आज के आधुनिक युग मे लोग नये संगीत (पॉप-कल्चर) की तरफ ज्यादा आकर्षित होते है जहाँ न तो कोई सही तरीके का संगीत होता है न ही कोई सुर ताल होता है, इसमे बस एक शोरगुल होता है जो सिर्फ कुछ समय के लिये लोगों के मनोरंजन का साधन बन सकता है ।

हमारा देश विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित है और सभी क्षेत्रों का एक अलग संगीत होता है जो उसी क्षेत्र की विशेषता को दर्शता है जिसे हम लोकसंगीत कहते है।
लोकसंगीत लेखनी द्वारा नही बल्कि मुख के द्वारा प्रदर्शित की जाती है हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने कहा है कि लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते है, नदियां,तालाब और फसले गाती है
आज के युग मे पॉप म्यूजिक की बजह से लोकसंगीत की ओर कोई ध्यान नही देता लेकिन अभी भी ऐसे बहुत संस्कृति के रक्षक है जो इस लोकसंगीत रूपी विरासत को संभाले हुये है।
हमारे भारत देश मे देखा जाय तो अभी लोकसंगीत बस कुछ ही राज्यो में ज्यादा प्रचलित है जिसमे राजस्थान का लोकसंगीत, उत्तरप्रदेश का लोकसंगीत और हिमाचल प्रदेश का लोकसंगीत सम्मिलित है।
लोकसंगीत किसे कहते है
लोकसंगीत एक जनमानस का संगीत है जो जनमानस के द्वारा सृजित होता है जनमानस के मनोरंजन हेतु जनमानस के द्वारा गाये जाना बाला संगीत है ।
स्वर,ताल,नृत्य के साथ ही लोक संगीत की उत्पत्ति हुई है, लोकसंगीत की विशेषता बताते हुये यह भी कहा गया कि जब व्यक्ति रसों से प्रभावित होकर जब अपनी स्वेक्षा से गाकर,बजाकर या फिर नृत्य करके अपने भावों को प्रकट करता है उसे हम लोक संगीत कहते है ।
लोकसंगीत के माध्यम से हमारी संस्कृति का काफी हद बचाव होता आ रहा है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में जितने भी संगीत गाये जाते है उनमें हमारी संस्कृति से लिप्त शब्द जरूर होते है ।
लोकसंगीत का अर्थ
लोकसंगीत मुख्य रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है लोक और संगीत = लोकसंगीत , जनमानस की किसी भी अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिए स्वर,ताल,नृत्य के सहारे से ही लोकसंगीत का जन्म होता है ।
आपको बता दे कि लोकसंगीत का कोई लिखित रूप से नियम नही होता यह संगीत मुख्यतः हिन्दू देवी देवताओं के ऊपर गाया जाता है ।
लोकसंगीत ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों के व्यक्तियों के लिये मुख्य मनोरंजन का साधन है जो कि किसी भी समय गाया जा सकता है यह घर के काम करते समय महिलाओं द्वारा और खेती किसानी के कार्यों में लोगो द्वारा ज्यादा गाया जाता है ।
लोकसंगीत की परिभाषा
विलियम ग्रीन के अनुसार लोक काव्य का निर्माण अपने आप एक जन समूह के द्वारा होता है यह संगीत स्वतः सम्पूर्ण है।
चेम्बर्स डिशकनरी के अनुसार लोक संगीत को ऐसा संगीत कहा जाता है जो परम्परागत रूप से लिप्त हो।
इस क्रम में राम नरेश ने कहा है कि जब गृह की देवियां एक साथ हो कर पूर्ण आनंद के साथ गीत या संगीत गाती है तब उन्हें सुनकर सभी लोग मनमुग्द हो जाते है ।
लोकसंगीत की प्रमुख विशेषता
- लोक संगीत एक ऐसा संगीत है जो प्रकृति से जुड़ा है इसमें प्रकृति से लिप्त गीत गाये जाते है ।
- लोक संगीत में देवी देवताओं के गीत होते है ।
- इस संगीत में कृषि,जंगल,नदी तालाब,झरना आदि विषयों से गीत होते है ।
- इन गीतों के द्वारा लोगो मे प्रोत्साहन आता है ।
- इस संगीत के गीतों के प्रथम पड़ प्रश्नवाचक होते है।
- इस संगीत का प्रथम पद के बाद अन्य पदों में प्रथम पद का उत्तर होता है ।
- इस संगीत में कोई लिखित नियम नही होता
- सभी क्षेत्रों में अलग अलग लोक संगीत प्रचलित है ।
लोक संगीत के उदाहण
क्रमांक | उदाहरण |
1 | लावड़ी |
2 | पंडवानी |
3 | बाउल्स |
4 | रबीन्द्र संगीत |
5 | बिहू |
6 | भवगीत |
7 | कुम्मी |
8 | जेलियांग |
9 | कोली |
10 | भटियायली |
11 | कजरी |
12 | दुलपद |
लोक संगीत के ऐसे बहुत से उदाहरण है जो अपने अलग अलग क्षेत्र में प्रचलित है ।
लोक संगीत का महत्व
- लोक संगीत मानवीय हितों ओर आवश्यताओं से उभरता है।
- ग्रामीण क्षेत्रो में यह मनोरंजन का प्रमुख साधन है
- लोक संगीत में हर मौसम के लिये अलग संगीत होता है जो उस मौसम के अनुसार ही होता है ।
- लोकसंगीत को धार्मिक और उत्सव के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है ।
- प्राकृतिक तौर पर इस संगीत का बड़ा महत्व है ।
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https://www.culturalindia.net/indian-music/folk-music.html