नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट AKstudyHub.com में आज हम आपके लिये मृदा या मिट्टी (Mitti) अध्याय लेकर आये है, परीक्षा की दृष्टि से और सामान्य ज्ञान की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण विषय है।
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मिट्टी (Mitti) किसे कहते है ?
धरातल की ऊपरी सतह जो छोटे और असंगठित कणों वाली एक परत से ढकी है, मृदा या मिट्टी कहलाती हैं। मिट्टी की यह परत वनस्पति को उगाने का माध्यम है। मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया बहुत ही धीमी है। जैसे ही कोई शैल जल या वायु के संपर्क में आती है तो यह प्रक्रिया आरंभ होती है। मिट्टी के निर्माण की इस प्रक्रिया को मृदा जनन कहते हैं। यह प्रकृति में होने वाली सतत् प्रक्रिया है।
मिट्टी की उत्पत्ति को अनेक कारक प्रभावित करते हैं; जैसे— जलवायु, पैतृक शैलें, स्थलाकृति, भौतिक, रासायनिक तथा जैविक प्रक्रम |
मिट्टी (Mitti) की उत्पत्ति
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि धरातल पर एक इंच की परत बनने में कई हजार वर्ष लग जाते हैं। शैलों के बड़े भाग अपक्षीण या अपक्षयित होते हैं तब अपक्षीण पदार्थ जल और वायु द्वारा मूल स्थान से हटकर किसी अन्य स्थान पर निक्षेपित हो जाते हैं।
पहले शैल बड़े-बड़े-खंडों में अपक्षयित होते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि शैलों का महीन चूर्ण नहीं हो जाता।
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मिट्टी की वह ऊर्ध्वाधर काट जिसमें सभी संस्तर दिखाई देते हैं, मृदा परिच्छेदिका कहलाती है। अधिकतर मृदा परिच्छेदिकाओं में ‘O’ संस्तर और खनिज’ संस्तर ये दो प्रकार के संस्तर होते हैं। जैविक संस्तर का निर्माण पौधों और जीवों के मृत पदार्थ के एकत्रण से होता है।
उत्पत्ति के स्थान के अनुसार मिट्टियाँ वाहित तथा अवशिष्ट हो सकती है। प्रवाहित मिट्टियों का निर्माण अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा होता है। जलोढ़ और कॉप मिट्टियाँ प्रवाहित और स्थानांतरित मिट्टियों का उदाहरण होती हैं। अवशिष्ट मिट्टियाँ अपने ही स्थान पर विकसित होती रहती हैं। काली लाल तथा लैटेराइट मिट्टी अवशिष्ट मिट्टियाँ हैं।
मिट्टी (Mitti) के तत्व
मिट्टी का निर्माण मुख्यतः चार तत्त्वों से मिलकर हुआ है।
- अजैविक तत्व या खनिज तत्व
- जैविक तत्व
- जल
- वायु
इनमें से प्रत्येक पदार्थ के तत्व की प्रचुरता अथवा क्रिया मिट्टी में किसी-न-किसी रूप में उपस्थित रहती है। जीवधारियों के मरने, सड़ने या गलने से ह्यूमस नामक गहरे रंग का पदार्थ बनता है। यह पदार्थ पौधों को पोषण देता है।
पौधों की वृद्धि में सहायक होने के साथ-साथ मिट्टी को उर्वरता प्रदान करता है। दलदली और आर्द्र प्रदेशों की मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा अधिक होने के कारण यहाँ की मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है।
मिट्टी (Mitti) के प्रकार
हमारे देश भारत मे मुख्यतः छः प्रकार की मिट्टी पायी जाती है जिनका विवरण नीचे निम्नलिखित है।
- जलोढ़ मिट्टी
- काली मिट्टी या रेगड़ मिट्टी
- लाल मिट्टी
- लेटराइट मिट्टी
- मरुस्थलीय मिट्टी
- पर्वतीय मिट्टी

जलोढ़ मिट्टी
यह मिट्टी नदियों द्वारा भूमि पर बिछाई गई बारीक कणों वाली मिट्टी है। यह मिट्टी नदियों के किनारे पर समुद्र तटीय मैदानों में पाई जाती है। यह सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी होती है। अत्यधिक उपजाऊ होने से यह रबी और खरीफ की फसलों के लिए बहुत अच्छी है। नई जलोढ़ मिट्टी को ‘खादर‘ तथा पुरानी जलोढ़ मिट्टी को ‘बाँगर‘ कहते हैं। खादर मिट्टी, बाँगर मिट्टी से अधिक उपजाऊ होती है।
काली मिट्टी
यह मिट्टी ज्वालामुखी विस्फोट तथा लावा निकलने से बनती है। यह मिट्टी भी बहुत उपजाऊ होती है। काली मिट्टी को कपास मिट्टी या रेगड़ मिट्टी भी कहते हैं। यह नमी को सोख सकती है। यह मिट्टी कपास के लिए उपयुक्त है। यह मिट्टी दक्कन के पठारी क्षेत्र के महाराष्ट्र तथा गुजरात में पाई जाती है।
लाल मिट्टी
लाल मिट्टी पुरानी रवेदार कायांतरित चट्टानों के टूटने से बनती है। यह चिकनी मिट्टी तथा रेतीली मिट्टी से मिलकर बनती है। यह लाल रंग की होती है क्योंकि इसमें लौह तत्त्व के कण होते हैं। यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। इस मिट्टी में उर्वरकों को मिलाकर खेती की जाती है। लाल मिट्टी तमिलनाडु के कुछ भागों, कर्नाटक, दक्षिण-पूर्वी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ भागो में पाई जाती है।
लैटेराइट मिट्टी
लैटेराइट मिट्टी अधिक वर्षा वाले भागों में पाई जाती है। यह मिट्टी चट्टानों के कटाव से बनती है। इस मिट्टी में अम्लता पाई जाती है क्योंकि यह अधिक वर्षा के कारण चट्टानों के टूटने से बनती है। यह खेती के लिए बहुत उपयुक्त नहीं होती। यह मिट्टी अधिक वर्षा वाले पश्चिमी घाट के क्षेत्रों में और उत्तर-पूर्व के पहाड़ी राज्यों में पाई जाती है।
मरुस्थलीय मिट्टी
यह मिट्टी पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा कम होती है तथा यह कृषि के लिए उपयुक्त नहीं होती । हालांकि सिंचाई की व्यवस्था होने पर इस मिट्टी में कृषि भी अच्छी की जाती है।
पर्वतीय मिट्टी
ये मिट्टी हिमालय जैसे ऊँचे क्षेत्रों में पाई जाती है। इसमें लौह तत्त्व की अधिकता तथा चूने की कमी होती है। अत्यधिक वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में चाय की खेती की जाती है।
मिट्टी अपरदन
मिट्टी का अपरदन एक गंभीर विश्वव्यापी समस्या है। अत्यधिक वर्षा होने से आने वाली बाढ़ और वायु द्वारा इसका अपरदन होता है। वर्षा ऋतु में होने वाली वर्षा से नदियों में बाढ़ आने से अवनालिका अपरदन होता है।
इसके परिणामस्वरूप धरातल पर अनेक बीहड़ हो जाते हैं। मध्य प्रदेश का चंबल नदी का बीहड़ एक उदाहरण है। मरुस्थल में पवन द्वारा रेत उड़ाकर समीपवर्ती मैदानों में एकत्रित हो जाती है। फलस्वरूप वे क्षेत्र वायु द्वारा अपरदन के कारण अनुपजाऊ हो जाते हैं।
राजस्थान की रेत हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों में बिछाई गई है जिससे ये क्षेत्र अनुपजाऊ हो जाते हैं।वनों की अंधाधुंध कटाई, अत्यधिक पशुचारण, कृषि की अवैज्ञानिक पद्धतियाँ, स्थानांतरीय कृषि तथा खनन क्रियाएँ इसके लिए उत्तरदायी हैं। इससे भूमि अनुपजाऊ तथा कृषि के लिए अयोग्य हो जाती है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए मिट्टी का अपरदन एक विकट समस्या है। साथ ही भारत में अपरदन की दर भी बहुत अधिक है।
मृदा संरक्षण
मृदा सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है क्योंकि पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीव मृदा पर निर्भर करते हैं; अतः मृदा का संरक्षण करना अति आवश्यक है। भूमि के कटाव को रोकने तथा मृदा संरक्षण के निम्नलिखित उपाय हैं ।
- वनीकरण और वृक्षारोपण कार्यक्रम के अंतर्गत मृदा अपरदन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
- वृक्षों को अंधाधुंध काटने तथा चरागाहों में पशुओं की अधिक चराई की प्रवृत्ति पर नियंत्रण लगाने के कदम उठाए जाने चाहिए।
- जल प्रवाह को नियंत्रित या नियमित करने के लिए ढलान वाली भूमि और तीव्र प्रवाहित नदियों पर तटबंध तथा अवरोध बनाए जाने चाहिए।
- नदियों पर बाँध बनाकर बाढ़ को रोका जाना चाहिए। 5. फसलों के चक्रानुक्रम द्वारा तथा खाद या रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके मृदा की उर्वरता को बढ़ाया जाना चाहिए।
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मिट्टी (Mitti) मृदा के महत्वपूर्ण प्रश्नें
Que. – मिट्टी किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?
पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को ‘मृदा’ /या मिट्टी कहा जाता है । यदि हम ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाते है, तो वहां पर प्रायः चट्टान (शैल) पाई जाती है, लेकिन कभी- कभी मिट्टी हटाने से थोड़ी गहराई पर ही चट्टान पायी जाती है।
Que. -मिट्टी की परिभाषा क्या है ?
पृथ्वी.. की तत्काल सतह पर असंगठित खनिज या कार्बनिक पदार्थ जो भू पौधों की वृद्धि के लिए प्राकृतिक माध्यम के रूप में कार्य करता है।
Que. -भारत मे मिट्टी कितने प्रकार की पायी जाती है ?
भारत में सात मृदा भण्डार हैं। वे जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी, लेटराइट मिट्टी, या शुष्क मिट्टी, और जंगल और पहाड़ी मिट्टी, दलदली मिट्टी हैं। ये मिट्टी नदियों द्वारा लायी गयी तलछट से बनती है। इनमें विभिन्न रासायनिक गुण भी होते हैं।
Que. -भारत में कौन सी मिट्टी सबसे ज्यादा है ?
भारत में जलोढ़ मिट्टी सबसे बड़ा मिट्टी समूह है। सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में गाद जमा होती है, जिससे जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है। यह भारत की लगभग आधी आबादी को सबसे प्रभावी कृषि भूमि प्रदान करता है। पोटाश, क्षार और फास्फोरस सभी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
Que. -मिट्टी के कितने रंग होते है ?
लाल, भूरा, पीला, पीला-लाल, भूरा-भूरा और हल्का लाल
Que. -भारत में सबसे कम मिट्टी कौन सी है ?
जलोढ़ मिट्टी – 45.6%
काली / रेगुर मिट्टी – 16.6%
लाल मिट्टी – 10.6%
लैटेराइट मिट्टी – 6.8%
शुष्क / रेगिस्तानी मिट्टी -4,32%
Que. -जलोढ़ मिट्टी का दूसरा नाम क्या है ?
दोमट या कछार मिट्टी
Que. -काली मिट्टी को क्या कहा जाता है ?
काली मिट्टी को कपास मिट्टी, रेगुर मिट्टी और लावा मिट्टी तथा उत्तर प्रदेश में इसे करेल मिट्टी के नाम से भी जानते हैं।
Que. -लेटराइट मिट्टी कहाँ पायी जाती है ?
भारत में लैटेराइट मिट्टी तमिलनाडु के पहाड़ी भागों और निचले क्षेत्रों, कर्नाटक के कुर्ग जिले, केरल राज्य के चौडे समुद्री तट, महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले, पश्चिमी बंगाल के बेसाइट और ग्रेनाइट पहाड़ियों के बीच तथा उड़ीसा के पठार के ऊपरी भागों में मिलती है।
Que. -पुरानी मिट्टी को क्या कहते है ?
पुरानी जलोढ़ मिट्टी को भांगर के रूप में जाना जाता है और यह कंकड़ (चूने की गांठ) से भरी होती है।
आशा करते है आपको यह लेख पसन्द आया होगा आपको मिट्टी पर दी हुई जानकारी से आप सन्तुष्ट होंगे अगर आप मिली हुई जानकारी से संतुष्ट है तो आप हमें अपना सुझाव दे सकते है धन्यवाद…