हमें दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के संख्यात्मक समंक देखने को मिलते हैं, जो समाचार-पत्रों, विज्ञापनों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन अथवा अन्य स्रोतों द्वारा हमें प्राप्त होते रहते हैं।
सांख्यिकी क्या है Statistics | अर्थ, परिभाषाएँ, प्रमुख कार्य और महत्व – PDF Notes
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इन समंकों का सम्बन्ध मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से होता है; जैसे—खेल-कूद, शिक्षा की उन्नति, कृषि, जनस्वास्थ्य, बेरोजगारी, आर्थिक नियोजन, औद्योगिक उत्पादन, यातायात एवं संचार के साधन आदि। अर्थशास्त्र का प्रत्येक विभाग उत्पादन, उपभोग, विनिमय, वितरण एवं लोकवित्त समंकों के अभाव में अधूरा है।
किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय का ज्ञान भी समंकों के माध्यम से ही होता है।
सांख्यिकी क्या है ?
सांख्यिकी का अर्थ – सांख्यिकी का शाब्दिक अर्थ ‘संख्या से सम्बन्धित शास्त्र’ है। अतः सांख्यिकी ज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध संख्याओं या संख्यात्मक आँकड़ों से है।
अंग्रेजी का Statistics‘ शब्द लैटिन भाषा के ‘Status‘ शब्द से बना है, जिसका अर्थ ‘राज्य‘ है। इससे पता लगता है कि इस विषय की उत्पत्ति राज्य विज्ञान के रूप में हुई।
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शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राजा सेना की संख्या, रसद की मात्रा, कर्मचारियों का वेतन, भूमि-कर आदि से सम्बन्धित आँकड़े एकत्र कराते थे। इन संख्यात्मक आँकड़ों की सहायता से ही राज्य के बजट का निर्माण किया जाता था।
सांख्यिकी की परिभाषा
सांख्यिकी को प्रस्तुत करने के लिये विद्वानों के अलग-अलग मत जो निम्नलिखित है
प्रो० किंग के अनुसार, “गणना अथवा अनुमानों के संग्रह को विश्लेषण के आधार पर प्राप्त परिणामों से सामूहिक, प्राकृतिक अथवा सामाजिक घटनाओं पर निर्णय करने की रीति को सांख्यिकी विज्ञान कहते हैं।”
सेलिगमैन के अनुसार, “सांख्यिकी वह विज्ञान है जो किसी विषय पर प्रकाश डालने के उददेश्य से संग्रह किये गये आँकड़ों के संग्रह, वर्गीकरण, प्रदर्शन, तुलना और व्याख्या करने की रीतियों की विवेचना करता है।”
डॉ० बाउल के अनुसार सांख्यिकी गणना का विज्ञान है ।
बॉडिंगटन के अनुसार सांख्यिकी अनुमानों और संभावितों का विज्ञान है ।
सांख्यिकी के प्रमुख कार्य
(1) आँकड़ों को व्यवस्थित और सरल बनाना – सांख्यिकी का प्रथम कार्य संग्रहीत आँकड़ों को वर्गीकरण व सारणीयन द्वारा सरल बनाना है। आँकड़ों के व्यवस्थित हो जाने से बहुत-से निष्कर्ष आँकड़ों को देखकर ही ज्ञात किये जाते हैं। अव्यवस्थित आँकड़ों से हमारा कोई भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है।
(2) तथ्यों को निश्चयात्मक बनाना– संग्रहीत आँकड़ों की संख्या अत्यधिक होती है; अतः उनको समझना और उनसे निष्कर्ष निकालना कठिन होता है। सांख्यिकी उनको इस प्रकार प्रस्तुत करती है कि वे सरलतापूर्वक समझ में आ जाते हैं।
(3) तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन-आँकड़ों का तब तक कोई महत्त्व नहीं होता जब तक कि दूसरे आँकड़ों से उनकी तुलना न की जाए और उनमें सम्बन्ध स्थापित न किया जाए। सांख्यिकी माध्य, सह-सम्बन्ध आदि के द्वारा तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन कराती है।
सांख्यिकी क्या है Statistics | अर्थ, परिभाषाएँ, प्रमुख कार्य और महत्व – PDF Notes 2022
(4) निर्वाचन या व्याख्या करना—सांख्यिकीय तथ्यों का वर्गीकरण, सारणीयन, चित्रण, विश्लेषण करने के उपरान्त समस्या के हल की व्याख्या करती है, जिसके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
(5) विभिन्न आर्थिक नियमों व सिद्धान्तों की जाँच – सांख्यिकीय गणना के आधार पर सिद्धान्तों व नियमों का सत्यापन किया जाता है, क्योंकि सांख्यिकी की सहायता से निर्मित नियम स्थिर और सार्वभौमिक रहते है। उदाहरण के लिए—माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त आदि नियमों का सत्यापन सांख्यिकी के द्वारा ही सम्भव है ।
(6) पूर्व कथन चा अनुभव – सांख्यिकी का महत्त्वपूर्ण कार्य निष्कर्षों के आधार पर भविष्य में आने वाली परिस्थितियों के सम्बन्ध में अनुमान लगाकर भविष्यवाणी करना होता है।
इस सम्बन्ध में डॉ० बाउले का कथन है कि “एक सांख्यिकीय अनुमान अच्छा हो या बुरा, ठीक हो या गलत, परन्तु प्रायः प्रत्येक दशा में वह एक आकस्मिक प्रेक्षक के अनुमान से अधिक ठीक होगा।”
सांख्यिकी का महत्व
(१) आर्थिक नियोजन के क्षेत्र में – वर्तमान युग नियोजन का युग है। देश का आर्थिक विकास नियोजन के द्वारा ही सम्भव है। सांख्यिकी नियोजन का आधार है।
किसी भी आर्थिक योजना के निर्माण तथा उसको सफलतापूर्वक चलाने के लिए सांख्यिकीय विधियों का उपयोग अत्यन्त आवश्यक होता है। जितने सही व सबल आँकड़े प्राप्त होंगे, योजना उतनी ही ठीक बन सकेगी।
योजना निर्माण में इस तथ्य का अनुमान आवश्यक होता है कि उसमें कितना धन व्यय होगा, कितने व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा तथा राष्ट्रीय आय में कितनी वृद्धि होगी; अतः इसमें भी सांख्यिकी की आवश्यकता पड़ती है।
(२) राज्य प्रशासन के क्षेत्र में – सांख्यिकी की उत्पत्ति ही राज्य प्रशासन के रूप में हुई थी। आज के युग में राज्य के कार्य-क्षेत्र बढ़ते ही जा रहे हैं।
इस कारण सांख्यिकी का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है। कुशल प्रशासन हेतु अनेक प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित करनी होती हैं; जैसे—सैनिक शक्ति, राष्ट्र की आय, व्यय, ऋण, आयात-निर्यात, औद्योगिक स्थिति, बेरोजगारी आदि।
इन सूचनाओं के आधार पर ही सरकार अपनी नीति का निर्धारण करती है तथा बजट का निर्माण किया जाता है; अतः राज्य प्रशासन के क्षेत्र में सांख्यिकी का अत्यधिक महत्त्व है।
सांख्यिकी क्या है Statistics | अर्थ, परिभाषाएँ, प्रमुख कार्य और महत्व – PDF Notes 2022
(३) व्यापार व उद्योग के क्षेत्र में आज के इस प्रतियोगिता के युग में एक सफल व्यापारी व उद्यमी को इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि उसकी वस्तु की माँग कहाँ और कितनी है?
भविष्य में मूल्य-परिवर्तन की क्या सम्भावनाएँ हैं? सरकार की नीति उद्योग के विषय में क्या है? आदि; इन सभी प्रश्नों के ठीक उत्तर के लिए सांख्यिकी का ज्ञान आवश्यक है।
बॉडिंगटन के शब्दों में, “एक सफल व्यापारी वही है जिसके अनुमान यथार्थता के अति निकट हों।” इसके लिए उसे सांख्यिकीय विधियों का आश्रय लेना पड़ेगा।
(४) सामाजिक क्षेत्र में महत्त्व – सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र; शिक्षा, चिकित्सा, परिवार नियोजन, रहन-सहन का स्तर, पारिवारिक बजट, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र सभी में सांख्यिकी का महत्त्व है।
आज सांख्यिकी प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित कर रही है और मानव-जीवन के प्रत्येक बिन्दुओं को स्पर्श कर रही है।
(५) सार्वभौमिक महत्त्व – आधुनिक समय में सांख्यिकी का महत्त्व सर्वत्र है। शिक्षा एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र में छात्रों की रुचि, बुद्धि, योग्यता और उनकी प्रगति का मूल्यांकन, परीक्षा-प्रणाली में सुधार आदि में सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में, परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता, रोग निवारण में सफलता आदि के ज्ञान के लिए भी सांख्यिकीय विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं।
सांख्यिकी के सार्वभौमिक महत्त्व की ओर संकेत करते हुए टिपेट (Tippett) ने कहा है कि “सांख्यिकी प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है और जीवन को अनेक बिन्दुओं पर स्पर्श करती है।”
(६) अनुसन्धान के क्षेत्र में—हम जानते हैं कि तीव्र आर्थिक विकास के लिए अनुसन्धान आवश्यक है। भौतिक एवं सामाजिक विज्ञानों के सभी क्षेत्रों में अनुसन्धान हेतु सांख्यिकी का प्रयोग अनिवार्य है।
सांख्यिकी के बिना अनुसन्धानकर्त्ता कभी भी सही निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकता।
(७) अर्थशास्त्र में सांख्यिकी—सांख्यिकी अर्थशास्त्र का आधार है। अर्थशास्त्र के सभी विभागों; उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण एवं राजस्व में इसकी आवश्यकता पड़ती है।
प्रो० बाउले के अनुसार, “अर्थशास्त्र का कोई भी विद्यार्थी पूर्णतया सत्यता का दावा नहीं कर सकता, जब तक कि वह सांख्यिकी की रीतियों में निपुण न हो।” प्रत्येक आर्थिक नीति के निर्माण में सांख्यिकी का प्रयोग आवश्यक होता है।
आवश्यकताएँ, रहन-सहन का स्तर, पारिवारिक बजट, माँग की लोच, मुद्रा की मात्रा, बैंक-दर, आयात-निर्यात नीति का अध्ययन तथा निर्माण, राष्ट्रीय लाभांश, करों का निर्धारण आदि सांख्यिकीय आँकड़ों पर ही आधारित होते हैं।
सांख्यिकी की सीमाएँ
सांख्यिकी की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित है (सांख्यिकी क्या है)
(1) सांख्यिकी समूहों का अध्ययन करती है, व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं। उदाहरण के लिए, सांख्यिकी के अन्तर्गत किसी संस्थान में कार्य करने वाले कर्मियों के वेतन स्तर का अध्ययन किया जाएगा न कि किसी एक कर्मचारी के वेतन का।
(2) सांख्यिकी सदैव संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करती है, गुणात्मक तथ्यों का नहीं। दूसरे शब्दों में, सांख्यिकी के अन्तर्गत केवल उन्हीं समस्याओं का अध्ययन किया जाता है, जिनका संख्यात्मक वर्णन सम्भव हो;
जैसे—आय, आयु, लम्बाई, उत्पादन आदि। इसमें ऐसी समस्याओं का अध्ययन नहीं होता जिनका स्वरूप गुणात्मक हो; जैसे—सुन्दरता, चरित्र, बौद्धिक स्तर आदि ।
(3) सांख्यिकीय निष्कर्ष असत्य व भ्रमात्मक सिद्ध हो सकते हैं, यदि उनका अध्ययन बिना सन्दर्भ के किया जाए। सही निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए समस्या के प्रत्येक पहलू का अध्ययन आवश्यक होता है।
बिना सन्दर्भ व परिस्थितियों को समझते हुए जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं, वे यद्यपि सत्य जान पड़ते हैं, परन्तु वास्तव में वे सत्य नहीं होते।
(4) सांख्यिकीय समंकों का सजातीय होना आवश्यक है। सांख्यिकीय निष्कर्षों के लिए यह आवश्यक है कि जिन समंकों से निष्कर्ष निकाले जाएँ वे एकरूप एवं सजातीय हों। विजातीय समंकों से निकाले गये निष्कर्ष सदैव भ्रमात्मक होंगे ।
उदाहरण – हाथी की ऊँचाई से मनुष्यों की ऊँचाई की तुलना नहीं की जा सकती।
(5) सांख्यिकीय निष्कर्ष दीर्घकाल में तथा औसत रूप में ही सत्य होते हैं। सांख्यिकीय निष्कर्ष अन्य विज्ञान के नियमों की भाँति दृढ़, सार्वभौमिक तथा सर्वमान्य नहीं होते।
(6) सांख्यिकी किसी समस्या के अध्ययन का केवल साधन प्रस्तुत करती है, समाधान नहीं।
(7) सांख्यिकी का प्रयोग वही व्यक्ति कर सकता है जिसे सांख्यिकीय रीतियों का पूर्ण ज्ञान हो। बिना पूर्ण जानकारी के समंकों का प्रयोग करना एवं उनसे निष्कर्ष निकालना निरर्थक सिद्ध होता है।
यूल एवं केण्डल के शब्दों में, “अयोग्य व्यक्तियों के हाथ में सांख्यिकीय रीतियाँ अत्यन्त खतरनाक यन्त्र हैं।’
(8) सांख्यिकीय रीति किसी समस्या के अध्ययन की विभिन्न रीतियों में से एक है, एकमात्र रीति नहीं।
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English Article https://www.britannica.com/science/statistics
