हो जाता है इसी क्रिया को समास कहते है ।

समास किसे कहते है

समास का शाब्दिक अर्थ है छोटा करना या घटाना अथार्त जिसके द्वारा शब्दो को छोटा किया जाय उसे हम समास कहते है। समास में दो शब्द प्रधान होते है जो निम्न है –

1- समस्तपद – समस्त का शाब्दिक अर्थ है सम्पूर्ण , पद का अर्थ होता है शब्द । इसी को सामासिक शब्द भी कहते है अथार्त जिन शब्दों में समास हो जाता है , वे शब्द ‘समस्त पद’ कहलाते है ।

2- विग्रह वाक्य – समस्त पद में प्रयोग किये गये शब्दो को अर्थ के अनुसार अलग अलग विभक्तियों में लिखने की विधि को विग्रह वाक्य कहते है । समस्त पद का अर्थ छोटा रूप होता है , तो विग्रह वाक्य का अर्थ बड़ा रूप होता है ।

समास के प्रकार

मुख्य रूप से समास के छः प्रकार होते है

  • तत्पुरुष समास
  • कर्मधारय समास
  • अव्ययीभाव समास
  • द्विगु समास
  • बहुव्रीहि समास
  • द्वन्द समास

तत्पुरुष समास के अन्य भेद भी होते है जो हम आगे विस्तार पूर्वक पढ़ेगे और अन्य के बारे में भी जानेगें।

1. तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास में उत्तर पद की प्रधानता रहती है अथार्त जो पहला पद होता है उसकी प्रधानता अधिक होती है ।तत्पुरुष समास मुख्य रूप से छः प्रकार के होते है जो निम्नलिखित है

कर्म तत्पुरुष

(को)

यशप्राप्तयश को प्राप्त
रथचालकरथ को चलाने वाला
ग्रामगतग्राम को गया हुआ
स्वर्गगतस्वर्ग को गया हुआ
गृहागतगृह को गया हुआ
परलोकगमनपरलोक को गमन
सर्वप्रिय सब को प्रिय
जनप्रियजनता को प्रिय
मक्खीमारमक्खी को मारने वाला
गगनचुम्बीगगन को चूमने वाला

करण तत्पुरुष

(से के द्वारा)

मुंहमांगामुँह से मांगा हुआ
सुरचरितसूर के द्वारा रचित
हस्तलिखितहाथ से लिखा हुआ
प्रेमातुरप्रेम से आतुर
भुखमरा भूख से मरा
ईश्वरप्रदत्त ईश्वर द्वारा प्रदत्त
मनगढ़न्त मन से गढ़ा हुआ
रेखाँकितरेखा से अंकित
करुणापूर्णकरुणा से पूर्ण

सम्प्रदान तत्पुरुष

(के लिये)

सत्याग्रहसत्य के लिये आग्रह
गौशालागाय के लिये शाला
परीक्षाभवनपरीक्षा के लिये भवन
हथकड़ीहाथ के लिये कड़ी
यज्ञशालायज्ञ के लिये शाला
पुण्यदानपूण्य के लिये दान
युद्धभ्यासयुद्ध के लिये अभ्यास
चिकित्सालयचिकित्सा के लिये आलय
गुरु दक्षिणागुरु के लिये दक्षिणा
देश भक्तिदेश के लिये भक्ति
प्रतीक्षालयप्रतीक्षा के लिये आलय
कृष्णापर्णकृष्ण के लिये अर्पण

अपादान तत्पुरुष

(से अलग होने के लिये)

जन्मांधजन्म से अंधा
पापयुक्तपाप से युक्त
वंधनमुक्तवंधन से मुक्त
धर्महीनधर्म से हीन
ऋणमुक्तऋण से मुक्त
जलहीनजल से हीन
पथभृष्टपथ से भृष्ट
अपराध मुक्तअपराध से मुक्त
धर्म विमुखधर्म से विमुख
रोग मुक्तरोग से मुक्त

सम्बन्ध तत्पुरुष

(का,की,के)

प्रेमसागरप्रेम सागर
भारतरत्नभारत रत्न
राजपुत्रराजा का पुत्र
विद्यासागरविद्या का सागर
देशरक्षादेश की रक्षा
राजाज्ञाराजा की आज्ञा
शिवालयशिव का आलय
अमृतधाराअमृत की धारा
आज्ञानुसारआज्ञा के अनुसार
पूंजीपतिपूंजी का पति

अधिकरण तत्पुरष

(में,पे,पर)

आनंदमग्नआनंद में मग्न
पुषोत्तमपुरषो में उत्तम
लोकप्रियलोक में प्रिय
शोकमग्नशोक में मग्न
आपबीतीआप पर बीती
कला निपुणकला में निपुण
कार्य कुशलकार्य में कुशल
गृह प्रवेशगृह में प्रवेश
हवाई यात्राहवाई में यात्रा
शोक मग्नशोक में मग्न

2. कर्मधारय समास

विशेषण – विशेष्य (संज्ञा) अथवा उपमान-उपमेय वाले समास को कर्मधारय समास कहते हैं। इसमें दोनों शब्द (पूर्व पद एवं उत्तर पद) प्रथमा विभक्ति में होते हैं तथा दोनों ही पदों की प्रधानता होती है।

जैसे- ‘कृष्णाश्वः’ में प्रथम पद ‘कृष्णः’ अर्थात् काला विशेषण, जबकि अन्तिम पद ‘अश्व:’ अर्थात् घोड़ा विशेष्य है। इसका विग्रह होगा ‘कृष्णः अश्व:’ अर्थात् काला घोड़ा।

नील गायनीली है जो गाय
परमानंदपरम् है जो आनंद
नीलकंठ नीला है जो कण्ठ
महात्मामहान है जो आत्मा
सद्धर्मसत है जो धर्म
पीताम्बरपीला है जो अम्बर
चन्द्रमुखीचन्द्रमा के समान मुख बाला
सुविचारअच्छे है जो विचार
श्वेताम्बरश्वेत है जो अम्बर
लालटोपीलाल है जो टोपी
नीलाम्बरनीला है जो अम्बर
महादेवमहान है जो देव
कमलनयनकमल के समान है जो नयन
प्राणप्रियप्राण है जो प्रिय
मृग नयनमृग की तरह है जो नयन
लालमणिलाल है जो मणि
महापुरुषमहान है जो पुरुष
महादेवमहान है जो देव
अधमराआधा है जो मरा
परमानन्दपरम् है जो आनंद

3. अव्ययीभाव समास

जिस समास में प्रथम पद अव्यय तथा अन्तिम पद संज्ञा हो तथा प्रथम पद अर्थात् अव्यय के ही अर्थ की प्रधानता हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।

इस समास के शब्द हमेशा नपुंसकलिंग एकवचन में ही रहते हैं। इस समास का अपने पदों में विग्रह नहीं होता; जैसे- ‘निर्धन’ का विग्रह होगा ‘धनानां अभावः ।

प्रतिदिनप्रत्येक दिन
यथाशक्तिशक्ति के अनुसार
यथाक्रमक्रम के अनुसार
प्रत्येकप्रति एक
हाथोहाथहाथ ही हाथ मे
हरघडीघड़ी-घड़ी
यथासम्भवसमय के अनुसार
भरपेटपेट भर के
वेकामविना काम के
बेखटकेविना खटके
दिनोदिनदिन ही दिन में
आमरणमरने तक
आजन्मजन्म से लेकर
गाँव गाँवप्रत्येक गाँव
घर घरप्रत्येक घर

4.बहुव्रीहि समास

जिस समास में दोनों पद (पूर्व पद एवं उत्तर पद) को छोड़कर कोई अन्य पद प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। इस प्रकार इसमें सामासिक अर्थ दोनों पदों से भिन्न होता है |

जैसे- ‘त्रीनेत्र’ का विग्रह ‘ऋणि नेत्राणि यस्य सः’ (तीन है नेत्र जिसके) है, जिससे ‘शंकर’ का बोध होता है।

लम्बोदरगणेश
दशाननरावण
चक्रपाणिकृष्ण
महावीरहनुमान जी
चतुर्भुजगणेश
प्रधानमंत्रीमंत्रियों का प्रधान
पंकजकलम
निशाचरराक्षस
विषधरशिव
घनश्यामकृष्ण
मृत्युंजयशिव
गिरधरकृष्ण
तिर्लोचनशिव
चन्द्रमौलिशिव
पीताम्बरकृष्ण

5.द्विगु समास

द्विगु समास की मुख्य विशेषता यह है कि इसका पहला शब्द संख्या वाचक होता है ।

नवनिधिनव निधियों का समाहार
सप्तदीपसात दीपों का समूह
नवरत्ननव रत्नों का समूह
चौराहाचार रास्तो का समाहार
पंचमडीपांच मणियों का समुह
त्रिरंगातीन रंगों का समूह

6.द्वन्द समास

इस समास को विग्रह करने पर और या जैसे शब्द आते है।

जन्म मरणजन्म और मृत्यु
दाल रोटीदाल और रोटी
तन मनतन और मन
अमीर गरीबअमीर और गरीब
यश अपक्षययश और अपक्षय
पाप पुण्यपाप और पुण्य
नर नारीनर और नारी
भला बुराभला और बुरा
माँ वापमाँ ओर वाप
रात दिनरात और दिन

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