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Suryakant tripathi nirala jeevan parichay ( सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय ) Hindi Notes 2023

Akhilesh Kumar
Last updated: 2023/07/03 at 6:45 PM
Akhilesh Kumar Published July 3, 2023
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नमस्कार दोस्तों आज के लेख में हम आपको महाकवि Suryakant tripathi nirala jeevan parichay ( सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय ) और उनसे जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे है।

Contents
Suryakant tripathi nirala jeevan parichay ( सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय )Suryakant tripathi nirala jeevan parichay ( सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय )-AKstudyhubसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की भाषासूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की शैलीसूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी के छंद और अलंकारसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी का हिन्दी साहित्य में स्थानसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की रस योजनासूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का प्रकृति चित्रणसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का नारी चित्रणसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी द्वारा प्रकाशित कृतियाँसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के काव्यसंग्रहसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के उपन्याससूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी की निबन्ध आलोचनासूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी की पुराण कथासूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी द्वारा किये गये अनुवादसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी की रचनावलीसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के बालोपयोगी साहित्यसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के बादल राग की कुछ पंक्तियांसूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के संध्या सुंदरी की कुछ पंक्तियां

महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में 1897 ई. में हुआ था। माँ द्वारा सूर्य का व्रत रखने तथा निराला के रविवार के दिन जन्म लेने के कारण इनका नाम सूर्यकान्त रखा गया, परन्तु बाद में साहित्य के क्षेत्र में आने के कारण इनका उपनाम ‘निराला’ हो गया।

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Suryakant tripathi nirala jeevan parichay ( सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय )

नामसूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
जन्म की तिथि1897 ई० में
जन्म स्थानमहिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में ( पश्चिम बंगाल )
पिता का नामपण्डित रामसहाय त्रिपाठी
माता का नामरुकमणी देवी
पत्नी का नाममनोहर देवी
भाषासांस्कृतिक खड़ी बोली
शिक्षाप्रारम्भिक शिक्षा महिषादल में हुई, हाईस्कूल पास करने के पश्चात घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी का अध्ययन किया।
उपलब्धियांछायावाद के चार स्तम्भों में सम्मिलत है।
हिंदी साहित्य में स्वछन्द एवं छंदमुक्त कविताओं की रचना के प्रेणता।
समन्वय, मतवाला,गंगा पुस्तकमाला तथा सुधा पत्रिका का सम्पादन कार्य किया ।
मृत्यु1961 में निराला जी की आंखे बंद हो गयी।

Suryakant tripathi nirala jeevan parichay ( सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का जीवन परिचय )-AKstudyhub

Suryakant tripathi nirala jeevan parichay ( सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" का जीवन परिचय ) Hindi Notes 2023

महाकवि निराला का जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में 1897 ई. में हुआ था। माँ द्वारा सूर्य का व्रत रखने तथा निराला के रविवार के दिन जन्म लेने के कारण इनका नाम सूर्यकान्त रखा गया, परन्तु बाद में साहित्य के क्षेत्र में आने के कारण इनका उपनाम ‘निराला’ हो गया।

इनके पिता पण्डित रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के बैसवाड़ा क्षेत्र के जिला उन्नाव के गढ़कोला ग्राम के निवासी थे तथा महिषादल राज्य में रहकर राजकीय सेवा में कार्य कर रहे थे। निराला जी की प्रारम्भिक शिक्षा महिषादल में हुई। हाईस्कूल पास करने के पश्चात् उन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।

माता-पिता के असामयिक निधन, फिर पत्नी की अचानक मृत्यु, पुत्री सरोज की अकाल मृत्यु आदि ने निराला के जीवन को करुणा से भर दिया। बेटी की असामयिक मृत्यु की अवसादपूर्ण घटना से व्यथित होकर ही इन्होंने ‘सरोज-स्मृति’ नामक कविता लिखी। कबीर का फक्कड़पन एवं निर्भीकता, सूफियों का सादापन, सूर तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद की सौन्दर्य-चेतना का मिश्रित रूप निराला के व्यक्तित्व में झलकता है।

इन्होंने कलकत्ता में अपनी रुचि के अनुरूप रामकृष्ण मिशन के पत्र ‘समन्वय” का सम्पादन- भार सम्भाला। इसके बाद ‘मतवाला’ के सम्पादक मण्डल में भी सम्मिलित हुए। लखनऊ में ‘गंगा पुस्तकमाला’ का सम्पादन तथा ‘सुधा’ पत्रिका के लिए सम्पादकीय भी लिखने लगे। जीवन के उत्तरार्द्ध में इलाहाबाद चले आए एवं आर्थिक स्थिति अत्यन्त विषम हो गई। आर्थिक विपन्नता भोगते हुए प्रयाग में 15 अक्टूबर, 1961 को ये चिरनिद्रा में लीन हो गए।

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सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की भाषा

निराला जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली है। कोमल कल्पना के अनुरूप इनकी भाषा की पदावली भी कोमलकान्त है। भाषा में खड़ी बोली की नीरसता नहीं, बल्कि उसमें संगीत की मधुरिमा विद्यमान है। इन्होंने मुहावरों के प्रयोग द्वारा भाषा को नई व्यंजनाशक्ति प्रदान की है।

जहाँ दर्शन, चिन्तन एवं विचार-तत्त्व की प्रधानता है, वहाँ इनकी भाषा दुरूह भी हो गई है। इन्होंने उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्दों का सहजता से प्रयोग किया है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की शैली

निराला जी एक ओर कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति में सिद्धहस्त हैं, तो दूसरी ओर कठोर एवं प्रचण्ड भावों की व्यंजना में भी। दार्शनिक एवं राष्ट्रीय विचारों की अभिव्यक्ति सरल एवं मुहावरेदार शैली में हुई है। शैली में प्रयोगधर्मिता अनेक जगह दिखती है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी के छंद और अलंकार

अलंकारों को काव्य का साधन मानते हुए ‘निराला’ जी ने अनुप्रास, यमक, उपमा, रूपक, सन्देह आदि अलंकारों का सफल प्रयोग किया। नवीन अलंकारों में मानवीकरण, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विशेषण-विपर्यय आदि की सार्थक योजना प्रस्तुत की।

अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इन्होंने प्रायः मुक्त छन्द का प्रयोग किया तथा अपनी रचना क्षमता से यह सिद्ध कर दिया कि छन्दों का बन्धन व्यर्थ है। इन्होंने मुक्त छन्द की नूतन परम्परा को स्थापित किया।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी का हिन्दी साहित्य में स्थान

निराला जी बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कलाकार थे। ये छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं। इन्होंने देश के सांस्कृतिक पतन की ओर खुलकर संकेत किया।

हिन्दी काव्य’ को नूतन पदावली और नूतन छन्द देकर इन्होने बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनके द्वारा रचित छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता की रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की रस योजना

निराला जी की कविताओं में शृंगार, वीर, रौद्र, करुण आदि रसों का सुन्दर पारिपाक हुआ है, लेकिन प्रधानता पौरुष एवं ओज की है। राम की शक्ति पूजा में वीर और रौद्र रस की प्रधानता है तो सरोज स्मृति करुण रस प्रधान है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का प्रकृति चित्रण

निराला जी का प्रकृति से विशेष अनुराग होने के कारण उनके काव्य में स्थान-स्थान पर प्रकृति के मनोहारी चित्र मिलते हैं।

जैसे-

दिवसावसान का समय, मेघमय आसमान से उतर रही है, वह सन्ध्या-सुन्दरी परी-सी, धीरे- धीरे-धीरे ।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” का नारी चित्रण

इनके काव्य में नारी का नित्य नया एवं उदात्त रूप चित्रित हुआ है। इन्होंने नारी का उज्ज्वल, सात्विक एवं शक्तिमय रूप प्रस्तुत किया है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी द्वारा प्रकाशित कृतियाँ

निराला जी का हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है इन्होंने काव्यसंग्रह,उपन्यास,कहानी संग्रह,निबन्ध आलोचना,पुराण कथा,अनुवाद,रचनावली और बालोपयोगी साहित्य में बहुत योगदान दिया है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के काव्यसंग्रह

  • अनामिका 1923
  • परिमल 1930
  • गीतिका 1936
  • अनामिका दूसरा भाग
  • तुलसीदास 1939
  • कुकुरमुत्ता 1942
  • अणिमा 1943
  • बेला 1940
  • नये पत्ते 1946
  • अर्चना 1950
  • आराधना 1953
  • गीतकुंज 1954
  • सांध्य काकली
  • अपरा

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के उपन्यास

  • अप्सरा 1931
  • अलका 1933
  • प्रभावती 1936
  • निरुपमा 1936
  • इंदुलेखा
  • चमेली
  • काले कारनामे 1950
  • चोटी की पकड़ 1946
  • बिल्लेसुर बकरिहा 1942
  • कुल्ली भाट 1938-39

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी की निबन्ध आलोचना

  • रवींद्र कविता कानन
  • प्रबंध प्रतिमा
  • प्रबन्ध पद्म
  • चाबुक
  • चयन
  • संग्रह

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी की पुराण कथा

  • महाभारत
  • रामायण की अन्तर कथाये

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी द्वारा किये गये अनुवाद

  • रामचरितमानस
  • आनन्द मठ
  • विष बृक्ष
  • कृष्णकांत का वसीयतनामा
  • कपालकुंडला
  • दुर्गेश नन्दिनी
  • राज सिंह
  • राजरानी
  • देवी चौधरानी
  • युग लांगुलीय
  • चन्द्रशेखर
  • रजनी
  • श्री राम कृष्ण वचनामृत
  • परिव्राजक
  • भारत में विवेकानंद
  • राजयोग

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी की रचनावली

निराला रचनावली नाम से 8 खण्डों में पूर्व प्रकाशित एवं अप्रकाशित सम्पूर्ण रचनाओ का सनियोजित प्रकाशन

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के बालोपयोगी साहित्य

  • भक्त ध्रुब
  • भक्त पहलाद
  • भीष्म
  • महाराणा प्रताप
  • सीखभरी
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सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के बादल राग की कुछ पंक्तियां

झूम-झूम मृदु गरज- गरज घन घोर !

राग- अमर! अम्बर में भर निज रोर !

झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,

घर, मरु तरु- मर्मर, सागर में,

सरित-तड़ित-गति- चकित पवन में मन में,

विजन-गहन-कानन में,

आनन – आनन में, रव घोर कठोर- राग – अमर!

अम्बर में भर निज रोर !

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी के संध्या सुंदरी की कुछ पंक्तियां

दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है।

वह सन्ध्या-सुन्दरी परी-सी धीरे धीरे धीरे ।

तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,

किन्तु जरा गम्भीर, नहीं है उनमें हास-विलास ।

हृदयराज्य की रानी का वह करता है अभिषेक।

मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर,

हँसता है तो केवल तारा एक गुँथा हुआ उन घुँघराले काले काले बालों से

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हमारे द्वारा आज के लेख में हमने निराला जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय बताया है अगर आप हमें कोई सुझाव देना चाहते है तो कमेंट के माध्यम से बता सकते है।

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