नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट AkstudhyHub.com में आज बात करेंगे हम मुगल साम्राज्य के बारे, हम जानेंगे कि मुगल साम्राज्य ने भारत पर कितने वर्ष शासन किया ,मुगल साम्राज्य के शासक कौन कौन थे, मुगल साम्राज्य की स्थापना,इसके पतन के कारण और मुगल साम्राज्य के वारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी आप बने रहिये हमारे इस लेख के साथ।
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मुगल साम्राज्य
क्या आप जानते है कि मुगलो ने भारत पर 331 वर्ष तक राज्य किया है, मुगल साम्राज्य में कुछ शासक ऐसे थे जो भारतीय लोगो को प्रताड़ित करने का कार्य करते थे और कुछ शासक ऐसे थे जिनका भारतीय लोगो के प्रति रवैया नरम था आज ले आर्टिकल (मुगल साम्राज्य की स्थापना, मुगल साम्राज्य के शासक) में हम मुगल साम्राज्य के सभी शासको को विस्तार से जानेंगे।
साम्राज्य वंश का नाम | मुगल वंश |
शासन काल अवधि | 1526 ई० 1857 ई० |
प्रमुख शासक | बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहां, औरंगजेब |
प्रथम शासक | बाबर |
अंतिम शासक | बहादुर शाह जफर |
शासन काल की अवधि | 331 वर्ष |
मुगल साम्राज्य की स्थापना
मुगल शासकों के भारत में प्रवेश के साथ ही भारतीय इतिहास में भी एक नया अध्याय प्रारंभ हो जाता है। 715 ई० में मुसलमानों ने भारत के उत्तर-पश्चिमी सिंध प्रांत को जीत कर, मध्य एशिया के तुर्कों के लिए भारत के प्रवेश-द्वार खोल दिए। तुर्क और अरब सरदारों ने हिंद महासागर के समुद्री मार्गों पर अपना आधिपत्य जमा कर इस कार्य को और भी सरल कर दिया।
अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी बड़ा घमंडी और निर्दयी शासक था। उसने दौलत खाँ लोदी और उसके पुत्र के साथ बड़ा अपमानजनक व्यवहार किया। वह अपने सरदारों पर भी पूरा नियंत्रण बनाकर रखना चाहता था।
दौलत खाँ लोदी और दूसरे लोदी सरदारों ने मिलकर मध्य एशिया के जिस तुर्क शासक को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया, वह आँधी बनकर भारत में आया और उसके आक्रमण ने भारत में एक नए वंश की परंपरा का श्रीगणेश कर दिया।
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मुगल साम्राज्य के शासक
मुगल साम्राज्य के शासकों में बात करें तो सबसे पहले बाबर का नाम आता है और अंतिम शासक बहादुर शाह द्वितीय का नाम आता है, हम मुगल साम्राज्य के सभी शासको को एक एक करके जानेंगे।
बाबर (१५२६ ई० १५३० ई० तक)

दौलत खाँ लोदी, लोदी सरदारों और राणा सांगा का निमंत्रण पाकर तुर्क सरदार बाबर ने इब्राहिम लोदी पर आक्रमण कर दिया। दोनों की सेनाओं में 1526 ई० में पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ। इस युद्ध में इब्राहिम लोदी की पराजय ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखने का कार्य किया।
इस प्रकार बाबर को भारत में मुगल साम्राज्य को स्थापित करने का श्रेय प्राप्त हुआ। बाबर का पूरा नाम जहीरउद्दीन मोहम्मद बाबर था। बाबर तैमूर वंश का तुर्क था। उसकी माँ चंगेज खाँ परिवार से संबंधित थी। बाबर का पिता मिर्जा उमर शेख फरगना रियासत का प्रमुख था जो मध्य एशिया की एक छोटी-सी रियासत थी।
मिर्जा उमर बाबर को ग्यारह वर्ष का छोड़कर ही मर गया। बाबर के शत्रुओं ने बाबर को अपनी जागीर और जन्मभूमि छोड़ने पर विवश कर दिया। इस तरह भाग्य बाबर को काबुल ले आया। भारत के उपजाऊ मैदान, विशाल धन-संपदा और दुर्बल राजनीतिक दशाओं ने बाबर को भारत भूमि जीत लेने के लिए लालायित किया। वह अपने साम्राज्य का विस्तार करने के साथ-साथ मध्य एशिया में अपनी शक्ति बढ़ाना चाहता था।
उसने भारत पर पाँच बार आक्रमण किया। उसके पाँचवे आक्रमण ने उसे इब्राहिम लोदी पर विजय दिलाकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का सुअवसर प्रदान कर दिया। 1527 ई० में बाबर ने खानवा के युद्ध में मेवाड़ के राजा राणा सांगा को परास्त कर उत्तरी भारत पर अधिकार जमा लिया।
बाबर अपनी विजयश्री का आनंद अधिक समय तक नहीं ले सका। 1530 ई० में आगरा नगर में बाबर का इंतकाल हो गया। उसका साम्राज्य दिल्ली तथा उत्तरी मैदान से लेकर पूर्व में बिहार तक फैल चुका था।
हुमायूँ (१५३० ई० से 1१५४० तक)
बाबर की मृत्यु के पश्चात् उसका सबसे बड़ा पुत्र हुमायूँ दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। हुमायूँ का नाम नासिरुद्दीन था। उसने सिंहासन पर बैठते समय हुमायूँ की उपाधि धारण की। हुमायूँ के तीन भाई कामरान, अस्करी और हिंदाल थे।

बाबर ने अपने भाइयों के साथ प्रेम का व्यवहार किया। उसने कामरान को काबुल और कंधार का सूबेदार बनाया, अस्करी को संभल की जागीर दी तथा हिंदाल को मेवात का शासक बनाया।हुमायूँ को अपने भाइयों का विद्रोह झेलना पड़ा। दूसरी ओर अफगान और राजपूत मुगलों को भारत से बाहर खदेड़ने में लगे थे।
बंगाल का अफगान शासक शेरखाँ दिल्ली का शासक बनने की महत्त्वाकांक्षा रखता था। हुमायूँ ने पंजाब, बुंदेलखंड, जौनपुर और बिहार में उठे विद्रोहों को दबा दिया। सन् 1556 ई० में पुस्तकालय की सीढ़ियों से लुढ़ककर हुमायूँ की मृत्यु हो गई। हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में बना है।
अकबर (१५५६ ई० से १६०५ ई०)

हुमायूँ की मृत्यु के समय अकबर की आयु मात्र तेरह वर्ष थी। वह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर के नाम से शासक बना। उसके पिता का विश्वासपात्र मित्र बैरम खाँ उसका संरक्षक था। बैरम खाँ ही अकबर की ओर से शासन प्रबंध चलाता था।
अकबर जिस सिंहासन पर आरूढ़ हुआ था ‘वह फूलों की शैय्या न होकर काँटों का ताज था।’ उसके साम्राज्य के चारों ओर शत्रुओं का भारी जमावड़ा था। पंजाब में सिकंदर सूरी बड़ा शक्तिशाली शासक था। अफगान शासक भी धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ा रहे थे। राजपूत राजा भी अपने को शक्तिशाली बनाने में लगे थे।
मोहम्मद आदिलशाह के सेनापति हेमू ने हुमायूँ की मृत्यु का लाभ उठाकर दिल्ली और आगरा पर पुनः कब्जा जमा लिया। अकबर की विशाल सेना ने पानीपत के द्वितीय युद्ध में हेमू की सेना को परास्त किया। हेमू को परास्त कर अकबर दिल्ली का एकछत्र सम्राट बन गया। बैरम खाँ के संरक्षण में अकबर की सेना ने पंजाब, जौनपुर, अजमेर और ग्वालियर के राज्यों को जीत लिया। बैरम खाँ शिया था। वह घमंडी बन गया था।
अकबर अपने संरक्षक और मार्गदर्शक का अपमान नहीं करना चाहता था। अतः उसने उसे मक्का में हज यात्रा पर जाने की सलाह दी। 1560 ई० में साम्राज्य की पूरी बागडोर अकबर ने संभाल ली। बाद में बैरम खाँ का पुत्र अब्दुर्रहीम खानखाना अकबर के दरबार में खान-ए-खाना बना। आगरा मुगल साम्राज्य की राजधानी थी।
अकबर की उपलब्धियाँ
- अकबर ने अनेक राज्यों को जीतकर एक संगठित, सुव्यवस्थित और विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
- अकबर ने अपने कुशल शासन प्रबंध से बाबर द्वारा स्थापित राज्य को एक विशाल साम्राज्य के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया।
- अकबर ने राजपूतों के साथ मैत्री और समानता के व्यवहार की नीति अपनाई। उसने आमेर (जयपुर) के राजपूत राजा भारमल की पुत्री जोधाबाई से विवाह किया।
- महाराणा प्रताप मेवाड़ का एकमात्र ऐसा शासक था जिसने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की अतः अकबर की सेना और महाराणा प्रताप की सेना में 1576 ई० में हल्दी घाटी में मेवाड़ का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व अकबर के सेनापति राजा मानसिंह ने किया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की पराजय हुई। उन्होंने जीते जी मुगलों को मेवाड़ पर पूरी तरह कब्जा नहीं जमाने दिया।
- अकबर ने गुजरात जैसे महत्त्वपूर्ण राज्य को विजित किया और इस विजय की खुशी में फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजे का निर्माण करवाया।
- अकबर ने उत्तर में कश्मीर, सिंध, बंगाल और उड़ीसा को जीतकर अपनी शक्ति को बढ़ाया। उसने चाँदबीबी को हराकर दक्षिण में अहमदनगर पर भी आधिपत्य जमा लिया।
- अकबर महान विजेता होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शासन प्रबंधक भी था। उसने शासन प्रबंध के लिए शेरशाह सूरी के सूत्रों को ही अपनाया।
- अकबर ने मनसबदारी प्रथा का प्रचलन किया। मनसबदारों को राजकोष से वेतन दिया जाता था। ये लोग सेना का गठन करते थे।
- अकबर एक धर्म सहिष्णु शासक था, अकबर ने सभी धर्मों की अच्छाई लेकर दिन-ए-इलाही नामक धर्म चलाया था।
- अकबर भवन निर्माण में भी रुचि रखता था। उसने दिल्ली में हुमायूँ का मकबरा, इलाहाबाद में किला, फतेहपुर सीकरी में सुंदर महल, बुलंद दरवाजा व शेख सलीम चिश्ती का मकबरा बनवाया। अकबर के शासनकाल में चित्रकला और संगीत कला का भी खूब विकास हुआ। तानसेन उसके दरबार का प्रसिद्ध संगीतज्ञ था। उसने चित्रकला के विकास में भी अभूतपूर्व योगदान दिया।
- अकबर शिक्षा-प्रेमी तथा साहित्य का विकास करने वाला था। शेख मुबारक, अबुल फजल और फैजी उसके दरबार के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। अबुल फजल ने आइने अकबरी नामक ग्रंथ की रचना की।
जहाँगीर (१६०५ ई० से १६२७ ई० तक)

अकबर की मृत्यु के बाद 1605 ई० में उसका पुत्र जहाँगीर गद्दी पर बैठा। जहाँगीर का बचपन का नाम सलीम था। वह 36 वर्ष की आयु में सम्राट बना। जहाँगीर के गद्दी पर बैठने के पाँच माह बाद ही उसके पुत्र खुसरो ने विद्रोह कर दिया।
जहाँगीर ने उसे दबाया और खुसरो को दंडित किया। सिख गुरु, अर्जुनदेव ने खुसरो को भड़काया था, अतः उनको भी दिल्ली में मौत के घाट उतार दिया गया।जहाँगीर ने अकबर की भाँति राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे। उसने राजपूत कन्या मानवाई से विवाह किया, परंतु वह अकबर के समान दूरदर्शी नहीं था। वह बड़ा न्यायप्रिय शासक था।
उसने एक जंजीर लटका रखी थी। जो भी उसे खींचता, सम्राट उसकी फरियाद सुनकर उचित न्याय करता था। 1614 ई० में जहाँगीर ने मेवाड़ के राजा राणा अमरसिंह को परास्त किया और 1622 ई० में खुर्रम ने काँगड़ा के शासक को परास्त किया।
जहाँगीर ने बाद में 1611 ई० में नूरजहाँ से भी विवाह रचाया। वह एक विधवा स्त्री थी; परंतु जहाँगीर उसे बहुत प्रेम करता था। नूरजहाँ ने धीरे-धीरे प्रशासन पर अपनी पकड़ पक्की कर ली। नूरजहाँ के पिता का नाम एत्मादुद्दौला था। जहाँगीर प्रशासन संबंधी सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय नूरजहाँ की इच्छानुसार लेता था।
जहाँगीर के शासनकाल में ही 1600 ई० में इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई, जिसका लक्ष्य भारत में व्यापार करना था। 1615 ई० में जहाँगीर ने ही अंग्रेज प्रतिनिधि ‘टॉमस रो’ को भारत में व्यापार करने की अनुमति प्रदान की।
अंग्रेजों ने सूरत में पहला कारखाना स्थापित किया। नूरजहाँ बहत सुंदर थी। नूरजहाँ शब्द का अर्थ होता है ‘विश्व का प्रकाश‘। वह सौंदर्य की मलिका होने के साथ-साथ बड़ी व्यवहार कुशल स्त्री थी। अपनी विद्वता के कारण नूरजहाँ 16 वर्षों तक मुगल प्रशासन पर पूरी तरह छायी रही। 1627 ई० में जहाँगीर स्वर्ग सिधार गया। नूरजहाँ को ‘पादशाह बेगम’ कहा जाता था। सिक्कों पर भी उसका नाम अंकित था।
शाहजहाँ (१६२७ ई० से १६५८ ई० तक)

जहाँगीर की मृत्यु के बाद 1627 ई० में शाहजहाँ गद्दी पर बैठा। उसने अपनी गद्दी सुरक्षित करने के लिए अपने भाइयों को निर्दयतापूर्वक मौत के घाट उतरवा दिया। शाहजहाँ ने नूरजहाँ के भाई आसफ खाँ की पुत्री अर्जुमंद बानू से विवाह किया। उसे ‘मुमताज महल‘ कहा जाता है। शाहजहाँ अपनी वेगम से बहुत प्रेम करता था।
शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में अपना विजय अभियान छेड़ा। उसने 1632 ई० में अहमदनगर, 1636 ई० में गोलकुंडा तथा बीजापुर के राज्यों को विजित किया। 1635 ई० में उसने अपने पुत्र औरंगजेब को दक्षिण का गवर्नर बना दिया। उसने दक्षिण के राज्यों पर अपनी शर्ते लाद कर उन्हें रुष्ट कर दिया।
शाहजहाँ मध्य एशिया पर भी अपना अधिकार जमाना चाहता था। अतः उसने 1645 ई० में बल्ख को जीतने के लिए अपनी सेनाएं भेजीं, परंतु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई। 1638 ई० में शाहजहाँ ने घूस देकर कंधार का किला विजित कर लिया। 10 वर्ष बाद पर्सिया के शासक ने कंधार के किले पर अपना कब्जा पुनः जमा लिया।
शाहजहाँ के चार पुत्र थे- दारा, शुजा, औरंगजेब और मुराद। मुगलकाल में उत्तराधिकार के निश्चित नियम नहीं थे। अतः शाहजहाँ के दुर्बल होते ही उसके चारों पुत्रों में सिंहासन पर बैठने के लिए उत्तराधिकारी बनने की होड़ लग गई। चारों पुत्र पृथक्-पृथक् प्रांतों में गवर्नर थे।
अतः प्रत्येक के पास सेनाएँ थीं। शाहजहाँ दारा को गद्दी सौंपना चाहता था। अतः चारों भाइयों में गद्दी हथियाने के लिए जो युद्ध चला, उसे उत्तराधिकार का युद्ध कहा जाता है। शुजा को दारा ने परास्त कर दिया। वह भाग गया और कभी नहीं लौटा। औरंगजेब चालाक था। उसने शाहजहाँ और मुराद को बंदी बनाकर सिंहासन पर अधिकार जमा लिया। शाहजहाँ के अंतिम दिन आगरे के किले में बंदी के रूप में व्यतीत हुए।
शाहजहाँ को इंजीनियर सम्राट कहा जाता है, क्योंकि उसे भवन निर्माण करवाने का बड़ा शौक था। उसने आगरा में मुमताज महल की याद में ताजमहल का निर्माण करवाया। यह विश्व की सबसे सुंदर इमारत है। उसने आगरा में किला और मोती मस्जिद का भी निर्माण करवाया। दिल्ली में लाल किला, जामा मस्जिद और मयूर सिंहासन शाहजहाँ के निर्माण कौशल के प्रतीक के रूप में आज भी विद्यमान हैं।
नादिरशाह मयूर सिंहासन को 1739 ई० में अपने साथ फारस ले गया। शाहजहाँ ने चित्रकला और चित्रकारों को भी संरक्षण प्रदान किया। शाहजहाँ के शासनकाल में भारत ने सभी क्षेत्रों में प्रगति की। अतः इतिहास में शाहजहाँ का शासनकाल ‘स्वर्णयुग’ के नाम से विख्यात है।
औरंगजेब (१६५८ ई० से १७०७ ई०)

शाहजहाँ को बंदी बनाकर औरंगजेब 1659 ई० में गद्दी पर बैठा। वह कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने अपनी धूर्तता के बल पर सिंहासन प्राप्त किया था। उसने अपने आपको सुन्नियों के प्रमुख के रूप में प्रस्तुत किया। उसका पूरा शासन इस्लाम के कानूनों पर आधारित था। उसने हिंदुओं के साथ मैत्री की नीति त्याग दी थी। उसने हिंदुओं पर पुनः ‘जजिया कर लगा दिया। हिंदुओं को ‘तीर्थ कर’ भी देना पड़ता था।
उसने हिंदुओं को प्रशासन में उच्च पदों से पृथक् रखा। जिन राजपूत राजाओं ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली उन्हें अपने कर देने के बदले शासन करने का अधिकार दे दिया। शेष को सैन्य बल से हराकर शासन से हटा दिया। 1669-70 ई० में मथुरा क्षेत्र में जाटों ने उसके विरुद्ध मोर्चा संभाल लिया। जाटों का नेतृत्व गोकुल जाट कर रहा था।
बुंदेलखंड में बुंदेले चंपतराय और छत्रसाल के नेतृत्व में अड़ गए। ये सभी विद्रोह औरंगजेब की हिंदू विरोधी नीतियों के फलस्वरूप उठ खड़े हुए। इन्होंने मुगलों और राजपूतों के मध्य अंतर की गहरी खाई उत्पन्न कर दो। मराठों ने शिवाजी के नेतृत्व में अपनी पृथक् राजधानी स्थापित कर ली ।
सिखों के गुरु तेग बहादुर के साथ भी औरंगजेब का संघर्ष छिड़ गया। औरंगजेब ने गुरुद्वारों को नष्ट करने तथा सिखों को नगरी से निकालने का आदेश दे दिया। गुरु तेग बहादुर औरंगजेब के विरुद्ध खड़े हो गए। गुरु तेग बहादुर को पकड़कर औरंगजेब के दिल्ली लाया गया। उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। जब उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया, तो 1675 ई० गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया। दिल्ली के चाँदनी चौक में गुरुद्वारा शीशगंज आज भी उनके बलिदान का साक्षी है।
गुरु गोविंद सिंह ने एक शक्तिशाली सिख सेना का गठन किया। मुगल सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया। गुरु को अपने पुत्रों के जीवन से हाथ धोना पड़ा।
दक्षिण भारत में औरंगजेब को एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। वहाँ उसके धन और शरीर दोनों का क्षय हुआ। इसीलिए कहा जा है — “दक्षिण के नासूर ने औरंगजेब को नष्ट कर दिया।” वह बीजापुर और गोलकुंडा पर अधिकार जमाना चाहता था, जिसमें उसे सफलता मिली। 1707 ई० में यह मुगल शासक स्वर्ग सिधार गया
औरंगजेब एक अदूरदर्शी और कट्टरपंथी शासक था। उसकी नीतियों ने अकबर द्वारा संजोए गए विशाल और शक्तिशाली मुगत साम्राज्य को पतन का मार्ग दिखा दिया। बाद के मुगल शासक अयोग्य थे। न तो वे कुशल प्रशासक थे और न साहसी योद्धा के सरदारार के हाथों की कठपुतली मात्र बने रहे।
औरंगजेब के बाद मुगल साम्राज्य
मुगल साम्राज्य के अंतिम शासक
शासक | अवधि |
बहादुरशाह | 19 जून 1707-27 फ़रवरी 1712 |
जहांदार शाह | 27 फ़रवरी 1712-11 फ़रवरी 1713 |
फर्रुख्शियार | 11 जनवरी 1713-28 फ़रवरी 1719 |
मोहम्मद शाह | 27 सितम्बर 1719-26 अप्रैल 1748 |
अहमद शाह बहादुर | 26 अप्रैल 1748-2 जून 1754 |
आलमगीर द्वितीय | 2 जून 1754-29 नवम्बर 1759 |
शाह आलम द्वितीय | 24 दिसम्बर 1760-19 नवम्बर 1806 |
अकबर शाह द्वितीय | 19 नवम्बर 1806-28 सितम्बर 1837 |
बहादुर शाह द्वितीय | 28 सितम्बर 1837-14 सितम्बर 1857 |
सन् 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया। औरंगजेब के बाद, जैसा कि प्रायः होता आया है उत्तराधिकार का युद्ध आरंभ हुआ। उसके तीनों पुत्रों मौजम (मुअज्जम), आजम और कामबख्शी ने सिंहासन के लिए संघर्ष किया। इनमें मौजम की विजय हुई और वह 1707 ई० में बहादुरशाह के नाम से गद्दी पर बैठा। चार वर्षों का उसका छोटा-सा शासनकाल कठिनाइयों से भरा था। इस दौरान राजपूतों और सिखों ने विद्रोह किए।
बहादुरशाह की मृत्यु के बाद 1712 ई० में फिर वही उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुए और बहुत-से शक्तिहीन शासक हुए जिन्होंने थोड़े-थोड़े समय तक राज्य किया। इसके बाद मुहम्मदशाह ने फिर साम्राज्य को संगठित करने का प्रयास किया। परंतु उसे भी अनेक विद्रोहों का सामना करना पड़ा।
साम्राज्य पहले से ही विघटित हो चुका था। बंदा ने सिख विद्रोह का नेतृत्व किया। उधर ब्राह्मण मंत्री पेशवाओं ने उत्तर भारत की ओर अपना अधिकार बढ़ाने के प्रयास किए। रुहेलखंड में बसे हुए अफगान भी मुगल शासन के विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे। उधर हैदराबाद, बंगाल और अवध के महत्त्वपूर्ण प्रांतों के सूबेदारों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे।
मुगल शासकों पर उत्तर-पश्चिम से भी हमले किए जा रहे थे। सबसे पहला आक्रमण सन् 1739 ई० में ईरान के बादशाह नादिरशाह ने किया। उसने मुगलों से काबुल को पहले ही जीत लिया था। उसने दिल्ली नगर को तहस-नहस कर दिया। नादिरशाह की सेना ने नगर को बुरी तरह लूटा और उसको खंडहर बना दिया। नादिरशाह शाहजहाँ का तख्ते ताऊस (मयूर सिंहासन) और कोहनूर हीरा भी ईरान ले गया।
इसके बाद एक साहसी अफगान अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब को जीतकर अपने अफगानिस्तान के राज्य में मिला लिया। अहमदशाह अब्दाली का मराठों से भी संघर्ष हुआ। अफगानों और मराठों के बीच में सन् 1761 में पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठों की पराजय हुई और वे उत्तर भारत से हट गए। मुगल साम्राज्य अब दिल्ली के आस-पास तक ही सीमित रह गया। मुगल सम्राट सन् 1857 ई० तक केवल नाम के शासक बने रहे। अठारहवीं शताब्दी में राजनीतिक शक्ति नए राज्यों के हाथों में थी।
मुगल साम्राज्य के पतन के कारण
- औरंगजेब के उत्तराधिकारी कमजोर शासक थे। वे साम्राज्य का पतन होने से न रोक सके। शासक के मरने के बाद उत्तराधिकार के लिए युद्ध होता था। इसमें बहुत साधन और शक्ति नष्ट होती थी। सम्राटों के कमजोर होने के कारण प्रांतीय गवर्नर शक्तिशाली बन जाते थे और स्वतंत्र हो जाते थे।
- लगान अदा करने के बाद किसानों पर बहुत कम धन बचता था; अतः वे अधिकाधिक गरीब होते गए। कभी-कभी किसान भी असंतुष्ट जमींदारों का विद्रोह में साथ देते थे।
- मनसबों की संख्या अकबर के काल से तीन गुना बढ़ गई थी और मनसबदार उतने ईमानदार नहीं रह गए थे। वे जो लगान जमा करते थे, उसका सही हिसाब नहीं रखते थे। वे बादशाह के लिए निश्चित संख्या में घुड़सवार भी नहीं रखते थे।
- अठारहवीं शताब्दी में अधिकारियों का प्रायः स्थानांतरण नहीं होता था जिससे बहुत-से अधिकारी स्थानीय शासकों का सा व्यवहार करने लगे।
- मुगलों की सैनिक शक्ति भी कमजोर हो गई थी। अब अन्य सेनाओं की तुलना में मुगल तोपखाना तकनीकी रूप से बहुत पिछड़ गया था। भारतीय सैनिकों को प्रशिक्षित करने के स्थान पर वे विदेशियों को अपनी तोपे चलाने के लिए नियुक्त करके संतुष्ट हो जाते थे। मुगलों ने नी सेना के विकास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।
- शासकों, सरदारों और अभिजात वर्ग का जीवन बड़ा ही विलासपूर्ण हो गया था. जिसके कारण देश का चारित्रिक और सामाजिक पतन हो गया। किसानों और शिल्पकारों को कठिनाई का जीवन व्यतीत करना पड़ता था, परंतु शहरों के व्यापारी और अभिजात वर्ग के लोग बड़ा सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। अभिजात कुलों के लोग अपना समय आलस्य और शराब पीने में नष्ट कर देते थे, परंतु प्रांतीय दरबारों में इस प्रकार के आलसी और अयोग्य उच्च वर्ग के लोग नहीं थे। उन्होंने अपने अधिकारियों को अनुशासन में रखने का प्रयत्न किया।
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद दिल्ली की शान-शौकत नष्ट हो गई, परंतु यह सभ्यता और संस्कृति अब दिल्ली से उन प्रांतीय छोटे राज्यों में पहुंच गई जिनका उदय अठारहवीं शताब्दी में हुआ था। अठारहवीं शताब्दी के बाद का भारत इन्हीं राज्यों का इतिहास है।
मुगल साम्राज्य की महत्वपूर्ण बातें
- मुगल वंश की स्थापना बाबर ने की थी।
- हुमायूँ उत्तम योद्धा था परंतु कुशल प्रशासक नहीं था।
- जहाँगीर को उसके न्याय, उदारता, उद्यानों के निर्माण तथा चित्रकला प्रेम के लिए जाना जाता है।
- शाहजहाँ एक महान निर्माता था। उसका शासनकाल मुगलकाल का स्वर्णयुग माना जाता है।
- मुगल सम्राट शिक्षा एवं साहित्य के संरक्षक थे। इस काल में साहित्य का विशेष विकास हुआ।
- बहादुरशाह की मृत्यु के बाद 1712 ई० में फिर उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ और बहुत से शक्तिहीन शासक हुए, जिन्होंने थोड़े-थोड़े समय तक राज्य किया।
- हैदराबाद, बंगाल और अवध के सूबेदारों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे।
- सन् 1719 में ईरान के बादशाह नादिरशाह ने उत्तर-पश्चिम से भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली नगर को तहस-नहस कर दिया।नादिरशाह शाहजहाँ का तख्ते ताऊस और कोहिनूर हीरा भी ईरान ले गया।
- अफगानों और मराठों के बीच सन् 1761 में पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ जिसमें मराठों की पराजय हुई। वे उत्तर भारत से हट गए।
- भारत में यूरोप के अनेक देशों ने अपनी व्यापारिक कंपनियाँ स्थापित की परंतु अंग्रेज व्यापारी इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण रहे।
- फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी में अपनी सत्ता स्थापित की और वहीं बस गए।
- मुगल साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण अंतिम मुगल शासकों का शक्तिहीन हो जाना, सैनिक शक्ति कम हो जाना क्षेत्रीय शासकों का उभरना एवं मुगल शासकों एवं अभिजात वर्ग का विलासी जीवन व्यतीत करना था।
- अठारहवी शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भारत का इतिहास विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों का इतिहास ही रह गया।
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मुगल साम्राज्य के महत्वपूर्ण प्रश्न FAQs
मुगल वंश के कुल कितने शासक थे?
मुगल काल में कुल कितने शासक हुए? मुगल साम्राज्य भारतीय इतिहास का सबसे बड़े साम्राज्य में से एक है, जिसकी शुरुवात 16 वी शताब्दी से होती है, तथा अंत 19वी शताब्दी के मध्य में अर्थात 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले हो जाता है। इस साम्राज्य की गद्दी कुल 19 सम्राटों ने संभाली थी।
मुगल कोन से वंश के थे ?
यह राजवंश कभी कभी तिमुरिड राजवंश के नाम से जाना जाता है क्योंकि बाबर तैमूर का वंशज था। फ़रग़ना वादी से आए एक तुर्की मुस्लिम तिमुरिड सिपहसालार बाबर ने मुग़ल राजवंश को स्थापित किया।
मुगल भारत मे कब आये ?
मुगल साम्राज्य 1526 में शुरू हुआ, मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, अधिकतर
ल वंश का संस्था
मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे. मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला में
बर
और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ.
बाबर से पहले किस शासक का राज था ?
1526 ईस्वी में लोदी राजवंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को परास्त करने के बाद बाबर ने मुगल साम्राज्य की स्थापना की
सबसे खराब मुगल शासक कौन था ?
औरंगज़ेब, छठे सम्राट और एक कट्टर मुस्लिम को अक्सर एक क्रूर अत्याचारी के रूप में वर्णित किया गया था जो विस्तारवादी था, उसने सख्त शरिया कानून लागू किए और भेदभावपूर्ण जजिया कर वापस ले लिया जो हिंदू निवासियों को सुरक्षा के बदले में पड़ता था
अंतिम मुगल शासक कौन था ?
6 नवंबर 1862 को भारत के आखिरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय या मिर्ज़ा अबूज़फ़र सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फ़र को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा और 7 नवंबर की सुबह 5 बजे उनका देहांत हो गया.
मुगलों की मातृभाषा क्या है?
भारतीय उपमहाद्वीप में मुग़ल साम्राज्य के शुरुआती सम्राटों की मातृभाषा भी चग़ताई तुर्की ही थी और बाबर ने अपनी प्रसिद्ध ‘बाबरनामा’ जीवनी इसी भाषा में लिखी थी। आधुनिक काल में उज़बेक भाषा और उइगुर भाषा चग़ताई के सबसे क़रीब हैं।
भारत का सबसे बड़ा सम्राट कौन था ?
सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है। सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है – ‘सम्राटों के सम्राट’, और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है।
भारत का पहला साम्राज्य संस्थापक
महापद्म ने नंद वंश की स्थापना की। महापद्म नंदा ने अपने पिता महानंदिन की मृत्यु के बाद सिंहासन ग्रहण करने की मांग की थी। उनके वंश को नंद वंश के नाम से जाना जाता था।
कौन सा मुगल शासक अनपढ़ था
अकबर एक ऐसा मुगल बादशाह था, जो कि अशिक्षित था।
औरंगजेब इतना बुरा शासक क्यों था?
औरंगजेब इस्लाम की सख्त और रूढ़िवादी व्याख्या के लिए जाना जाता था। उन्होंने शरिया कानून लागू करने और पूरे साम्राज्य में इस्लामी प्रथाओं को फिर से लागू करने की मांग की। इसके कारण हिंदू मंदिरों का विध्वंस हुआ, गैर-मुसलमानों पर भेदभावपूर्ण कर लगाया गया और धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हुआ।
इस्लाम कबूल करने बाले राजा कौन थे ?
सदाशिवन की किताब में दर्ज है कि इस्लाम अपनाने वाले जिस राजा पेरूमल की बात होती है, वह असल में मालदीव का राजा कालामिंजा था जिसे कई इतिहासकारों ने भूलवश कोडुनगल्लूर का पेरूमल करार दे दिया. ये भी ज़िक्र मिलता है कि एक अन्य पेरूमल ने 843 ईस्वी में मक्का जाकर इस्लाम कबूला था.
भारत में मुसलमान कब आये थे ?
भारत पर इस्लाम पहली बार 7वी शताब्दी में आया था और तब से इस्लामी सभ्य व्यक्तियों ने भारत आते हुए भारत की मूल संस्कृति में अपना बहुत योगदान दिया ।
बाबर को किसने हराया था?
मई 1512 में कुल 1 मलिक में उबैद उल्लाह खान द्वारा बाबर को हरा दिया गया और अंततः उसे पूरे ट्रांस- ऑक्सियाना को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस प्रकार मध्य एशिया में उनके सपने धुएँ में समाप्त हो गये और वे भारत के बारे में सोचने को मजबूर हो गये । इब्राहिम लोदी 1517 में दिल्ली की गद्दी पर बैठा था ।
औरंगजेब को किसने मारा ?
बुन्देला वीर छत्रसाल ने औरंगजेब को मारा था ।
औरंगजेब ने अपने भाई को क्यों मारा था?
मुगल साम्राज्य के छठे शासक औरंगज़ेब की कट्टरता का जिक्र करते हुए दारा शिकोह और शाहजहां का नाम जरूर आता है। औरंगज़ेब ने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपने बड़े भाई दारा शिकोह (Dara Shikoh) को मरवा दिया था।
शाहजहाँ की कितनी पत्नी थी ?
मुमताज, मुगल बादशाह शाहजहां की 13 वीं पत्नी थीं। शाहजहां का जन्म 5 जनवरी 1592 को लाहौर पाकिस्तान में हुआ था। कहते हैं उसने अपनी बेगम मुमताज की याद में ही ताज महल का निर्माण कराया। 17 जून 1631 को अपनी 14 वीं संतान गौहारा गम को जन्म देने के दौरान लेवर पेन से मुमताज की मौत हो गई थी ।
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