संविधान जीवन का वह मार्ग है जिसे राज्य ने अपने लिए चुना है। राज्य का रूप चाहे किसी भी प्रकार का हो, आवश्यक रूप से उसका अपना एक जीवन-मार्ग अर्थात् संविधान होता है। यह बात न केवल लोकतन्त्रात्मक वरन् निरंकुश राज्यों के सम्बन्ध में भी पूर्ण सत्य है और इतिहास के आधार पर इसकी पुष्टि की जा सकती है।
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लोकतन्त्र की स्थापना के पूर्व फ्रांस में बूब वंश के निरंकुश व स्वेच्छाचारी राजाओं का शासन था। ये शासक अपनी इच्छा को ही कानून समझते थे, किन्तु इनके शासन में भी फ्रांस में एक प्रकार के संविधान की सत्ता विद्यमान थी और कुछ ऐसे कानून विद्यमान थे, जिनका उल्लंघन शासन द्वारा भी नहीं किया जा सकता था। कर लगाने के सम्बन्ध में शासक की शक्ति जनता की प्रतिनिधि संस्था ‘इस्टेट्स जनरल’ द्वारा सीमित थी और राजवंश के लोग किसे क्रम से सिंहासन पर आरूढ़ हों, इस बात के सम्बन्ध में भी निश्चित नियम थे।
राज्य के लिए संविधान की अनिवार्यता बताते हुए जैलीनेक (Jellineck) के शब्दों में कहा जा सकता है। कि “संविधानहीन राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। संविधान के अभाव में राज्य, राज्य न होकर एक प्रकार की अराजकता होगी। “”
“संविधान उस पद्धति का प्रतीक होता है जो किसी राज्य द्वारा अपने लिए अपनायी जाती है।”– अरस्तू
संविधान का अर्थ
मानव शरीर के सन्दर्भ में संविधान के आंग्ल पर्यायवाची शब्द ‘कॉन्स्टीट्यूशन’ (Constitution) का प्रयोग मानव शरीर के ढांचे व उसकी बनावट के लिए किया जाता है। जिस प्रकार मानव शरीर के सन्दर्भ में ‘कॉन्स्टीट्यूशन’ का अर्थ शरीर के ढांचे व गठन से होता है, उसी प्रकार नागरिकशास्त्र में, कॉन्स्टीट्यूशन का तात्पर्य राज्य के ढांचे तथा संगठन से होता है।”
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संविधान की परिभाषा
विभिन्न विद्वानों द्वारा संविधान की परिभाषा अलग-अलग प्रकार से की गयी है, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं:
- लीकाक: “किसी राज्य के ढांचे को उसका संविधान कहते हैं।”
- फाइनर : “संविधान मूलभूत राजनीतिक संस्थाओं की एक व्यवस्था है।”
- ब्राइस : “किसी राज्य अथवा राष्ट्र के संविधान का निर्माण उन नियमों अथवा कानूनों के योग से होता है जो सरकार के स्वरूप तथा सरकार के प्रति नागरिकों के अधिकारों तथा कर्तव्यों का निर्धारण करते हैं।”
- गिलक्राइस्ट का कथन है कि “संविधान उन लिखित या अलिखित नियमों अथवा कानूनों का समूह होता है जिनके द्वारा सरकार का संगठन, सरकार की शक्तियों का विभिन्न अंगों में वितरण और इन शक्तियों के प्रयोग के सामान्य सिद्धान्त निश्चित किये जाते हैं।”
- प्रो. डायसी के अनुसार, “संविधान उन समस्त नियमों का संग्रह है जिनका राज्य की प्रभुत्व सत्ता के प्रयोग अथवा वितरण पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है।”
विद्वानों द्वारा संविधान शब्द की जो परिभाषा की गयी है, उनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी राज्य के संविधान द्वारा प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन बातें निश्चित की जाती हैं : (1) व्यक्ति-व्यक्ति का पारस्परिक सम्बन्ध, (2) व्यक्ति और राज्य अर्थात् शासक और शासित के पारस्परिक सम्बन्ध, (3) संविधान द्वारा इन दो कार्यों से अधिक महत्वपूर्ण कार्य सरकार के संगठन, उसके ढांचे और सरकार के विविध अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करने का किया जाता है।
संविधान का वर्गीकरण
विभिन्न विद्वानों द्वारा संविधानों के जो विविध वर्गीकरण प्रस्तुत किये जाते हैं, उन्हें दृष्टि में रखते हुए वर्तमान समय में संविधानों का निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है :
(1) संविधान की उत्पत्ति के आधार पर। (2) संविधान में प्रथाओं और कानूनों के अनुपात के आधार पर।(3) संविधान की परिवर्तनशीलता के आधार पर।
संविधान की उत्पत्ति के आधार पर
उत्पत्ति के आधार पर संविधान दी प्रकार के होते हैं विकसित और निर्मित
- विकसित संविधान (Evolved Constitution ) — इस प्रकार के संविधानों का निर्माण संविधान सभा जैसी संस्था द्वारा निश्चित समय पर नहीं किया जाता वरन् ये संविधान विभिन्न परम्पराओं, रीति-रिवाजों, प्रथाओं और न्यायालयों के निर्णयों पर आधारित होते हैं। इंगलैण्ड का संविधान विकसित संविधान का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है जिसके अन्तर्गत शासन व्यवस्था का स्वरूप और सरकार के विविध अंगों की शक्तियां विकास का ही परिणाम हैं।
- निर्मित संविधान (Enacted Constitution)—ये वे संविधान होते हैं जिनका निर्माण एक विशेष समय पर संविधान सभा जैसी किसी विशेष संस्था के द्वारा किया जाता है। निर्मित संविधान स्वाभाविक रूप से लिखित होते हैं और साधारणतया कठोर भी होते हैं, परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि निर्मित संविधान का विकास नहीं होता। इनमें अन्तर केवल यही है कि विकसित संविधानों की तो उत्पत्ति ही विकास में होती है, लेकिन निर्मित संविधानों का विकास उनके निर्माण के बाद होता है।
संविधान में प्रथाओं और कानूनों के अनुपात के आधार पर
इस आधार पर भी दो प्रकार के संविधान होते हैं—अलिखित और लिखित संविधान।संविधान का यह भेद इस तथ्य पर आधारित है कि प्रथाएं न्यायालय द्वारा मान्य नहीं होतीं, किन्तु कानून न्यायालय द्वारा मान्य होते हैं तथा उनके द्वारा लागू किये जाते हैं।
- अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)—इन संविधानों में परम्परागत प्रथाओं, परम्पराओं तथा समय-समय पर न्यायालयों द्वारा दिये गये निर्णयों का महत्व अधिक होता है। ऐसे संविधानों में सरकार के स्वरूप, शासन के विविध अंग तथा उनके पारस्परिक सम्बन्ध और नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य, आदि महत्वपूर्ण बातें प्रथाओं और परम्पराओं पर ही आधारित होती हैं। इंगलैण्ड का संविधान इस प्रकार के संविधान का ही उदाहरण है।
- लिखित संविधान (Written Constitution)——लिखित संविधान से हमारा आशय उस संविधान से है जिसकी अधिकांश धाराएं कानून के रूप में लेखबद्ध हों। लिखित संविधान किसी एक संवैधानिक कानून के रूप में हो सकता है या अनेक ऐसे कानूनों के रूप में हो सकता है, जिसमें शासन विधि का विशुद्ध प्रतिपादन किया गया हो। लिखित संविधान आवश्यक रूप से निर्मित होते हैं। अमरीका, फ्रांस और भारत के संविधान लिखित संविधानों के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
संविधान की परिवर्तनशीलता के आधार पर।
संविधान के सम्बन्ध में दिये गये उपर्युक्त वर्गीकरण अधिक वैज्ञानिक और तर्कसंगत नहीं हैं। उनकी तुलना में यह वर्गीकरण अधिक वैज्ञानिक और तर्कसंगत है। इस आधार पर भी संविधान के दो भेद किये जा सकते हैं—लचीला संविधान और कठोर संविधान। लचीले संविधान को नमनीय संविधान और कठोर संविधान को अनमनीय संविधान भी कहा जाता है।
- लचीला या सुपरिवर्तनशील संविधान (Flexible Constitution) – यदि सामान्य कानून और संवैधानिक कानून के बीच कोई अन्तर न हो और संवैधानिक कानून में भी सामान्य कानून के निर्माण की प्रक्रिया से ही संशोधन-परिवर्तन किया जा सके, तो संविधान को लचीला या सुपरिवर्तनशील कहा जायेगा। डॉ. गार्नर के शब्दों में, “लचीला संविधान वह है जिसको साधारण कानून से अधिक शक्ति एवं सत्ता प्राप्त नहीं है और जो साधारण कानून की भांति ही बदला जा सकता है, चाहे वह एक प्रलेख या अधिकांशतः परम्पराओं के रूप में हो।” इंगलैण्ड में संसद जिस प्रक्रिया द्वारा सड़क पर चलने के नियमों या मद्य निषेध नियमों में परिवर्तन करती है, बिल्कुल उसी प्रक्रिया के आधार पर संवैधानिक कानूनों में परिवर्तन कर सकती है, और इसी कारण इंगलैण्ड के संविधान को लचीला संविधान कहा जाता है।
- कठोर या दुष्परिवर्तनशील संविधान (Rigid Constitution)—ये वे संविधान होते हैं जिनमें संवैधानिक व साधारण कानून में मौलिक भेद समझा जाता है तथा जिसमें संवैधानिक कानूनों में संशोधन-परिवर्तन के लिए साधारण कानूनों के निर्माण से भिन्न प्रक्रिया, जो साधारण कानून के निर्माण की पद्धति से कठिन होती है, अपनाना आवश्यक होता है। कठोर संविधान की परिभाषा करते हुए डॉ. गार्नर लिखते हैं, “जो भिन्न स्रोत से उत्पन्न होता है और पद में साधारण कानून से वैध दृष्टि से कहीं उच्च है। इसका संशोधन भी किसी भिन्न तरीके से होता है।” सर्वप्रथम, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1789 ई. में लिखित और कठोर संविधान को अपनाया। अमरीकी कांग्रेस सामान्य कानूनों का निर्माण साधारण बहुमत से कर सकती है, लेकिन संविधान में संशोधन के लिए अमरीकी कांग्रेस के दो-तिहाई बहुमत के साथ ही तीन-चौथाई इकाइयों के विधानमण्डलों की स्वीकृति आवश्यक होती है। भारतीय संविधान भी कठोर संविधान का ही एक उदाहरण है।
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