समावेशी शिक्षा | Inclusive Education – Psychology Notes 2022-23

आज के लेख में हम आपको मनोविज्ञान और शिक्षा मनोविज्ञान के महत्वपूर्ण टॉपिक समावेशी शिक्षा Inclusive Education के वारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगें ।

समावेशी शिक्षा का साधारण अर्थ सभी वयक्तियों की समानता से है समावेशी शिक्षा में सभी असमर्थ बालको को सामान्य बालको के साथ साथ विशेष सेवाएँ प्रदान करना है

समावेशी शिक्षा क्या है | What is Inclusive Education

समावेशी शिक्षा को सभी व्यक्तियों की समानता के अधिकार को पहचानने और सभी बालकों को विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा के समान अवसर के रूप में देखा जाता है।

कम प्रतिबन्धित वातावरण जो समावेशी शिक्षा अपंग बालकों की शिक्षा सामान्य स्कूल तथा सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की ओर इशारा करती है।

शारीरिक तथा मानसिक रूप से बाधित बालकों को सामान्य बालकों के साथ सामान्य कक्षा में विशिष्ट सेवाएँ देकर विशिष्ट आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए शिक्षा देने में सहायता करती हैं।

समावेशी शिक्षा को हम निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा और अधिक स्पष्ट कर सकते है ।

समावेशी शिक्षा की विशेषताएं

  1. असमर्थ बालकों को सामान्य बालकों के साथ-साथ विशेष सेवाएँ प्रदान करना।
  2. स्थायी शिक्षकों तथा प्रशासकों को आवश्यकतानुसार सहायता प्रदान करना।
  3. सभी शिक्षार्थियों के लिए एक समान समय-सारणी लागू करना ।
  4. असमर्थ बालकों को भी विद्यालय की अन्य गतिविधियों जैसे कला, संगीत, भ्रमण तथा व्यायाम आदि में शामिल करने का प्रयास करना ।
  5. असमर्थ बालकों के लिए भी ऐसे प्रबन्ध करना कि वह भी पुस्तकालय, खेल के सामान तथा खेल के मैदान आदि का समान रूप से प्रयोग कर सकें।
  6. समर्थ तथा असमर्थ बालकों में स्वस्थ दोस्ती का रिश्ता असमर्थ बालकों को भी समर्थ बनाने के लिए प्रेरित करना।
  7. इस बात की प्रेरणा देना कि असमर्थ बालक भी इसी समाज का अंग हैं तथा उनको शिक्षित करना आपका भी कर्त्तव्य है।
  8. प्रत्येक बालक को इस प्रकार की शिक्षा देना कि प्रत्येक बालक एक -दूसरे से भिन्न होता है तथा सभी की आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं।
  9. जहाँ तक हो सके असमर्थ बालकों को सामान्य कक्षा में ही पढ़ाना चाहिए।…
  10. प्रत्येक बालक पर समान रूप से व्यक्तिगत ध्यान देना ताकि कोई बालक स्वयं को हीन न समझे।

समावेशी शिक्षा के उद्देश्य

समावेशी शिक्षा के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नवत् हैं

  • बालकों में आत्म-निर्भरता की भावना को विकसित करना।
  • असमर्थ बालकों को शिक्षित करके देश की मुख्यधारा से जोड़ना।
  • असमर्थ बालकों को सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से समाज से जोड़ना।
  • सभी बालकों में जागरूकता की भावना का विकास करना ।
  • असमर्थ बालकों को आत्म-निर्भर बनाकर उनके पुनर्वास का प्रबन्ध करना।
  • असमर्थ बालकों की असमर्थताओं का पता लगाकर उनको दूर करने का प्रयास करना!
  • शिक्षण में प्रजातान्त्रिक मूल्यों के उद्देश्यों को प्राप्त करना।
  • समाज में असमर्थ बालकों में फैली भ्रान्तियों का सामना करने के योग्य बनाना।

समावेशी शिक्षा की प्रकृति

समावेशी शिक्षा सामान्य विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ प्रदान की जाती है। इस शिक्षा के द्वारा असमर्थ बालकों को शिक्षा प्राप्त करने का क्षेत्र विस्तृत होता है।

समावेशी शिक्षा में दोनों प्रकार के बालक सम्मिलित होते ई अर्थात् असमर्थ और सामान्य बालक एक-साथ पढ़ते हैं जो सुविधाएँ सामान्य बालकों को प्राप्त होती हैं वे सुविधाएँ असमर्थ बालकों को भी प्राप्त होती हैं।

इसके अन्तर्गत शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग बालकों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान करके शिक्षा प्रदान की जाती है।

इसमें सामान्य एवं असमर्थ बालकों द्वारा एक-दूसरे को समझने से आपसी सूझ-बूझ का विकास होता है तथा सामान्य बालक असमर्थ बालकों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। जिससे असमर्थ बालकों की विशेष आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जा सकता है।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता

मनोवैज्ञानिकों ने विचार दिया है कि समावेशी शिक्षा हमारे सामान्य विद्यालयों में दी जाए जिससे सभी बालको को शिक्षा के समान अवसर मिलें।

इसकी आवश्यकता के कुछ प्रमुख कारण निम्नवत् है

सामाजिक एकीकरण को सुनिश्चित करने हेतु बाधित बालकों में कुछ सामाजिक गुण बहुत संगत होते हैं। जब वे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं, तब एकीकरण के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालको के साथ ग्रहण करते हैं।

उनमें सामाजिक, नैतिक गुण, प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है।

सामान्य मानसिक विकास सम्भव करने हेतु विशिष्ट शिक्षा में मानसिक जटिलता मुख्य है। अपंग बालक अपने आपको दूसरे बालकों की अपेक्षा तुच्छ तथा हीन समझते हैं।

समावेशी शिक्षा व्यवस्था में, अपंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से कम नहीं है।

इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति को अग्रसर करती है।

समानता के सिद्धान्त का अनुपालन करने हेतु भारत में, सामान्य शिक्षा के लिए व्यापक रूप से विस्तार की संवैधानिक व्यवस्था की गई है और साथ-साथ शारीरिक रूप से बाधित बालकों के लिए शिक्षा को व्यापक रूप देना भी संविधान के अन्तर्गत दिया गया है।

समावेशी शिक्षा के द्वारा ही समानता के उद्देश्य की प्राप्ति सम्भव है। जिससे कोई भी छात्र अपने आप को दूसरों की अपेक्षा हीन न समझे।

फिजूलखर्ची को कम करने हेतु निःसन्देह विशिष्ट शिक्षा अधिक महँगी तथा खर्चीली है। इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेते हैं जबकि समावेशी शिक्षा कम खर्चीली तथा लाभदायक है।

विशिष्ट शिक्षा संस्था को बनाने तथा शिक्षणकार्य प्रारम्भ करने के लिए अन्य विभिन्न स्त्रोतों से भी सहायता लेनी पड़ती है; जैसे प्रशिक्षित अध्यापक, विशेषज्ञ, चिकित्सक आदि।

शैक्षिक एकीकरण को सम्भव बनाने हेतु शैक्षिक एकीकरण सामान्यतया समावेशी शिक्षा के वातावरण द्वारा सम्भव है। शिक्षाविदों का ऐसा विश्वास है कि विशिष्ट शिक्षा संस्था में एक बालक के प्रवेश के पश्चात् ।

समान शैक्षिक योग्यता रखने वाला अपंग बालक उनके गुणों को ग्रहण करता है। लचीले वातावरण तथा । आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ समावेशी शिक्षा शैक्षिक एकीकरण लाती है।

समावेशी शिक्षा के माध्यम से एकीकरण करने हेतु विशिष्ट शिक्षण व्यवस्था की अपेक्षा समावेशी शिक्षण व्यवस्था में सामाजिक विचार-विमर्श अधिक किए जाते हैं।

अपंग तथा सामान्य बालक में सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत एक प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है। अपने सहपाठियों से सीखना एवं उनको सिखाना समावेशी शिक्षा द्वारा संभव हैं ।

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