नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट AKstudyHub में आज हम हिंदी के सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक अलंकार | अलंकार की परिभाषा | अंलकार किसे कहते है -Alankar in Hindi पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
साधारण भाषा मे कहें तो काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहा जाता है लेकिन इतना ही पूरा सच नही है । अलंकार हिंदी या संस्कृत भाषा बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में हम बिन्दुतः बारीकी से चर्चा करेगें जैसे कि अलंकार क्या है, अंलकार की परिभाषा,अलंकार के प्रकार आदि हम सभी को विस्तार पूर्वक समझायेंगे आप हमारे साथ जुड़े रहिये।
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अलंकार किसे कहते है
अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है आभूषण , अलंकार शब्द मुख्यतः दो शब्दों से मिलकर बना है। अलम + कार जिसकी सन्धि करने पर अलंकार शब्द का निर्माण होता है।
जिस प्रकार किसी स्त्री (महिला) की सुंदरता में आभूषण चार चांद लगा देते है जिससे स्त्री की सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है उसी प्रकार किसी काव्य, कविता,श्लोक आदि में अलंकार के होने से वाक्यांश की शोभा बड जाती है। अर्थार्त जो वाक्यांश को अलंकृत करे उसे अलंकार कहते है।
भाषा को शब्द एवं शब्द के अर्थ से सुसज्जित एवं सुन्दर बनाने की मनोरंजक प्रक्रिया को ‘अलंकार’ कहा जाता है। ‘अलंकार’ काव्य भाषा के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। यह भाव की अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावी बनाते हैं।
अलंकार की परिभाषा | Alankar ki Paribhasha
प्रसिद्ध संस्कृत आचार्य दण्डी ने अपनी रचना ‘काव्यादर्श‘ में अलंकार को परिभाषित करते हुए लिखा है-‘अलंकरोतीति अलंकार:’ अर्थात् शोभाकारक पदार्थ को अलंकार कहते हैं।
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हिन्दी में रीतिकालीन कवि आचार्य केशवदास ने ‘कविप्रिया’ रचना में अलंकार की विशेषताओं का विवेचन प्रस्तुत किया है।
अलंकार कितने प्रकार के होते है
अलंकार को मुख्यतः चार भागों में विभाजित किया जाता है
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
- पाश्चात्य अलंकार
शब्दालंकार
शब्द निर्माण की प्रक्रिया में ‘ध्वनि’ तथा ‘अर्थ’ का महत्त्वपूर्ण समन्वय होता है। ध्वनि के आधार पर काव्य में उत्पन्न विशिष्टता अथवा साज-सज्जा ‘शब्दालंकार’ की सृष्टि करते हैं। इस अलंकार में वर्ण या शब्दों की लयात्मकता अथवा संगीतात्मकता उपस्थित होती है। ‘शब्दालंकार’ वर्णगत, शब्दगत तथा वाक्यगत होते है।
अलंकार के नाम से प्रतीत होता है कि जहां शब्दो के प्रयोग से वाक्यांश में एक उचित परिवर्तन प्रकट हो वहाँ शब्दालंकार होता है।
शब्दालंकार के भेद या प्रकार
शब्दालंकार को छः भागो में विभाजित किया जाता है
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
- पुनरुक्ति अलंकार
- विप्सा अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
अनुप्रास अलंकार | अनुप्रास अलंकार के 10 उदाहरण
अनुप्रास वर्णनीय रस की अनुकूलता के अनुसार समान वर्णों का बार-बार प्रयोग है। यह एक प्रचलित अलंकार है,जहाँ किसी वर्ण की आवर्ती वार वार हो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण
- सम सुबरन सुखाकर सुजस न थोर ।
- रघुपति राघव राजा राम
- जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप । विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।
- मुदित महिपत मंदिर आये। सेवक सचिव सुमंत बुलाये ।।
- जो सुख सुजस सुलभ मोहिं स्वामी ।
- तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए ।
- चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में
- भगवान! भागे दुःख, जनता देश की फले-फले
- विमल वाणी ने वीणा ली’
- चरर मरर खुल गए अरर
- छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की।
अनुप्रास अलंकार का प्रयोग छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास, लाटानुप्रास, श्रुतयानुप्रास, अन्त्यानुप्रास आदि के रूप में होता है।
अनुप्रास अलंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार के पांच भेद होते है
श्रुत्यानुप्रास — एक ही स्थान से उच्चारित होने वाले वर्णों की आवृत्ति हो वहाँ श्रुतयानुप्रास अलंकार होता है।
- उदाहरण राम कृपा भव-निसा सिरानी जागे पुनि न डसैहों।
वृत्यानुप्रास– समान वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हो वहाँ व्रत्यानुप्रास अलंकार होता है।
- उदाहरण चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।
छेकानुप्रास—जब कोई वर्ण मात्र दो बार ही आए वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है ।
- उदाहरण इस करुणा-कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती।
लाटानुप्रास – शब्द व अर्थ की आवृत्ति के बाद भी अन्वय के उपरान्त भिन्न अर्थ मिले वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।
- उदाहरण पूत सपूत तो क्यों धन संचै? पूत कपूत तो क्यों धन संचै?
अन्त्यानुप्रास – शब्दों के अन्त में समान ध्वनि की आवृत्ति हो वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।
- उदाहरण बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ।
यमक अलंकार
यमक’ एक शब्दालंकार है। यमक का अर्थ होता है— ‘युग्म’ अर्थात् ‘जोड़ा’ । इसमें भिन्न अर्थ के साथ किसी वर्ण अथवा शब्द की आवृत्ति होती है। वहाँ यमक अलंकार होता है।
- उदाहरण “कहै कवि बेनी ब्याल की चुराय लीनी बेनी”
- उदाहरण कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाया वा पाये बौराय जग, वा खाये बौराय।।
श्लेष अलंकार | श्लेष अलंकार के उदाहरण
जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होकर दो-या-दो से अधिक भिन्न-भिन्न अर्थ दे तो वहाँ ‘श्लेष अलंकार’ होता है। इस अलंकार के अन्तर्गत एक शब्द एक से अधिक अर्थों का बोध कराकर पूरे काव्य को विशिष्ट अर्थ प्रदान करने में सक्षम होता है वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
- उदाहरण “सुबरन को ढूँढै फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।”
- उदाहरण रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
पुनरुक्ति अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों को मिलाकर होता है , पुनरुक्ति शब्द का अविष्कार पुनः+ उक्ति से हुआ है। जब कोई दो शब्द दो बार दोहराए जाएं उस जगह पुनरुक्ति अलंकार अलंकार होता है।
- उदाहरण सुबह-सुबह बच्चे काम पर जा रहे है।
विप्सा अलंकार
जब दुख, आश्चर्य, आदर, हर्ष, शोक, आदि जैसे विस्मयादिबोधक भावों को व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति की जाए तब उसे ही विप्सा अलंकार कहते है।
- उदाहरण मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।
वक्रोक्ति अलंकार
वक्रोक्ति’ का मतलब होता है ‘वक्र उक्ति’ अर्थात ‘टेढ़ी उक्ति’। कहने वाले का अर्थ कुछ और होता है, किन्तु सुननेवाला उससे कुछ दूसरा ही अर्थ निकाल लेता है।
जिस शब्द से कहने वाले व्यक्ति के कथन का अर्थ न ग्रहण कर सुनने वाला व्यक्ति अन्य ही चमत्कारपूर्ण अर्थ लगाये और उसका उत्तर दे, तब उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं।
दूसरे शब्दों में जहाँ किसी के कथन का कोई दूसरा पुरुष दूसरा अर्थ निकाले, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
- उदाहरण एक कह्यौ वर देत भव भाव चाहिए चित्त। सुनि कह कोउ भोले भवहिं भाव चाहिए मित्त।।
अर्थालंकार
जब शब्द, वाक्य में प्रयुक्त होकर उसके अर्थ को चमत्कृत या अलंकृत करने वाला स्वरूप प्रदान करे तो वहाँ ‘अर्थालंकार’ की उत्तपत्ति होती है।
‘अर्थालंकार’ की एक विशेषता यह है कि यदि वाक्य से किसी शब्द को हटाकर उसकी जगह उसके पर्याय शब्द को रखा जाए, तब भी अलंकार की प्रवृत्ति में कोई अन्तर नहीं आता। वस्तुतः ‘अर्थालंकार’ की निर्भरता शब्द पर न होकर शब्द के अर्थ पर होती है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टान्त, मानवीकरण इत्यादि प्रमुख अर्थालंकार हैं।
अर्थालंकार के भेद
उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टान्त, मानवीकरण के आलवा भी अर्थालंकार के अंग है जो निम्नलिखित है
- 1. उपमा अलंकार
- 2. रूपक अलंकार
- 3. उत्प्रेक्षा अलंकार
- 4. द्रष्टान्त अलंकार
- 5. संदेह अलंकार
- 6 अतिश्योक्ति अलंकार
- 7. उपमेयोपमा अलंकार
- 8. प्रतीप अलंकार
- 9. अनन्वय अलंकार
- 10. भ्रांतिमान अलंकार
- 11. दीपक अलंकार
- 12. अपहति अलंकार
- 13. व्यतिरेक अलंकार
- 14. विभावना अलंकार
- 15. विशेषोक्ति अलंकार
- 16. अर्थान्तरन्यास अलंकार
- 17. उल्लेख अलंकार
- 18. विरोधाभाष अलंकार
- 19. असंगति अलंकार
- 20. मानवीकरण अलंकार
- 21. अन्योक्ति अलंकार
- 22. काव्यलिंग अलंकार
- 23. स्वभावोक्ति अलंकार
- 24. कारणमाला अलंकार
- 25. पर्याय अलंकार
- 26. स्वभावोक्ति अलंकार
- 27. समासोक्ति अलंकार
उपमा अलंकार | उपमा अलंकार के उदाहरण | उपमा अलंकार के भेद
जब काव्य में समान धर्म के आधार पर एक वस्तु की समानता अथवा तुलना अन्य वस्तु से की जाए, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है, जिसकी उपमा दी जाए उसे उपमेय तथा जिसके द्वारा उपमा यानि तुलना की जाए उसे उपमान कहते हैं। उपमेय और उपमान की समानता प्रदर्शित करने के लिए सादृश्यवाचक शब्द प्रयोग किए जाते हैं।
- उदाहरण “मुख मयंक सम मंजु मनोहर ।”
- उदाहरण “मुख मयंक सम मंजु मनोहर ।”
उपमा अलंकार के अंग
- (i) उपमेय जिसके लिए उपमा दी जाती है, जैसे उपरोक्त उदाहरण में मुख, मयंक ।
- (ii) उपमान उपमेय (संज्ञा) की जिसके साथ तुलना (उपमा) की जाती है, जैसे—मयंक, पीपर पात।
- (iii) साधारण धर्म जिस गुण या विषय में उपमेय और उपमान की तुलना की जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं; जैसे—मनोहर, डोला ।
- (iv) वाचक शब्द जिस शब्द के द्वारा उपमेय और उपमान की समानता व्यक्त की जाती है; जैसे—सी, सा, से, सम, समान, तुल्य, सदृश, इव, सरिम, जैसा, जिमि आदि।
उपमा अलंकार के भेद या प्रकार
1.पूर्णोपमा इस अलंकार में उपमा अलंकार के चारों अंग उपमेय, उपमान, साधारण धर्म और वाचक शब्द दिए होते है ।
- उदाहरण पीपर पात सरिस मन डोला
2. लुप्तोपमा जिसमें उपमेय, उपमान साधारण धर्म और वाचक शब्द में से किसी एक अथवा अनेक अंगों के लुप्त होने पर ‘लुप्तोपमा’ अलंकार होता है। लुप्तोपमा अलंकार में तीन अंगों तक के लोप होने की सम्भावना रहती है।
- उदाहरण नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
3. रसनोपमा जहाँ उपमेय और उपमान एक दूसरे से जुड़े रहते हैं वहाँ ‘रसनोपमा’ अलंकार होता है
- उदाहरण सगुन ज्ञान सम उद्यम, उद्यम सम फल जान। • फल समान पुनि दान है, दान सरिस सनमान ।।
4. मालोपमा मालोपमा से अभिप्राय है माला के रूप में उपमानों की श्रृंखला / अर्थात् जब एक ही उपमेय के लिए अनेक उपमानों का प्रयोग किया जाता है तो ‘मालोपमा’ अलंकार होता है।
- उदाहरण हिरनी से मीन से, सुखंजन समान चारु। अमल कमल-से, विलोचन तुम्हारे हैं ।।
रूपक अलंकार
रूपक का अर्थ होता है- एकता। रूपक अलंकार में पूर्ण साम्य होने के कारण प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप कर अभेद की स्थिति को स्पष्ट किया जाता है। इस प्रकार जहाँ ‘उपमेय’ और ‘उपमान’ की अत्यधिक समानता को प्रकट ‘करने के लिए ‘उपमेय’ में ‘उपमान’ का आरोप होता है, वहाँ ‘रूपक अलंकार’ उपस्थित होता है।
- उदाहरण “चरण कमल बन्दौ हरिराई।”
- उदाहरण उति उदयगिरि मंच पर, रघुबर बाल पतंग | विकसे संत सरोज सब, हरखे लोचन भृंग ।।
रूपक अलंकार के भेद
रूपक के विभिन्न भेदों में से तीन मुख्य भेद नीचे दिए गए हैं।
1.सांगरूपक इसमें अवयवों के साथ उपमेय पर उपमान आरोपित किए जाते हैं।
- उदाहरण रनित भृंग घंटावली, झरति दान मधु- -नीर । मन्द-मन्द आवत चल्यौ, कुंजर कुंज-समीर ।।
2.निरंग रूपक इसमें अवयवों के बिना ही उपमेय पर उपमान आरोपित किए जाते हैं।
- उदाहरण इस हृदय-कमल का घिरना, अलि-अलकों की उलझन में। आँसू, मरन्द का गिरना, मिलना निःश्वास पवन में।।
3.परम्परित रूपक इसमें उपमेय पर प्रयुक्त आरोप ही दूसरे आरोप का 4 कारण बनता है।
उदाहरण बाडव-ज्वाला सोती थी, इस प्रणय- सिन्धु के तल में। प्यासी मछली-सी आँखें, थीं विकल रूप के जल में ।।
उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा’ का अर्थ है- किसी वस्तु के सम्भावित रूप की उपेक्षा करना। उपमेय अर्थात् प्रस्तुत में उपमान अर्थात् अप्रस्तुत की सम्भावना को ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ कहते हैं। ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ में मानो, जानो, शब्दों का प्रयोग होता है। जनु, मनु, ज्यों इत्यादि
- उदाहरण “सोहत ओई पीत-पट, श्याम सलोने गात। मनहुँ नीलमणि सैल पर, आतपु परयौ प्रभात।”
- उदाहरण वहीं शुभ्र सरिता के तट पर, कुटिया का कंकाल खड़ा है। मानों बाँसों में घुन बनकर शत शत हाहाकार खड़ा है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद हैं (i) वस्तुत्प्रेक्षा (ii) हेतूत्प्रेक्षा (ii) फलोत्प्रेक्षा
1.वस्तुत्प्रेक्षा इसमें एक वस्तु की दूसरी वस्तु के रूप में सम्भावना की … जाती है
- उदाहरण वहीं शुभ सरिता के तट पर, कुटिया का कंकाल खड़ा है। मानों बाँसों में घुन बनकर शत-शत हाहाकार खड़ा है।
2.हेतूत्प्रेक्षा जहाँ पर काव्य में अहेतु में हेतु की सम्भावना व्यक्त की जाती हैं, वहाँ ‘हेतूत्प्रेक्षा’ अलंकार होता है
- उदाहरण विनय शुक-नासा का धर ध्यान,बन गए पुष्प पलास अराल।
3.फलोत्प्रेक्षा जब अफल में फल की सम्भावना की जाए, वहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है
- उदाहरण नित्य ही नहाता क्षर सिन्धु में कलाधर है; सुन्दरि ! तवानन की समता की इच्छा से।
भ्रांतिमान अलंकार
जब उपमेय को भ्रम के कारण उपमान समझ लिया जाता है तब वहाँ ‘भ्रान्तिमान् अलंकार’ होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस अलंकार में उपमेय में उपमान का धोखा हो जाता है।
- उदाहरण कपि करि हृदय बिचार, दीन्ह मुद्रिका डारि तब। जानि अशोक अँगार, सीय हरषि उठि कर गहेउ ।।
सन्देह अलंकार
जब किसी वस्तु में उसी के सदृश अन्य वस्तुओं का सन्देह हो और सदृशता के कारण अनिश्चित की मनोदशा हो तब वहाँ सन्देह अलंकार होता है।
- उदाहरण कैधौं व्योम बीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
- बीर रस बीर तरवारि सी उधारी है।
- तुलसी सुरेश चाप, कैंधौं दामिनी कलाप,
- कैंधों चली मेरु तें कृसानु-सरि भारी है ।।
अतिशयोक्ति अलंकार
जब किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थिति की प्रशंसा करते हुए कोई बात बहुत बढ़ा-चढ़ा कर अथवा लोक सीमा का उल्लंघन करके कहीं जाए, तब वहाँ ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ उपस्थित होता है।
- उदाहरण हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग। लंका सारी जल गई, गए निशाचर भाग।।
अनन्वय अलंकार
काव्य में जहाँ उपमान के अभाव के कारण उपमेय को ही उपमान बना दिया जाए वहाँ ‘अनन्वय अलंकार’ होता है।
- उदाहरण नागर नन्दकिसोर से नागर नन्दकिसोर ।
इस पंक्ति में उपमेय नन्दकिसोर है और उपमान भी नन्दकिसोर है। अतः अनन्वय अलंकार है।
प्रतीप अलंकार
जहाँ उपमेय को उपमान और उपमान को उपमेय बना दिया गया हो तो वहाँ ‘प्रतीप अलंकार’ होता है। प्रतीप अलंकार में उपमा अलंकार की विपरीत स्थिति होती है।
- उदाहरण ‘चन्द्रमा मुख के समान सुन्दर है।’
दृष्टांत अलंकार
उपमेय एवं उपमान के साधारण धर्म में भिन्नता होने पर भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से कथन करने को ‘दृष्टान्त अलंकार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दृष्टान्त अलंकार के अन्तर्गत पहले एक बात कहकर उसको स्पष्ट करने के लिए उससे मिलती-जुलती अन्य बात कही जाती है।
- उदाहरण बसै बुराई जासु तन, ताहि को सम्मान । भलो भलो कहि छाँड़िये, खोटे ग्रह जप-दान ।।
उभयालंकार
अलंकार का वह रूप, जिसमें ‘शब्दालंकार’ तथा ‘अर्थालंकार’ दोनों अलंकारों का योग होता है, तो वह ‘उभयालंकार’ कहलाता है।
साधारण शब्दों में:- वह अलंकार, जो ‘शब्द’ तथा ‘अर्थ’ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी बनाता है, तो वह ‘उभयालंकार’ कहलाता है।
- उदाहरण मनी माय रचित चारों चौबरे । जनू रतिपति निज हाथ सवारे
पाश्चात्य अलंकार
शब्द और अर्थालंकार के अतिरिक्त पाश्चात्य साहित्य के प्रभाव के कारण उत्पन नवीन अलंकारों को उभयालंकार/पाश्चात्य/आधुनिक अलंकारों को श्रेणी में रखा जाता है।
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